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हमारी मां (८)
औरंगाबाद से हम लोग दोनों मामाजी यों को लेकर नांदेड़ के लिये निकले।रास्ते में सबकी ढेरों बातें हो रही थीं।हम भाई-बहन खिडकी से बाहर देख रहे थे।मम्मी बोल रही थीं "जब मैं पंद्रह साल की थीं तब पिताजी ने लड़के के मोह में दूसरी शादी कर ली।जब वे आकर मेरी मां से लडने लगीं और बोलीं 'तुमने क्या किया पति के लिये एक संतान भी न दे पाई।मैं उन्हें उनकी संतान दूंगी।'यह सुनकर मैं बहुत हिल गयी थी।मैंने मां से पूछा,'अम्माजी सच क्या है मैं आपकी और बाबूजी की बेटी नहीं हूं?"अम्माजी ने मुझे डांट दिया बोलीं तू बच्ची है तुझे क्या पता।कोई भी बाहर वाला आकर कुछ भी कह देगा तुम सच मान जाओगी।अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो" मैं चुप हो गयी।पर तब से यह बात घर कर गयी कि ये मेरे सगे माता-पिता नहीं हैं।"
हम नांदेड़ में उतरे सुबह का समय था हम सीधे तायाजी के घर गये।वहां तायाजी ने भी मानने से इनकार कर दिया।तब हम लोग गांव में गये ,वहां जाते ही मम्मी ने दादाजी से कहा,मैं आपके सवाल का जवाबब लाई हूं बापूजी ।"दादाजी ने पूछा कौन सा जवाब? "आपने पूछा न तुम किसकी संतान हो?तुम्हारे पैदा होने का सबूत ही नहीं है।तुम्हारी मौसी कस रही थी तुम तो नाले‌ में मिली‌ थी।" "दादाजी बोलीं मेरे गुस्से और‌‌ नशे में‌ कहीं बातों को इतना दिल पर लेने की‌ बात नही‌ थी बेटा।"
‌। चंद्रकांत मामाजी ने सारी बात मम्मी को बताई फिर‌ कहा "मामाजी ये हमारी बहन है मैंने ही इसे विट्ठल सिंघ को दिया था।आज देवशयनी एकादशी का पवित्र‌ दिन है।हम दोनों‌ भाई आज व्रत रखें हुए‌ हैं‌ हम झूठ नहीं बोल रहे।" दादाजी बोले "नहीं मुझे मेरी बहन यानि इसकी मां ने बताया था शादी के। पहले ही कि‌ ये मराठी ब्राह्मण की लड़की है,मां गुजर जाने की वजह से इसे‌ हमें दिये थे।"फिर दादाजी मम्मी की ओर देख कर बोले ,"दुल्हन मैं कतई बार तुझे सामने की‌औलाद करके भी गाली दे चुका हूं न ऐसे ही थोड़े ही बोला था।"
फिर इसके बाद मम्मी‌,आंटी दोनों मामाजी मिलकर शिवजी के मंदिर गये और वापस आने तक ताईमा और बुआजी‌ भी आ गये थे सो उन्होंने सबके लिए साबुदाने की खिचड़ी बना कर रखी थी,सबने खाया फिर हम लोग वहां से निकल गये।दोनों मामाजी राखी पर आकर पापाजी से मिलने का वादा करके औरंगाबाद चलें गये।हम लोग हैदराबाद के लिये निकल गये।रास्ते में ट्रेन जब मलकानगिरी स्टेशन पर रूकी तब मम्मी आंटी से‌ बोलीं "दीदी हम यहीं उतर कर बड़ी बहन से भी मिल लेते हैं न।"आंटी ने हामी हां क्यों नहीं वे भी माता कहलाती है ऐसा बोल रहे थे न चलो उनके भी दर्शन कर लेते हैं।"
हम लोग वहीं उतर गये।जब स्टेशन से बाहर आकर पता पूछने लगे तब लोगों ने बताया वो अगला स्टांप है,फिर हम‌ लोग आटो कर वहां चले गये।एक पुराना सा बड़ा घर था।हम अंदर गये तो छोटा सा माता‌ का मंदिर था।वहां एक ग़रीबी सुंदर बुजुर्ग महिला जिनकी आंखें नहीं थीं पूजा कर रही थीं।हमने देखा वे मंत्र बोलते हुए जो भी शब्द बोलतीं वहीं चीज माता पर अर्पित करतीं।फूल कहते हुए बराबर फूल ही निकालतीं।
‌‌ उनकी पूजा हो जाने के बाद आंटी ने सबका‌ परिचय दिया वे बोलीं"मैंने और बड़ी दीदी ने तुझे तीन दिन तक दूध पिलाया था।तुझे संभाला था।रुई से कटोरी में दूध लेकर तुझे पिलाते थे।फिर दादा(पिता)‌तू मर गयी करके ले गये।
(शेष आगे)