#कन्यादान
" अरे लड़की के मम्मी पापा कहाँ हैं भाई ? उन्हें भी बुलाओ स्टेज पर। सबके फोटो हो गए हैं बस लड़की के मम्मी पापा बचे हैं। "
मैं कैमरामैन था, जयमाला स्टेज पर सभी के फोटो क्लिक कर रहा था। जितना खूबसूरत लड़का उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत लड़की।
नजरें नीचे झुकाए उस दुल्हन को देख कोई नहीं कह सकता कि वो एक गरीब घर की बेटी है जिसके पिता ने अपने आँगन का चाँद तोड़कर कन्यादान में दे दिया,
ऐसा लग रहा था मानों किसी रहीस घर की गुड़िया को दुल्हन बनाकर बैठाया गया है। जबकि यह चाँद तो उस बूढ़े गरीब मातापिता की पूंजी था।
पंडित जी के जोर से कहने पर सभी की नजरें लड़की के मम्मी पापा को ढूंढने लगीं।
लड़की के पिता मेहमानों के आगे हाँथ जोड़कर खड़े खड़े सभी से पूंछ रहे थे कि भैया खाना कैसा बना ? कोई कमी हो तो माफ कर देना।🙏,
लड़की वाले हैं न, समाज कहता है कि लड़की वाले का पूरी शादी के समय सर झुका रहना चाहिए इसलिए सभी से पूछ पूछ कर खाना खिला रहे हैं, कोई रह न जाये ।
पिता को लड़के के दोस्त आराम से कंधे पर हाँथ रखकर बाबू जी चलिए फोटो खिचानी हैं कहते हुए स्टेज पर लाये तो उधर अगले प्रोग्राम की तौयारी में लगी माँ को लड़की की बहन स्टेज पर लेकर आई।
जैसे ही मैंने कैमरा आंख पर लगाया फोटो क्लिक करने के लिए तो मेरी नजर उस पिता पर पड़ी जिससे लड़की की माँ कुछ पैसे स्टेज पर चढ़कर मांग रही थी उस रस्म को पूरा करने के लिए जो दोनों के ऊपर पैसे की न्योछावर के रूप में दिए जाते हैं।
नंगे पैर गन्दी सी पैंट और पुराने से कोट पहने बाप के गले में पुराना पसीना पुछा हुआ गमछा पड़ा था, अपनी पत्नी की बात सुनकर हड़बड़ाए और दाहिने जेब से दो पचास के नोट निकाले, एक अपने हाँथ में पकड़ा एक अपनी पत्नी को दे दिया। लड़कीं की माँ दामाद के पीछे खड़ी थीं और पिता बेटी के पीछे।
स्माइल.... और क्लिक करके मैंने जैसे ही कैमरा हटाया तो देखा पसीने से भीगे चेहरे पर दाहिनी आंख से आँशु निकल रहे थे पिता के।
हाँथ कपकपा रहे थे और नजरें समधी पर थीं और काँपते हुए दोनों हाँथ जोड़कर कोशिशें थीं समधी से कह देने की कि मेरी बेटी से कोई गलती हो जाये तो माफ करते रहना, फूल सी बच्ची है मेरी।
उम्र कोई 55 की होगी बूढ़े बाप की और माँ की उम्र कोई 53 की। घर की इकलौती बेटी से आज निपट गया दम्पति यह आवाज मेरे कानों में जैसे ही पड़ी मेरी आँख से उसी पल आँशु छलक पड़ा।
आखिर कैसी किस्मत है एक बेटी के माँ बाप की कि संतान होते हुए भी आगे की जिंदगी अब अकेले ही काटेंगे।
जिस व्यक्ति ने स्टेज पर चढ़ते हुए अपनी चप्पल उतार दी हो, जेब में रखे पैसों के बचे दो टुकड़े भी वापिस कर दिए हों और जिसने शादी में खुदके लिए छोड़ो खुदकी पत्नी के लिए साड़ी तक खरीद के न दे पाई हो तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितनी गरीबी होगी उनकी।
जब पता किया मैंने तो पता लगा कि चार बीघा जमीन है जो मोटरसाइकिल देने के लिए दो साल के लिए ठेके पर उठा दी उन्होंने। ताकि बच्ची को आने जाने में दिक्कत न हो और लड़का खुश रखे लड़कीं को।
अपनी तो जिंदगी कट ही गई है क्या करना, इस लिए लड़की के जेवर बनवाने के लिए माँ ने कुछ उधार पैसे लेकर और अपने जेवरों को मिलाकर बनवाए।
पूरी बारात नाचती गाती मुस्कराती सुबह तक बैठी रही शायद ही किसी ने ध्यान दिया हो।
जब रात में लड़कीं लड़का एक साथ खाना खाने बैठते हैं तब बेटी ने पापा को पास बुलाकर कहा कि " पापा आपने खाना नहीं खाया होगा आओ बैठो पास खा लो ",
तब जो शाम से रुका उस पिता का गला फूटा है रुधन से उसको लिख नहीं सकता मैं और शायद ही वहां खड़ा कोई भावुक न हुआ हो।
आज तो पूछ लिया बेटी ने, कल से उस आंगन में वो भी नहीं होगी। एक तरफ बूढ़ा पड़ा रहेगा तो दूसरे कोने में बूढ़ी अपनी गुड़िया की बचपन की उछल कूद की याद में।
सबके लिए नॉर्मल सी बारात है , बहुत बड़ा त्योहार है किसी का। लेकिन उस पिता के लिए क्या है मुझे नहीं पता।
जब वो शादी तय करके आये थे बेटी की तो पूरे मोहल्ले में मोतीचूर के लड्डू बांटे थे। और उसी दिन से पैसे जोड़ने में लग गए। बेटी की पसन्द की साड़ियां लाये, दामाद की पसन्द की गाड़ी लाये लेकिन अब बुढापा कैसे कटेगा उनका ?
तो इस सवाल पर जमाना कहता है कि बेटी को तो जाना ही था एक न एक दिन। समय काटेगा उनकी जिंदगी... और न जाने क्या क्या....।
मुझे आज भी दिखाई देते हैं वो काँपते हाँथ जयमाला स्टेज पर उस बुजुर्ग के। लाल गमछे से जब उन्होंने दो बार आँशु पोंछ लिए फिरभी आंख से आँशु निकलना बंद नहीं हुए तो चेहरा कई बार कैमरों से छुपाने की कोशिश की उन्होंने, लेकिन हम तो देख ही रहे थे न।
खैर दो महीने बाद जब पता चला कि दामाद और गुड़िया उन्हें अपने साथ ले गए और उस घर को खाली छोड़ गए तब मैं एक बार और गया वहां।
जहां एक खूंटी पर 2 साल की लड़कीं की फ्रॉक टँगी थी। वो शायद उस लड़की की ही थी, जिसे देख देख कर शादी के बाद माँ बाप ने दो महीने गुजारे होंगे और आज फ्रॉक को अपने खाली घर के हवाले कर गुड़िया की खुशियों के लिए विदेश चले गए।
© JUGNU
मैं कैमरामैन था, जयमाला स्टेज पर सभी के फोटो क्लिक कर रहा था। जितना खूबसूरत लड़का उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत लड़की।
नजरें नीचे झुकाए उस दुल्हन को देख कोई नहीं कह सकता कि वो एक गरीब घर की बेटी है जिसके पिता ने अपने आँगन का चाँद तोड़कर कन्यादान में दे दिया,
ऐसा लग रहा था मानों किसी रहीस घर की गुड़िया को दुल्हन बनाकर बैठाया गया है। जबकि यह चाँद तो उस बूढ़े गरीब मातापिता की पूंजी था।
पंडित जी के जोर से कहने पर सभी की नजरें लड़की के मम्मी पापा को ढूंढने लगीं।
लड़की के पिता मेहमानों के आगे हाँथ जोड़कर खड़े खड़े सभी से पूंछ रहे थे कि भैया खाना कैसा बना ? कोई कमी हो तो माफ कर देना।🙏,
लड़की वाले हैं न, समाज कहता है कि लड़की वाले का पूरी शादी के समय सर झुका रहना चाहिए इसलिए सभी से पूछ पूछ कर खाना खिला रहे हैं, कोई रह न जाये ।
पिता को लड़के के दोस्त आराम से कंधे पर हाँथ रखकर बाबू जी चलिए फोटो खिचानी हैं कहते हुए स्टेज पर लाये तो उधर अगले प्रोग्राम की तौयारी में लगी माँ को लड़की की बहन स्टेज पर लेकर आई।
जैसे ही मैंने कैमरा आंख पर लगाया फोटो क्लिक करने के लिए तो मेरी नजर उस पिता पर पड़ी जिससे लड़की की माँ कुछ पैसे स्टेज पर चढ़कर मांग रही थी उस रस्म को पूरा करने के लिए जो दोनों के ऊपर पैसे की न्योछावर के रूप में दिए जाते हैं।
नंगे पैर गन्दी सी पैंट और पुराने से कोट पहने बाप के गले में पुराना पसीना पुछा हुआ गमछा पड़ा था, अपनी पत्नी की बात सुनकर हड़बड़ाए और दाहिने जेब से दो पचास के नोट निकाले, एक अपने हाँथ में पकड़ा एक अपनी पत्नी को दे दिया। लड़कीं की माँ दामाद के पीछे खड़ी थीं और पिता बेटी के पीछे।
स्माइल.... और क्लिक करके मैंने जैसे ही कैमरा हटाया तो देखा पसीने से भीगे चेहरे पर दाहिनी आंख से आँशु निकल रहे थे पिता के।
हाँथ कपकपा रहे थे और नजरें समधी पर थीं और काँपते हुए दोनों हाँथ जोड़कर कोशिशें थीं समधी से कह देने की कि मेरी बेटी से कोई गलती हो जाये तो माफ करते रहना, फूल सी बच्ची है मेरी।
उम्र कोई 55 की होगी बूढ़े बाप की और माँ की उम्र कोई 53 की। घर की इकलौती बेटी से आज निपट गया दम्पति यह आवाज मेरे कानों में जैसे ही पड़ी मेरी आँख से उसी पल आँशु छलक पड़ा।
आखिर कैसी किस्मत है एक बेटी के माँ बाप की कि संतान होते हुए भी आगे की जिंदगी अब अकेले ही काटेंगे।
जिस व्यक्ति ने स्टेज पर चढ़ते हुए अपनी चप्पल उतार दी हो, जेब में रखे पैसों के बचे दो टुकड़े भी वापिस कर दिए हों और जिसने शादी में खुदके लिए छोड़ो खुदकी पत्नी के लिए साड़ी तक खरीद के न दे पाई हो तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितनी गरीबी होगी उनकी।
जब पता किया मैंने तो पता लगा कि चार बीघा जमीन है जो मोटरसाइकिल देने के लिए दो साल के लिए ठेके पर उठा दी उन्होंने। ताकि बच्ची को आने जाने में दिक्कत न हो और लड़का खुश रखे लड़कीं को।
अपनी तो जिंदगी कट ही गई है क्या करना, इस लिए लड़की के जेवर बनवाने के लिए माँ ने कुछ उधार पैसे लेकर और अपने जेवरों को मिलाकर बनवाए।
पूरी बारात नाचती गाती मुस्कराती सुबह तक बैठी रही शायद ही किसी ने ध्यान दिया हो।
जब रात में लड़कीं लड़का एक साथ खाना खाने बैठते हैं तब बेटी ने पापा को पास बुलाकर कहा कि " पापा आपने खाना नहीं खाया होगा आओ बैठो पास खा लो ",
तब जो शाम से रुका उस पिता का गला फूटा है रुधन से उसको लिख नहीं सकता मैं और शायद ही वहां खड़ा कोई भावुक न हुआ हो।
आज तो पूछ लिया बेटी ने, कल से उस आंगन में वो भी नहीं होगी। एक तरफ बूढ़ा पड़ा रहेगा तो दूसरे कोने में बूढ़ी अपनी गुड़िया की बचपन की उछल कूद की याद में।
सबके लिए नॉर्मल सी बारात है , बहुत बड़ा त्योहार है किसी का। लेकिन उस पिता के लिए क्या है मुझे नहीं पता।
जब वो शादी तय करके आये थे बेटी की तो पूरे मोहल्ले में मोतीचूर के लड्डू बांटे थे। और उसी दिन से पैसे जोड़ने में लग गए। बेटी की पसन्द की साड़ियां लाये, दामाद की पसन्द की गाड़ी लाये लेकिन अब बुढापा कैसे कटेगा उनका ?
तो इस सवाल पर जमाना कहता है कि बेटी को तो जाना ही था एक न एक दिन। समय काटेगा उनकी जिंदगी... और न जाने क्या क्या....।
मुझे आज भी दिखाई देते हैं वो काँपते हाँथ जयमाला स्टेज पर उस बुजुर्ग के। लाल गमछे से जब उन्होंने दो बार आँशु पोंछ लिए फिरभी आंख से आँशु निकलना बंद नहीं हुए तो चेहरा कई बार कैमरों से छुपाने की कोशिश की उन्होंने, लेकिन हम तो देख ही रहे थे न।
खैर दो महीने बाद जब पता चला कि दामाद और गुड़िया उन्हें अपने साथ ले गए और उस घर को खाली छोड़ गए तब मैं एक बार और गया वहां।
जहां एक खूंटी पर 2 साल की लड़कीं की फ्रॉक टँगी थी। वो शायद उस लड़की की ही थी, जिसे देख देख कर शादी के बाद माँ बाप ने दो महीने गुजारे होंगे और आज फ्रॉक को अपने खाली घर के हवाले कर गुड़िया की खुशियों के लिए विदेश चले गए।
© JUGNU