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parinda
खुले आसमान में उड़ने के सपने मैं भी हर रोज देखता हूं
मगर तेरी बंदिशों का मारा मैं उड़ कहां पाता हूं?
जुनून में पिंजरा तोड़ कर उड़ने की कोशिश करता मैं पंख फड़फड़ा तरह जाता हूं।
तू जेल खाने में 1 दिन नहीं रह सकता। मैं पिंजरे में दिन कैसे बिताता हूं?
तुम्हें तो फिर भी आदत है जमीन पर चलने की तो सोच में आसमान में उड़ान भरने वाला अपने पंखों को खोल भी नहीं पता हूं।
माना कि तू मुझे समय पर खाना देता है मगर।
मैं तेरी तरह खुद का आशियाना नहीं बना पाता हूं।
तू रो कर अपने दर्द सबको बांट देता है तो सोच में बेजुबान तो बोल भी नहीं पाता हूं।
तुम क्या सोचते हो सपने सिर्फ तुम ही देखते हो? मैं भी हर रोज सबसे ऊंची उड़ान चाहता हूं। मगर तेरी बंदिशों का मारा मैं उड़ कहां पाता हूं?
Miraan ruth ...........
© miraan ruth