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जिम्मेदार कौन?
चाय का पहला घूंट पीते ही अमन चिल्लाकर बोला, "यह चाय बनी है! कब सीखोगी चाय बनाना? तुम्हारी माँ..............." अमन बोलता रहा और शांति चुपचाप सुनती रही। उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे।

नौ साल की विधि और सात साल का आलेख जो खिलौनों से खेल रहे थे, सहम कर चुप हो गए।

कुछ देर बाद अमन किसी से फोन पर बात करते हुए घर से निकल गया।

आज शांति एक फैसला ले चुकी थी। विधि और आलेख को पड़ोस की भाभी के घर छोड़कर वह कुछ देर के लिए कहीं चली गई।

शाम को अमन के घर लौटने पर शांति ने अमन के हाथ में एक लिफाफा दिया और बच्चों को लेकर पार्क चली गई।

लिफाफे में रखे पत्र को पढ़ते ही अमन को ऐसा लगा उसके गाल पर जैसे थप्पड़ जड़ दिया था शांति ने। वह तीस साल पहले पहुँच गया, जब उसके माता- पिता ने पारिवारिक कलह के कारण तलाक ले लिया था। अब वह अपनी माँ के साथ रहने वाला था और उसकी बड़ी बहन पापा के साथ।

पापा के साथ न रहते हुए भी वह उनके जैसा ही तो बना। उन्ही की तरह पत्नी पर चिल्लाना और बच्चों का ध्यान न रखना उसकी आदत में शुमार था।

पहली बार अमन को अहसास हुआ कि वह अपने नाम को निरर्थक कर रहा है, जो पीड़ा जो दुःख उसने अपने बचपन में सहा वह आज उसे अपने बच्चों को देने जा रहा है। मन ही मन एक प्रण करता हुआ वह पार्क की तरफ चल पड़ा।

पार्क में शांति दोनों बच्चों को खेलता देख मुस्कुरा रही थी। उसके पास जाकर अमन बोला, "मैं आलेख को दूसरा अमन नहीं बनने दूँगा। जो दर्द जो कड़वाहट मैंने और दीदी ने सहे हैं मैं वह विधि और आलेख को नहीं दे सकता।"

घर लौटते हुए शांति के मन में एक ही प्रश्न था, अमन के व्यवहार का जिम्मेदार कौन?

परिवार को बिखरने से बचाने के लिए शांति ने घर लौटते ही वकील के बनाए उस तलाक के नोटिस को अलमारी में छिपा कर रख दिया और कुछ दिनों बाद फाड़कर फेंक दिया।

अब विधि के आलेख से उनके घर में अमन और शांति जो थी।
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A Note to Readers:
Today is Parent's Day...
A just wanted to send a message through this short story that our behaviour has a deep and long lasting psychological effect on our children. Let all of us promise ourselves to be parents who leave a positive impact in the minds of our children.
और जो पाठक अभी अभिभावक नहीं बने हैं उनको अग्रिम शुभ कामनाएँ।
🙏🙏🙏

© Shweta Gupta