...

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कौन गलत?

ठिठुरती ठंड की एक शाम थी।
वृक्ष पर बैठे हंस ने नीचे देखा तो मुसलक नामक चूहों का परिवार ठंड में बुरी तरह
ठिठुर रहा था.. उनके बिलों में पानी भर
गया था, ये सब देख हंस को उन पर दया आ गई।

उसने नीचे जाकर उन पर अपने शुभ्र श्वेत, नरम, उष्ण पंख फैला दिए और भीषण शीत से उनकी रक्षा की। मूसलक परिवार बच गया।
सुबह उपकार कर जब हंस उड़ने को तैयार हुआ तो...
अरे यह क्या !
उसके तो पंख कुतरे जा चुके थे !!
अब वह उड़े कैसे ? !!!

हंस कातर भाव से रोने चिल्लाने लगा।
आस पास के जानवर एकत्र हुए. सारी बात सुनकर वे मुसलक परिवार को धिक्कारने लगे।

चूहों ने कहा- कुतरना हमारी पहचान है ... हमने कुछ भी गलत नहीं किया।
अपनी पहचान के साथ जीना हमारा हक है। हमारी
पहचान की रक्षा होनी चाहिए।
हम वर्षों से यही करते रहे हैं। अब हमारी प्रकृति तुम्हारी समझ में नहीं आ रही हो तो हम चूहे क्या करें ! हमारी आदत को गलत कहना अमानवीये है, अनडेमोक्रेटिक है!"
गलती हंस की है....

हां सही ही तो है...
सारी गलती हंस की ही तो थी....
शायद!!????!!!!!!!

(उपरोक्त कथा एक जातक कथा है। मगर आज के परिवेश में भी उतनी ही सार्थक है।)


© Geeta Dhulia