...

7 views

Hardwork+Smartwork+Luck=Success
लम्बे समय से मेहनत कर रहा था और आस लगाए बैठा था कि एग्जाम अच्छा होगा। फिर वो दिन आया जब एग्जाम का स्टेटस आया। मैंने अपना चेक किया तो पास के 1 जिले X में एग्जाम केंद्र था, दोस्त का भी देखा;उसका भी वहीं था। फिर 4 दिन बाद प्रवेश पत्र आया। मैंने download किया और भौंच्चका रह गया, मेरा केंद्र दूसरे राज्य Y में दे दिया गया था। रास्ता देखा तो करीबन 4 घंटे का।
घर से बस स्टैण्ड, बस स्टैण्ड से X जिले तक, फिर वहां से ऑटो से मेट्रो तक, मेट्रो Change, फिर बस से P Chowk तक और अंत में ऑटो से Y केंद्र तक।
मुझे लगा कोई बात नहीं, पहुंच जायेंगे। मेरे मित्र का केंद्र पहले वाला ही था X। उसने मुझे आगाह किया कि Y केंद्र बहुत दूर है, पिछली बार मैं पहुंच नहीं पाया था इसलिए जल्दी जाना। आज पेपर है और मैं तैयार होने लगा। घर से 11:12 बजे निकला। बस स्टैण्ड तक सामान्यता 25-30 मिनट लगते हैं पर मुझे 1 घंटा 15 मिनट लगे।
कारण- भयंकर ट्रैफिक जाम, जो मैंने अपनी जिंदगी में मेरे शहर में कभी नहीं देखा था। पुलिस ने पहली बार ऐसी जगहों/T points को ब्लॉक कर दिया था जो प्राथमिक सड़कें थी। बस इसी वजह से लंबा जाम लग गया। 12:15 बजे मुझे बस स्टैण्ड से बस मिली X जिले तक। करीबन 100₹ दिए टिकट के। बस चली ही थी कि फिर से ट्रैफिक जाम मिल गया। वहां से निकलने के बाद बस 7-8 Km चली ही थी कि ड्राइवर ने उसको एक ढाबे पर रोक दिया। मैंने पूछा किसलिए रुकी है तो कंडक्टर ने कहा खाने के लिए- क्योंकि ये लंबे रूट की बस है। मेरा दिमाग़ खराब। मेरे दोस्त का फोन आया और पूछा कहां है? मैंने कहा अभी आधे रास्ते भी नहीं पहुंचा हूं। वो खिलखिलाया जोर जोर से और बोला कि तेरे लक्षण नहीं दिख रहे पहुंचने के। तभी मैंने बग़ल में दूसरी बस को देखा जो चल पड़ी थी। मेरे दिमाग में झट से आया कि उस बस को पकड़ लिया जाए। मै उतर कर उसके पीछे भागा। कंडक्टर ने खिड़की से मुंह बाहर निकालकर पूछा- कहां?
"X जिला"
"नई टिकट लगेगी"
"हां दे दूंगा"
ऐसा कहकर बस में बैठ गया।
"लाओ टिकट के पैसे"- कंडक्टर।
मैं अपना बटुआ ढूंढने लगा।
दिमाग़ एकदम सुन्न "कहीं पीछे वाली बस में तो नहीं भूल गया?"
एकबार फिर ढूंढा। भगवान का शुक्र है मिल गया।
100₹ निकालकर फिर दिए।
मरता क्या न करता, समय पर जो पहुंचना था।
20Km बाद फ्लाइंग मिली। बस रुकी टिकट चेकिंग के लिए। देरी पर देरी। 1:30 बजे बस ने X जिले में उतारा। ऑटो पकड़ी मेट्रो तक। फिर 1:53 बजे मेट्रो में बैठा। मेट्रो बदली... लंबा सबवे था...5-7 मिनट लग गए। 2:55 मिनट पर एग्जिट किया। दौड़ लगाकर ऑटो तक गया। Y केंद्र की दूरी थी 30 Km, समय बचा था 30 मिनट।
बस यहीं पर हड़बड़ी में गलती कर दी। यहां स्मार्टनेस नहीं दिखाई। ऑटो चालक से बात की वो बोला 250₹।
"दे दूंगा भाई...तू टाइम से पहुंचा दे बस"
"हां हां ज़रूर पहुंचा दूंगा... बैठो"
ऑटो की मैक्स स्पीड 60Km/hr
कैब की 120Km/हर
बस यहीं गलती कर दी। चल पड़ा ऑटो से 3:01 बजे।
"भाई भगाओ जितना भगा सको...50₹ एक्स्ट्रा दूंगा 😂"
3:36 बजे थोड़ी दूर रोका उसने Y केंद्र से।
"ये लो तुम्हारे पैसे" और मैं भगा Y केंद्र की तरफ। 3:37 पहुंचा।
देखा अंदर से दरवाजा बंद। 4-5 लोग और खड़े थे चुप चाप।
मुझे लगा कैसे गैर जिम्मेदार लोग हैं...बोल ही नहीं रहे कुछ, खड़े हैं ऐसे ही (जबकि खुद लेट था😂)।
मैं गिड़गिड़ाया गेट कीपर के आगे
"भईया गेट खोल दो...हाथ पैर जुड़वा लो.. चाहिए तो पैसा ले लो..पर अंदर आने दो... पेपर देना है।"
वो लोग टस से मस ना हुए।
15 मिनट गिड़गिड़ाने के बाद लगा सब समाप्त हो गया। क्यूंकि अब तो मुझे भी पता था कि पेपर शुरू हो चुका है अब कोई फायदा नहीं।
ऐसा लगने लगा जैसे सब कुछ लूट गया मेरा..कुछ नहीं बचा जिंदगी में.... हतोत्साहित होकर प्रवेश पत्र फाड़ दिया.... "वापस किस मुंह से जाऊंगा?कहीं और चला जाऊं सदा के लिए या इस बेकार जिंदगी से छुटकारा पा लू? किसी काम का नहीं हूं....इतनी तैयारी की और 7 मिनट लेट?"
पता नहीं और कैसे कैसे ख्याल दिमाग़ में आने लगे।
तभी एक ऑटो वाला बोला "वापस नहीं चलोगे सर?"
"नहीं"
"सर कुछ फ़ायदा नहीं है अब यहां रुकने का...आपका दिमाग ही खराब होगा"
फिर बाकी और जो थे 4-5 जिनकी एंट्री नहीं हुई थी वो भी बोले कि भाई चलो चलते हैं।
पूरे रस्ते यही सोचता रहा कि ये मेरे साथ क्या हुआ?
रात को 9:30 बजे वापस घर पहुंचा।
पूरा दिन खराब हुआ, दोगुने पैसे लगे और जिस काम के लिए गया को भी नहीं हुआ।
सुबह विश्लेषण किया तो समझ आया कि Hardwork के साथ साथ किस्मत और बंदे में Smart decision making power होनी चाहिए तभी सफलता मिलेगी।
जय हिन्द।।
© चक्षु बाबा🥇