...

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आखों से बेख़बर
आखों से बेख़बर,
दिल से मजबूत रहो,
इस अज़ीब सी दुनिया से,
कहीं दूर तुम खुद में मसरूफ रहो,
वैसे भी कभी रास न आई,
ये महफिलों की शाम मुझे,
तो अच्छा ही है थोड़ा खामोश, मगर......
कभी थोड़ा सा ढलती रातों का शोर रहो.
© abhay chaturvedi