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दोस्ती
हमारे जिंदगी में कुछ बाते ऐसे होते है जिसे हम समझते हैं महसूस भी करते हैं पर लफ्ज़ में बयान करना कुछ लोगों केलिए मुश्किल होता है । जैसे प्यार। कुछ लोगों को अगर पूछो की क्या कभी प्यार किया है उनका जवाब ' ना ' रहता हैं क्यों की आज कल प्यार सिर्फ एक लड़की और लड़के के बीच हो सकता ये जो उनका सोचना है। क्या मां बाबा को हम से और हम को हमारे मा बाबा से , गुरुजी को उनके स्टूडेंट से, एक dog को अपने मालिक से और मालिक को अपने pet से करने वाला प्यार, प्यार नही है?.. तो स्टोरी आज की इसी प्यार के वारे में है....एक छोटा सा सुंदर सा गांव नाम हैं ' सतरंगी'। उस गांव की हरे वादियां,सुनहरा धूप, नीली नदियां और पीली सरसों का फूल उन्हे देखते ही ऐसा लगता है कि सब जैसे चीला कर उस गांव का नाम बता रहे हो। वो गांव में सुबह, लड़कियों की हसी की साथ सुरूवात होती है और खतम रात में दादी और दादा की कहानी में । वो गांव में प्यार कि कीमत सिर्फ़ प्यार से ही चुका जा सकता है.... वहां पे सब अमीर है और उनकी मुस्कुराहट, सादगी उनकी धन,चोरी की गुंजाईश हीं नहीं है. वहां की दोस्ती की क्या मिसाल दूं शब्द ही नहीं है..... पैरो में भले चपल न हो, खाने के लिए पिज्जा न हो और गाड़ी की तो दूर की बात है पढ़ ने केलिए अच्छा मकान न हो पर वो विद्यालय के दीवार गुरुजी के प्रेम से बच्चों की मीठी सी शरारत से और दोस्ती की हसियों से आज भी चमकता है...asian paint की क्या जरूरत.... पर जिंदगी इतना आसान नहीं होता गुलाब में कांटा तो होगा न जैसे चावल में बीज रहता है और चिकन में कांटे😅... कुछ उसी तरह उसी गांव की एक लड़के की भाग बदलने वाला था... वक्त के से छुपने से कुछ नहीं होता सामना करना पड़ता है कभी कभी हर किसीको अपनी आरामदायक गद्दा छोड़ के काम करना पड़ता है..उस लड़के का नाम था कृष्णा... बड़ा नादान था गांव ने पाला है न दिल एक दम पानी की तरह साफ, किसकी दुख नहीं देख सकता गांव की वो नाटक वाले दुःख से भी रो देता है। किसी बुर्जुग को हसा देता है किसी बचे को चिढ़ा कर रुला देता हैं. हां, उसकी एक बुरी आदत था गुस्सा नाक पे,गलत बरदास नहीं होता, कूद पड़ता हैं लड़ने के लिए बिना सोच के . पढ़ाई भी अच्छा करता है टॉप किया था उसके गांव में, गांव वालो का सपना था की कोई डॉक्टर बने उनके गांव का, सबको लगता था की वो उन्हे उस सपने का सूरज दिखायेगा... पर हायर स्टडी के उसको तो गांव की छांव से तो दूर जाना हीं पड़ेगा ना... अपने कपड़े समेटे के यादों को दिल में छुपाके और ढेर सारे आशीर्वाद के साथ निकल पड़ा शहर कृष्णा ने..… शहर आया जरूर था मगर उसका ये शरीर,दिल जैसे छूट गया था वो छोटे से गांव में ... नाम लिखाई हुई पढ़ाई शुरू हुआ कॉलेज में . पहला दिन , बड़े बड़े इमारते, मुलायम सा गद्दा और रंग बिरंगी खाना देख कर उसे कोई खुशी नहीं हुई थी.... वो तो खुद को छोड़ आया था न उसके गांवों में ...बात करना चाहता था, दोस्त का हाल पूछना चाहता था .. बाबा की हसी देखनी थी और मां के पल्लू से मुंह भी पोछना था...कितना कुछ छोड़ दिया पीछे ... फोन इधर तो थी पर गांव में नहीं और चिट्ठी तो पहूंच ने केलिए एक महीना लग जाता था.... पर इंसान पानी की तरह होता है ढल हीं जाता है हर कटोरे में .... कुछ उसी तरह वो भी घुल मिल गया था दोस्त भी बन गए थे... पर वो भूल गया था की शहर में दोस्त सिर्फ नाम के होते है और वहां पे हर किसिका रिश्ता उनके मतलब के हिसाब से होता है....इसीलिए उसकें जैसा दोस्त मिलना वो शहरी को लिए फायदा था.. सुबह का नाश्ता रखना उनका attendance डाल देना उनका प्रोजेक्ट बना देना कभी कभी तो उनका एंटरटेन भी कर देता है... खेर उसे क्या पता उसकी कीमत सिर्फ उनके जरूरत में है.... सचाई छुपती कहां हैं, थोड़ी देर से पता चलता है जरूर, पर पता चल हीं जाता है। शाम के वक्त हॉस्टल में किसीने शोर मचाया की चोरी हुई है....कोई राहुल था उसके दोस्त में से एक...उसके पैसे चोरी हो गए थे.... जब उसको वार्डेन ने किसपर शक है पूछा तो पता है उसने किसका नाम दिया कृष्णा की.... आज कल के लोग खाली जगह में वो गुजती हुई शब्द की तरह होते है समझते नहीं क्या कहा है बस वही शब्द की नकल करने लगते है... कुछ उसी तरह उससे हजार लोगों की ताने सुने पड़े, वो दिखता जरूर गरीब जैसा पर दिल से अमीर था वो....पर दिल थोडी न हर कोई देख पाता है दिल देखने के लिए दिल होना चाहिए...आज कल के युवा दिमाग से प्यार करते है दिल तो मरगाया है कहीं साल पहले... जिन कुछ हीं लोगों के पास दिल है उनको जलील होना पड़ता है चोट खाना पड़ता है ... तकलीफ से बचने के लिए दिल को मारने केलिए मजबूर किया जाता है. वो गरीब नहीं था बस उसका धोती और कुर्ता में सुकून मिलता.... पहनावा, सूरत, सुंदरता सबसे आज के युवा की पहचान है.... दोस्त तो एक title बन चुकी है...पर दोस्ती तो एक भाव है....एक रिश्ता है जो लोगों की दिल से उनके सीरत से उनके स्वभाव से होती है ..... दुःख होता है मेरे दोस्त को देख कर जो समाज की वाहवाही के लिए शरीर की और अपने सकल की makeover कर रहे हैं जबकि जरूरत स्वभाव की makeover की है.... छोटे कपड़े में बुराई नहीं है बस ये सवाल है उनसे, कपड़े comfort के लिए पहना जाता है ,क्या वो comfortable है उन कपड़ों में... अगर है कोई सवाल नहीं....अगर नहीं है खुदका मालिक खुद बने समाज को दिमाग की चाबी न थामे....समाज को हमने बनाया है.... समाज ने हम को नही..... कपड़ों से कोई confident महसूस नही करता.... सोच में होता है....
© priyankarinky