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बचपन की पाठशाला के संस्कार
रवि नाम का लड़का बहुत अच्छा लड़का था, वह 9 साल का था वह घर मे और बाहर के लोगो सभी का कहना मानता था, वह रोज देखता अपने पापा को वह काम पर जाने से पहले अपनी माँ और पापा के पाव छूकर जाता था, वह रात को अपने पापा से पूछता है आप रोज दादा जी और दादी माँ के पाव छूकर क्यों जाते हैं , तब उसके पिता बोलते हैं ऐसा करने से बाहर जाने पर माँ और पिताजी का आशिर्वाद ओर प्यार साथ रहता है जिससे मुसीबत के समय हिमत देता है, वह भी अगले दिन ऐसा ही करने लगा वह जब भी बाहर खेलने या कुछ कम से जाता अपने दादाजी , दादी माँ और अपनी माँ के पाव छूकर जाता था, वह अपनी माँ को देखता वह अपने सासु माँ और ससुर जी के पाव दबती उनकी सेवा करती , जब वह अपनी दादी माँ से पूछा माँ आप की इतनी सेवा क्यो करती है तब पास ही बैठे दादाजी बोलते हैं अपने से बड़ो की सेवा करनी चाहिए यह हमारे अच्छे संस्कार में से एक संस्कार है , वह अपनी माँ से पूछता है आपको इससे क्या मिलता है तब उसकी माँ बोलती है इससे मन को शांति मिलती है माँ और पिताजी का प्यार उनका आशीर्वाद और खराब समय मे सब मिलकर एक दूसरे की मदद करते हैं जिससे हिम्मत मिलती है, एक दिन उसके पिताजी और दादाजी दोनो किसी काम से घर से बाहर चले गए, रात में अचानक उसकी दादी की तबियत खराब हो गई उसकी माँ डॉक्टर को बुलाने चली गई, बाहर बारिस भी होरही थी वह लड़का अपनी दादी माँ के कभी पाव ओर कभी सर दबाता , वह काफी देर से यह काम कर रहा था , जब उसकी माँ डॉक्टर जो लेकर आई वह डॉक्टर ने उसकी दादी माँ का इलाज कर दिया ओर चला गया, अगले दिन जब उसके पापा ओर दादाजी को यह बात पता चली तो वह अपनी माँ से पूछने लगे अब तबियत केसी है उसके पिताजी आराम करने कमरे में चले गए, उसके दादाजी जब लड़के दादी माँ से बात कर रहे थे तब दादी रवि के बारे में बताया तो उसके दादाजी बोले बचो में संस्कार बचपन मे ही अपने माँ ओर पाप और आसपास के माहौल की देखकर ही सीखते हैं वही से उनमे संस्कार आने शुरू होते हैं वो दोनों रवि को आशीर्वाद देने लगे
© Verma Sahab