//आप के बग़ैर//
"बंज़र पड़ी है दिल की जमीं आप के बग़ैर,
अब लगता नहीं है दिल कहीं आप के बग़ैर।
मुस्कान भूलकर भी कभी लबों को न चूमती,
दुनिया अब न लग रही है हसीं आप के बग़ैर।
रुक सा गया अब ख़्वाबों के आवाजाही का सिलसिला,
चैन-ओ-सुकूँ है मिलता कहीं नहीं आप के बग़ैर।
बद-इन्तजामियों का मंजर है घर पर दिखता हर कहीं,
हर चीज़ है बिखरा कहीं का कहीं आप के बग़ैर।
हर काम में टालने का लग गया है खून नहीं करने का,
रही न ज़िंदगी पहले से हसीं आप के बग़ैर।
बेख़ौफ़ सी हो गई हैं हर कोने की मकड़ियाँ,
कोनों में जाले अब सब बुनने लगीं आप के बग़ैर।
तन्हाई और फ़ितरत से हो गई है चिड़चिड़ी
दिल पाएगा राहत कहीं न रहा यकीं आप के बग़ैर।
परवान फिर से चढने लगी है अपनी काफ़िरी,
हम खो न बैठे सदा के कहीं ये दिं आप के बग़ैर।
अब क्या क्या बयाँ करे हकीक़त तुम बतलाओ,
क्या जीना ही छोड़ दें "सैयाही" यहीं आप के बग़ैर।।"
By Rashmi Shukla
© ©Saiyaahii🌞✒
अब लगता नहीं है दिल कहीं आप के बग़ैर।
मुस्कान भूलकर भी कभी लबों को न चूमती,
दुनिया अब न लग रही है हसीं आप के बग़ैर।
रुक सा गया अब ख़्वाबों के आवाजाही का सिलसिला,
चैन-ओ-सुकूँ है मिलता कहीं नहीं आप के बग़ैर।
बद-इन्तजामियों का मंजर है घर पर दिखता हर कहीं,
हर चीज़ है बिखरा कहीं का कहीं आप के बग़ैर।
हर काम में टालने का लग गया है खून नहीं करने का,
रही न ज़िंदगी पहले से हसीं आप के बग़ैर।
बेख़ौफ़ सी हो गई हैं हर कोने की मकड़ियाँ,
कोनों में जाले अब सब बुनने लगीं आप के बग़ैर।
तन्हाई और फ़ितरत से हो गई है चिड़चिड़ी
दिल पाएगा राहत कहीं न रहा यकीं आप के बग़ैर।
परवान फिर से चढने लगी है अपनी काफ़िरी,
हम खो न बैठे सदा के कहीं ये दिं आप के बग़ैर।
अब क्या क्या बयाँ करे हकीक़त तुम बतलाओ,
क्या जीना ही छोड़ दें "सैयाही" यहीं आप के बग़ैर।।"
By Rashmi Shukla
© ©Saiyaahii🌞✒