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वो पहली डांट
आज मन बैचैन बहुत है,किस से कहें समझ नहीं आ रहा। पता है तुम्हें इस बैचेनी का कारण तुम ही हो। तुम ऐसे क्यों हो, क्यों कभी नहीं पूछते कि मैं कैसी हूं।खैर ये सब बोल के कौन सा कुछ होने वाला है। तुम्हें याद है,एक बार मैं और मेरी दोस्त कृष्ण जन्माष्टमी में पुलिस लाइन गये थे। वहां पर प्रोग्राम होते थे और रात के बारह बजे कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता था, शायद अभी भी ऐसे ही मनाते होंगे।जाते समय तो हम दोनों चले गए क्योंकि उस समय काफी लोग थे सड़क पर।१५ मिनट का रास्ता था,हम दोनों पहुंच गए पुलिस लाइन। आप अपने दोस्तों के साथ आए हुए थे।जब सारे प्रोग्राम हो गये और घर जाने का समय हुआ तो हम दोनों को डर लगने लगा, क्योंकि कुछ असामाजिक तत्व भी थे वहां।हम दोनों डरते -डरते आगे बढ़ रहे थे, लेकिन वो लड़के गाने गाने लग गए। हमारे डर से हालत खराब होने लगी, मैंने डरते -डरते आपको कांल लगायी , मुझे लगा शायद आप न उठाओ लेकिन आपने फोन उठा लिया। मैंने डरते हुए ही कहा कि कृपा करके हमें घर छोड़ दो। हमें डर लग रहा है, हमने ये नहीं बताया कि हमें कुछ लड़के परेशान कर रहे हैं।आप जल्दी से हमारे पास आये, और जैसे ही थोड़ी दूर पर कुछ लड़कों को देखा तो शायद आप माजरा समझ गये। लेकिन जो डांट आपसे पड़ी मुझे उसको सोच के आज भी लबों पर मुस्कान आ जाती है,आप बोले जा रहे थे कि खुद को क्या समझती हो, बिना किसी बड़े के साथ के ऐसे ही आ गई हो , और रात को ऐसे अकेले घर जा रही हो, अगर मैं नहीं होता तो, क्या करती फिर,सच में उस दिन मुझे पहली बार पता चला कि आप मेरी फिक्र तो बहुत करते हो। मैं सांरी के अलावा कुछ नहीं बोल पायी, लेकिन उस रात आपकी प्यारी सी डांट ने सोने नहीं दिया था।
© Anu