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स्कूल में
बचपन में जब मैं स्कूल पढ़ने जाया करता था । हमारी स्कूल का समय 10:00 बजे का था। मैं स्कूल पहुंच कर प्रार्थना स्थल पर अपनी आंखें मीच कर व दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना में बैठ जाता था। मास्टर डंडे लेकर हमारे आसपास घूम रहे होते और हम प्रार्थना को बोझ समझ कर शीघ्र प्रार्थना खत्म होने की प्रतीक्षा कर रहे होते। कभी-कभी अपनी आंखें बीच प्रार्थना में खोल भी लिया करते हैं। फिर मास्टर हमारे पास आकर आंखें बंद करने का इशारे करते। करीबन आधा घंटे की प्रार्थना होने बाद हम अपनी अपनी कक्षाओं में बैठ जाते। इसके कुछ क्षण बाद हमारी कक्षा का रजिस्टर लिए मास्टर पढ़ने आते।
मैं कक्षा में हमेशा आगे बैठा करता था।
और मेरे बगल में कुछ अन्य साथी बैठ जाते थे। और कक्षा में सबसे पीछे वाली लाइन में कुछ उपद्रवी बच्चे बैठा करते।

और इसलिए मास्टर उनकी शरारतों को देखते हुए मैं कई बार मेरे साथ मेरी वाली लाइन में बैठा दिया करते थे।

कक्षा में नया अनुशासन पूर्वक रहने वाला छात्र था। हिंदू कभी कभार मैं भी शरारत कर लिया करता था।
किंतु हमारे गांव के अन्य लड़के बहुत ही उग्रवादी थे। वे मुझसे व मेरे साथियों से छुआछूत जैसा आचरण व जातिवादी रवैया अपनाया करते थे। वह हमारे पास बैठने से भी नफरत करते थे। जब हम खेलघण्टी में अल्पाहार खाने बैठते तो वे पास बैठने पर दूर उठ कर बैठते।
इसके अलावा भी बहुत सारी चीजों में भेदभाव करते। इतना ही नहीं उनके परिजन भी उन्हें भेद अभेद का ज्ञान दिया करते। हालांकि भी हमसे बहुत ही गंदे रहा करते थे। किंतु ने यही सिखाया जाता कि हमसे ऊपर है और हम उनसे नीचे। एक बार की बात है जब मैं किसी के घी लेने गया था, तो बच्चों ने बोला "अरे चमार जाति का है, और इसने घी के हाथ लगा दिए।" यह सुनकर मुझे मन में बड़ा बुरा लगा ।
इसके अलावा भी मैं जब बचपन में आस पड़ोस में अपने घर के लिए पानी लेने के लिए जाता था। वहां पर भी औरतें गलती से अपने बर्तन छू लेने पर काफी भला बुरा कहा करती थी।
ऐसा ही बर्ताव वह बच्चे किया करते थे। और वैमनस्यता का भाव रखते थे।
किंतु कुछ समझदार हमारे पास में बैठते हमारे साथ खेलते कुदते भी थे, जो भी मेरे अच्छे दोस्त भी बने।

खैर छोड़िए, उन्हें नहीं पता था कि वह भी आदिवासी अर्थात अछूत समान ही है। उन्हें नहीं पता की उन्हें भी आज भी जालौर,बाड़मेर साइड में ठाकुर के आने पर जूती का पानी पिलाया जाता है।
उन्हें नहीं पता कि कि उन्हें कभी वनवासी कहा गया था। कभी-कभी मैं सोचता हूं कि आज मानव- मानव में भेद क्यों कर रहा है जबकि ईश्वर ने सभी को एक सा जीवन दिया है वही हाथ वहीं पर वही खून वही मिट्टी वही पानी और भी धरती में पाये जाने वाले अंश ।
तो फिर यह सब क्यों?