...

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शोर - ए - अजमत ( شورِ عظمت
गमों ने सींचा है मुझे
आशुओं ने संवारा है
आह तड़प ने मुझमें हौसला भरा
और तन्हाई ने निखारा है
जब उद्गम मेरी कहानी की
सैलाब है तूफान है ।
जब अपने आत्म विश्वास और सामर्थ्य पे
गुमान है अभिमान है
फिर इन बुजदिल साजिश रचती आंधियों से
खामखा मैं क्यों डरूं ... खामखा मैं क्यों डरूं
मिट जाने की परवाह मैं क्यों करूं .......
मिट जाने की परवाह मैं क्यों करूं .......

जीत से मेरी यारी है
सैकड़ों हार मुझसे हारी है
मेरी खामोशी मेरे पतन का संकेत नही
एक बड़ी जंग की तैयारी है
मैंने नींदों से लड़कर
जानें कितने रात को दिन बनाया
जानें कितने इतराते बुलंदी - अंबर को
अपने संघर्ष से फर्श बनाया - जमीन बनाया
फिर किसी चुनौती के चुनौती से
खामखा मैं क्यों डरूं ... खामखा मैं क्यों डरूं
मिट जाने की परवाह मैं क्यों करूं .......
मिट जाने की परवाह मैं क्यों करूं .......

, مجھے فتح پسند ہے۔ میں سینکڑوں کھو چکا ہوں۔ میری خاموشی میرے زوال کی نشانی نہیں ہے۔ ایک بڑی جنگ کی تیاری میں نے اپنی نیند لڑی۔ جانے کتنی راتیں دن میں بدل گئیں۔ جانے کتنے فخر سے بنڈی - عنبر اپنی جدوجہد سے منزل بنائی۔زمین بنائی پھر چیلنج سے چیلنج تک خامخا میں کیوں ڈروں... خامخا میں کیوں ڈروں؟ میں کھو جانے کی پرواہ کیوں کروں...... میں کھو جانے کی پرواہ کیوں کروں......


© Rajeev Ranjan