Unknown Number
समय अपनी पटरी पर दौड़ रहा था, और मै भी किसी रेल के इंजन की तरह बहुत से डिब्बों को अपने पीछे बाँध कर उस पटरी पर दौड़ रहा था ।सभी खुश थे मै........ शायद मै भी खुश था। सब अपनी जिंदगी से ये ही तो चाहते है पढ़ाई खत्म होने के बाद एक अच्छा जॉब और एक खुशहाल परिवार मैंने भी ये ही सोचा था और अपनी सोच को लगभग साकार भी कर लिया था। रोज सुबह उठकर न्यूज़ देखते हुए सुबह की चाय और फिर उन खबरों पर अपने विचार रखना फिर उन विचारो को टीवी के साथ उधर छोड़कर ऑफिस के लिए तैयार होना और फिर एक टिफन को अपने बैग में रखकर भारत की 70 प्रतिशत आबादी की तरह बस स्टैंड पर जाकर बस का इन्तजार करना । फिर ऑफिस में जाकर गुड मॉर्निंग ,गुड मॉर्निंग जैसे शब्दों का उदघोष शुरू हो जाता था,फिर इस उदघोष के बीच अपने सिंघासन पर विर्जमान होकर सभा शुरू करते थे,जी हाँ हमने खुद को उस जॉब का राजा मान रखा था और मै ही नही हर आम आदमी अपने आप को राजा ही मानता है हमारे पास दिल को खुश करने के लिए ये ही तो जरिये होते है ।फिर पुरे दिन उस सभा में अपना विशेष योगदान देकर शाम को किसी राजा की तरह सरकारी रथ यानी बस में अपने घर की और प्रस्थान करते हुए और सोचते हुए की आज घर में ये भोजन बना होगा या ऐसे करूँगा आज ये फ़िल्म देखनी है छोटे भाई से उसके स्कूल के बारे में बात करूँगा बस ऐसे ही कुछ घरेलू विचारो में खोये हुए अपनी जिम्मेदारियो को कन्धे पर उठाये हुए अपने घर पहुचते है ।और फिर बस उन्ही घरेलू कामो में उलझ कर कब हम नींद के आगोश में सिमट...