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तक़दीर का पासा
एक गाँव में दो भाई रहते थे लेकिन दोनों की आपस में कभी बनती नहीं थी. एक का नाम रमेश और दूसरे का नाम सुरेश था. रमेश को
अपने धन दौलत पर बहुत घमंड था और गलत काम कर पैसा कमाता था. सुरेश मेहनत मज़दूरी करके अपना एवं परिवार का गुज़र बसर करता था मिलो दूर पत्थर ढोने के लिए जाता था रोज के 100रुपये मिलते थे, उसे लेकिन हसीं ख़ुशी से रहता था, वहीं रमेश के घर पैसा तो था लेकिन रोज कलेश होता सूखी नहीं रहता था.

दुःखी रहता था.वो अपने भाई को देख कर जलता था एक रमेश का काम नहीं हुआ तो पैसे नहीं मिले तो घर में अनाज नहीं था, बच्चे भूख से तड़प रहे थे, इधर बिचारा बच्चों को तड़पता देख भाई के पास मदद के लिए चला गया लेकिन भाई ने उसे धिक्कार कर बाहर निकाल दीया. तभी वो वहाँ से लौट ही रहा था की एक पैसों से भरा बैग वहीं कहीं पड़ा मिला सुरेश को उसने इधर उधर अवाज लगाईं लेकिन किसी ने नहीं सुना तो पैसों से भरा बैग वो घर लेकर आ गया तब कुछ पैसों से वह अनाज और बच्चों के लिए खाना लाया.
इसी तरह सुरेश अमीर हो गया उन पैसों से काम शुरू कर दीया.

कुछ वर्ष बीत गए घर बन गया नौकर चाकर सब आ गए. इधर रमेश का गलत धंधा बंद हो गया खाने के लाने पड़ गए तब रमेश भाई के घर सहायता के लिए गया तो उसने भाई को गले लगा लिया और अपने राज पाट का कुछ हिस्सा भाई को दे दीया.. तो रमेश की अपनी गलती का एहसास हुआ.

कहा उसने की पैसा कितना भी हो मनुष्य को घमंड नहीं करना चाहिए. क्योंकि जब तकदीर का पासा पलट जाए तो राजा को भी रंक बना देता है.
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© Paswan@girl