अप्रत्यक्ष से प्यार, प्रत्यक्ष पर वार
अप्रत्यक्ष से प्यार,
प्रत्यक्ष पर वार।
हम मनुष्य का स्वभाव कितना विचित्र सा होते जा रहा है। जीवन की भौतिक सुख सुविधाओं में तो हम धनी होते जा रहे है, पर मानसिक शक्ति और संवेदना के ख़ज़ाने खाली होते जा रहे है। अगर आप मनुष्य को छोड़ किसी अन्य जीव को निहारे तो आप पाएंगे कि वह अपने चारों ओर के पर्यावरण से कितना खुश है जितना खाना और पानी मिला उसे पाकर वह संतुष्ट है उसे अपनी आवश्यकता से अधिक एक कण या एक बूंद भी अधिक अस्वीकार है और वह अपने जीवन से संतुष्ट भी है, वह किसी अन्य के...
प्रत्यक्ष पर वार।
हम मनुष्य का स्वभाव कितना विचित्र सा होते जा रहा है। जीवन की भौतिक सुख सुविधाओं में तो हम धनी होते जा रहे है, पर मानसिक शक्ति और संवेदना के ख़ज़ाने खाली होते जा रहे है। अगर आप मनुष्य को छोड़ किसी अन्य जीव को निहारे तो आप पाएंगे कि वह अपने चारों ओर के पर्यावरण से कितना खुश है जितना खाना और पानी मिला उसे पाकर वह संतुष्ट है उसे अपनी आवश्यकता से अधिक एक कण या एक बूंद भी अधिक अस्वीकार है और वह अपने जीवन से संतुष्ट भी है, वह किसी अन्य के...