...

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अपेक्षाएं
ये जो नए रिश्ते होते है बड़े ही नाजुक होते है
क्युकी इनमें सब थोड़ा होता है
थोड़ा दर्द, थोड़ा प्यार हम बोहोत कुछ महसूस कर जाते है पर समझ नहीं पाते कि ये हमेशा हम महसूस कर पाएगे या नहीं पर इन्हीं बातों के बीच जब वो मुझे उसके बारे में बताता है तब मै उसकी तरफ फिर खींची चली जाती हूं
वो मुझे अलग अलग नामों से बुला कर जो बोहोत ही प्यार भरे होते है मुझे सबसे बोहोत अलग महसूस करवाता है
मै सब भूलने को तैयार हो जाती हूं
सारा दर्द एक तरफ रख कर खुद को उसकी खुशी बनाने मै जुट जाती हूं
इन सब के बीच मै फिर भी डरी होती हूं कि मै कहीं फिर ना टूट जाऊ कहीं फिर मुझे अपना प्यार ले ना दुबे कभी हस्ते हस्ते शांत हो जाना कभी कुछ ना खाना और कभी इतना खुश रहना कि हर चीज महसूस होना ही बंद हो जाए
पर फिर कहीं एक दिन मेरा डर फिर निकाल आता है और फिर वो दर्द बन जाता है
वजह जानना है ?
क्युकी आज फिर मै अकली खड़ी हूं
फिर मुझे मुझसे ही नफरत करनी है
फिर मुझे खुद को कम समझना है
कहीं मैंने कुछ ग़लत तो नहीं कर दिया
वो मुझसे मायूस क्यों रह रहा है
अब वो मुझे उस प्यार से क्यों नहीं देख पा रहा
फिर जब मै खुद को समेट कर उससे पूछने जाती हूं और दूसरो के साथ वहीं इंसान को पति हूं जो अभी कुछ दिन पहले मेरे साथ था
तो फिर वो दर्द बड़ा बन जाता है कि शायद इस बार मेरी ही कमी होगी
फिर मैंने इतनी आपेक्षा कर ली होगी की उन्हे गुठन हो रही होगी
बस यही दर्द अब रोज खुद के अंदर भर कर अब मै खुद को पूरा करने चली हूं
फिर किसी रह मै जब कोई उनके जैसा फिर मिले तो मै खुद को नहीं खोजंगी
अब जीना सीख लिया है मैंने।