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#काली कुर्सी..!!!
#कालीकुर्सी
" भैया इस कुर्सी की क्या कीमत है.? बताना जरा...!"..." किस कुर्सी की..?.. इसकी ? " पास पड़ी कुर्सी की तरफ़ इशारा करते हुए, नंद ने कहा।
नंद इस दुकान में काम करने वाला एक मुलाज़िम है। तभी सरिता ने कहा - "नही भैया, ये वाली नहीं, ये वाली तो मेरे बाबू को पसंद ही नहीं आएगी। उसकी पसंदीदा रंग काला है, मुझे वो वाली कुर्सी चाहिए।" दूर पड़े शीशे के उस पार पड़ी आलीशान काली कुर्सी, किसी राजा के सिंहासन-सी जान पड़ रही थी...!! क्या रंग था !!! क्या रूतबा ! अपने बाबू की खुशी में वह अपनी खुशी ढूंढने लगी.! सरिता की बात को नंद ने भांप लिया । फट से उसने कुर्सी दिखायी और दाम भी थोडे बढा दिये !
थोड़े ही दिनों में नंद शेठ का मिजाज और नियत दोनों समज गया था ! इतना ही नहीं बल्कि ग्राहक की दूखती नब्ज़ भी !! अतः बड़े मीठे शब्दों में... चतुराई से शेठ और ग्राहक - दोनों को खुश कर खूद सफल सेल्समैन बन गया !!
सरिता के मन पर अपने बाबू को खुश करने का नशा सवार था । अतः ज्यादा मथ्थापच्ची करने के बदले वह 'शानदार' कुर्सी खरीदकर जल्दी से अपने बाबू को खूश करने चली.!!
दूसरी ओर शेठ के आते ही नंद ने मुनाफे की बात अतिउत्साह से कही..!!
लेकिन चतुर व्यापारी ने अपने अंतर्मन को जागरूक कर दिया... 'नंद से संभलकर रहने का.! अपने व्यापारिक हथकंडे जल्दी से वह सीख ना ले! 'इस बात को लेकर वह सचेत हो गया.!!
कुछेक दिनों बाद सरिता टूटी हुई कुर्सी लेकर दूकान पर पहूँची और 'मंहगी' और 'थोथी' चीज पकडा देने की शिकायत करने लगी..! लेकिन क्या फायदा..?! शेठ अपनी जिम्मेदारियों से हाथ ऊँचे कर गये...!! पता चला कि वह नौकर बहूत कुछ उठाकर भाग गया है...!! खूद को भी भारी नुकसान पहुंचा गया है...!! - यह बात बहूत मुंह बनाकर कही..!! सरिता कुर्सी भी वहां छोडकर झल्लाती हुई, लाचारी से अपने बाबु के पास लौट आई !
बाबू मुस्कराते हुए, सब कुछ समजककर भी नचिंत बने रहे...!! सरिता की बात को समजते होने का पाखंड रचकर !!
© Bharat Tadvi