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रिश्तों में खटास (भाग २)
दिन बीतते जा रहे थे पर रहस्य खुलने का नाम ही नहीं ले रहा था । सबको पाण्डेय दरोग़ा जी से उम्मीद थी, अब तो जो कुछ करेंगे वो ही करेंगे सब ऐसा ही कहते। महेश्वरी आन्टी ने तो मिसेज़ पाण्डेय से कह भी दिया" अरे ज़रा पाण्डेय जी को मामला पता लगाने के लिए बोलिए"। मिसेज़ पाण्डेय भी गम्भीरता से सिर हिलाते हुए बोली कोशिश कर रहे है, जल्द ही पता चल जाएगा। इन बातों में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था, पर माँ
अक्सर ड़ाँटती " अभि फ़ालतू की बातों पर नहीं पढ़ाई पर ध्यान दो"। दरअसल दादी की बीमारी के कारण माँ ज़्यादा बाहर नहीं निकलती थी। अकसर मोहल्ले की महिलाएँ ही हमारे घर आ जाती थी। दादी से भी मिल लेती और मसालेदार ख़बरें भी सुना जाती। उन्हीं से पता चला शर्मा जी अपने बेटों की शादी गंगानगर से न करके मध्यप्रदेश के किसी गाँव से कर रहे है। वहाँ उनके मामा का परिवार रहता था। किसी को गाँव का नाम तक न पता था। पूरे मुहल्ले को गंगानगर में ही दावत देने वाले थे शर्मा जी , किसी को भी साथ चलने का न्योता नहीं था।
शर्मा जी की इस गोपनीयता के कारण सब के मन में उथल-पुथल हो रही थी। हम सब दावत भी खा आये। सारी महिला मंडली ने अपने -अपने तरीक़े से मिसेज़ शर्मा से रहस्य उगलवाने की कोशिश की पर एक ही जवाब मिला
"लड़की बहुत अच्छी है, आएगी तब मिलने ज़रूर आना"। दावत के दो दिन बाद मैंने देखा, पाण्डेय जी और उनके पीछे मोहल्ले के अंकल ,आंटी तेज़ी से हमारे घर की तरफ़ आ रहे हैं। मैं अंदर जा कर माँ को बताता ,इसे पहले सब लोग हमारे दरवाज़े तक आ गए।घंटी की आवाज़ सुन पिता जी ने दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा खुलते ही पाण्डेय जी बोले
"भाभी जी सबके लिए चाय नाश्ते का प्रबंध करवा दीजिए सबको एक ख़बर सुनाना है"।माँ भी गोपी हमारा नौकर को चाय -पकोड़े बनाने का निर्देश दे कर वहीं आ कर बैठ गई। अब पाण्डेय जी ने बोलना शुरु किया " अपने शर्मा जी की बड़ी बहू सुशीला उत्तराखंड के सांपला गाँव की है, बी.ए. पास है, सुर की पक्की है ,रेडियों स्टेशन में लोक गीत का प्रोग्राम देती है । माँ सोतेली है इसलिए ऐसे लड़के से शादी कर रही है। पिता की कुछ चलती नहीं है। सुना है लड़की बहुत गुणी है"। उनकी बात समाप्त होते ही पाँच मिनट के लिए शान्ति छा गई। ऐसा लगा जैसे सबको गहरा धक्का लगा हो। चुप्पी तोड़ते हुए महेश्वरी जी बोले," पाण्डेय जी आपको यह सब कैसे पता चला"। पाण्डेय जी थोड़ा मुस्कुरा कर अपनी मूँछों पर ताव देते हुए बोले "हम पुलिस वाले है भाई"। सबके चेहरे पर मुस्कान की लकीर दौड़ गई ।फिर गला साफ़ करते हुए बोले " शर्मा जी का साला मेरे पुराने सहकर्मी रामदीन के पुश्तैनी मकान के पास रहता है, यह बात मुझे पता थी। पर रामदीन के पुश्तैनी घर का पता नहीं मालूम था। रामदीन भी रिटायर्ड हो गया इसलिए उससे सम्पर्क नहीं हो पा रहा था । मैंने अपनी खोज रामदीन का पता ढूँढने से शुरु की। रामदीन का पता मिलते ही अपने आप एक से एक कड़ी जुड़ती गई । रामदीन ने शर्मा जी के साले से विवाह स्थल ज्ञात किया । इत्तफ़ाक़ से मेरा एक जूनियर उसी गाँव मे कार्यरत है, उसी ने सारी जानकारी खोज निकाली"। नाश्ता करने के बाद सब अपने-अपने घरों को चले गए। कुछ दिनों के बाद शर्मा जी अपने दोनों बेटे व बहुओं के साथ वापस आ गए ।