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रोटी का भूत..
कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा था कि श्री
जीवन के "सत्रहवाँ श्रृँगार " के गूढ़ रहस्य को समझ लेती है और वह कृष्ण कमल को लेकर काशी और अक्कलकोट धाम को समर्पित करने के लिए कंचन नगरी से प्रस्थान करते हैं अब आगे......

कंचन नगरी से मंगल और श्री दो रात की दूरी पर स्थित मायापुरी गाँव में पहुँचते हैं थकान और भूख प्यास की वजह से वे दोनों उस गाँव में रुकने का विचार करते हैं और तभी मधुर भक्ति मय धुन को सुन कर मंगल श्री गाँव के एक छोर पर स्थित एक महादेव की परम भक्तिन देवयानी जी के कुटिया को देखते है और वही मुख्य दरवाजे के पास खड़े होकर मधुर भक्ति गीत को सुनने लगते हैं तभी कुछ...