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अबके गंगा
जितेंद्र शर्मा सोज

अबके जो गंगा के तट पर तुम आओ
तो एक नहीं कई डुबकीया लगाना
जाने कितनी वेदनाए छुपाकर रखी है मेने
हर डुबकी मे ध्यान लगा कर जरा सुनना
मेने अपने अंदर दो मुट्ठी राख हीं नहीं
कितनी अधूरी ख्वाहिशों को छुपा रखा हैं
तुम सुनना उस मा की वासल्य पुकार को
अपने लाल को देखने के लिए अंतिम समय मे एक टक रास्ता देख रही थी
तुम सुनना एक लाचार पिता के करुण रूद्न् को जिसकी बेटी दहेज़ के दानवो द्वारा जलाई गई है
तुम सुनना उस अनचाही संतान की चीख को जिसे मा ने गर्भ मे हीं मार दिया था
तुम सुनना उस पिता को जो चार बेटे होते हुए भी अंत मे भूख से तड़प तड़प् के अपने प्राण त्याग देता हैं
तुम सुनना पत्नी की विरह वेदना को
जिसका पती उसे बे सहारा छोड़ कर
चला जाता है
तुम सुनना हर बात को मेने अपने अंदर सब कुछ समाहित कर रखा है
© jitensoz