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छठ पूजा
छठ पूजा क्यों करते है?
क्या इसके पीछे कोई कथा हैं?
छ्ठ में क्या-क्या होता है ?
ये कितने दिनों तक चलता है?

एक मिनट आपके सारे सवालों का उत्तर मिलेगा|

ब्रह्मा की मानास पुत्री और सूर्य नारायण देव की बहन है ,शष्टी मईया।इस दिन शष्टी मईया की पूजा होती है।इसीलिए इसे छठ पूजा कहते है। छठ में हम सूर्य देव और छठी मईया की पूजा करते है।इस पर्व को बिहार,झारखंड तथा उत्तर प्रदेश में भी किया जाता है।इसे तो विदेश में भी कुछ लोग करते है ,जो हमारे हिन्दू भाई है।छठ पूजा सबसे बड़ा और सबसे कठिन व्रत होता है।

छठ पूजा की कई कथाएं है।
जैसे:-
1)रामायण में भी छठ पूजा की कथा है।
जब राम रावण को मारने के बाद लक्ष्मण तथा सीता माता के साथ अयोध्या आए।तब उन्होंने भी इस उपवास का पालन किया था

2) कर्ण की काथा।
कर्ण जो कि सूर्य देव के पुत्र है,वे सूर्य भगवान के सबसे परम भक्त थे।पानी में घंटों खड़े रहकर सूर्य भगवान को अर्ध्य देते थे।इस कथा से हम यह देख सकते है कि जो छठ करते है वे भी पानी में खड़े रहकर डूबते सूरज को अर्ध्य देते है तथा आगले दिन उगते सूरज को अर्ध्य देते है।

3)द्रौपदी की कथा।
पांडवो के स्वस्थ तथा दीर्घ आयु के लिए द्रौपदी भी सूर्य भगवान की उपासना करती थी।तथा द्रौपदी की इसी सारधा के कारण पांडवो को उनका राज्य भी मिला।

4) कहानी है।
राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी।तो महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रकामेष्टि याजना करने की सलह दी।यज्ञ होने के बाद महर्षि कश्यप ने रानी मालिनी को खीर खाने को दी।तब राजा और रानी को संतान प्राप्ति तो हुई।किन्तु उनकी किस्मत इतनी भी अच्छी नहीं थी। उन दोनों का बच्चा मृत पैदा हुआ।राजा जब अपने संतान का मृत शरीर लेकर शमशान गए फिर उन्होंने यह भी सोचा कि " मै भी अपनी जान दे दूंगा।"राजा अपनी जान देने ही वाला था।तब ही देवसेना प्रकट हुई। जिन्हें हम शष्टी भी कहते है।छठी मईया ने बोला "अगर तुम मेरी पूजा सच्चे मन से करोगे।तो तुम्हारे मन की जो भी इच्छा होगी,वो पूरी हो जाएगी।राजा ने देवी कि सच्चे मन से पूजा की और व्रत कर उन्हें प्रसन्न किया।देवी ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया।माना जाता है जिस दिन राजा ने वह पूजा की थी। वह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के षष्ठी का दिन था।उस दिन से आज तक ये पूजा हो रही है।

क्यों करते है छठ पूजा? इस व्रत को अपने घर की शुभ शांति, संतान प्राप्ती तथा दीर्घ आयु के लिए, इस पर्व को करते है।

छठ पूजा में चार महत्वपूर्ण दिन होते है।

पहला दिन(नहाय-खाय)
यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी का दिन होता है। इस दिन घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है।इस दिन व्रती स्नान-ध्यान कर सूर्य उपासना करती हैं। वहीं सूर्य देव की पूजा के बाद भोजन ग्रहण करती हैं। इसमें चावल दाल और लौकी की सब्जी खाई जाती है। नहाय खाय के दिन पूजा करने से व्रती के सुख और सौभाग्य में अपार वृद्धि होती है।इस दिन सात्विक भोजन किया जाता है,ताकि तन और मन से शुद्ध हो सके।सबसे पहले व्रती खाती है फिर उसके बाद घर के बाकी सदस्य खाते है।

दूसरा दिन (खरना)
खरना का अर्थ होता है शुद्धिकरण।यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के पंचमी का दिन होता है।इस दिन जो व्रत किए होते है, वो पूरे दिन का उपवास रखते है। न खाते है नाही पीते है।जिसने भी छठ किया है, वे 36 घंटो का व्रत रखता/रखती है।शाम को गुड़ वाली खीर प्रसाद के तौर पर बनाई जाती है।जिसे रशियाओ खीर कहते है।जिसे पूजा करने के बाद व्रती खाती है।उसी रात छठी मईया के लिए चासनी,गेहूं का आटा,घी से बनाई गई मिठाई ,ठेकुआ को प्रसाद के तौर पर बनाया जाता है।

तीसरा दिन ( संध्या अर्घ्य)
यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के षष्ठी का दिन होता है।ये महत्पूर्ण दिन होता है।इस पूरे दिन व्रती निर्जल ( बिना पानी पिए) और उपवास रखती है।शाम को वह नदी या तालाब के यहां इकट्ठा हो कर डूबते सूरज को अर्ध्य देती है। जब व्रती घाट की ओर अर्घ्य देने के लिए जा रही होती है। तब ही उनका बेटा या कोई पुरुष बांस की बनी हुई एक टोकरी लेकर आगे- आगे चल रहा होता है।जिसे बहेंगी कहते है।बहेंगी में फल,प्रसाद और पूजा की सामग्री रखी जाती है।

चौथा दिन ( उषा अर्घ्य )
यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के सप्तमी का दिन होता है। इस दिन उगते सूरज की पूजा की जाती है।घर के लोग और व्रती फिर से एक और बार नदी के किनारे इकट्ठे होते है और छठी मईया को प्रसन्न करने के लिए उनके गीत गाते है।फिर व्रती प्रसाद और कच्चे दूध का सेवन कर अपना व्रत तोड़ती है। तो इस तरह होती है, छठ पूजा।

जो किसी कारण वस यह पूजा नहीं कर पाते या नहीं करते,वो भी अगर जिन्होंने छठ किया है उनको प्रणाम करते है तथा उनका आशीर्वाद लेते है तो वो भी उतने ही पुण्य के भागीदार बनेगे जितने कि वे लोग जिन्होंने छठ किया था।

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