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संध्या
सुनहरी शाम है, छटे-छटे से बादल आकार बदल रहे हैं।संध्या बालकनी में झूलने वाली कुर्सी पर बैठ कर चाय की चुस्की ले रही है। आज से बीस साल पहले उसने विनोद से शादी की थी।
जब वह कॉलेज जाया करती थी, एक लम्बा सा हेंडसम जवान उसका पीछा किया करता था। एक दिन उसने अपना इंट्रोडक्शन देकर प्रपोज कर दिया, जब उसने अपने आई-बाबा के सामने ये बात रखी तो वे नाराज हो गए। हम ब्राह्मण हैं और वो पंजाबी माँस-मछली खाने वाले कै से हो सकता है।
संध्या आई-बाबा से लड कर तो आ गई थी, यहाँ माँजी ने उसे अपने गले से लगा कर रखा तो था पर विनोद को एयरफोर्स से निश्कासित कर दिया गया था। वह ड्रग्स लेने लगा था।अब वह घर पर ही रहने लगा था।देखते-देखते दो
बेटियाँ हो गई थीं।बाबूजी अभी ड्यूटी पर है करके घर चल रहा था।
एक दिन माँ जी ने कहा तुम कुछ करतीं क्यों नहीं? संध्या ने उनसे टीचर ट्रेनिंग करने की बात कही और वे मान गईं, बाबूजी ने भी भरी और संध्या
ट्रेनिंग करने लगी। ट्रेनिंग के बाद उसे अच्छी जाॉब भी मिल गई। समय बीतता गया, बच्चियाँ बडी हो गईं, माँ बाबूजी रहे नही। उधर आई बाबा भी स्मिता की शादी सारी जिम्मेदारी संध्या पर डाली, उसने उठाई भले ही पैसा बाबा का था।
जब आई-बाबा की मृत्यु हुई तो सारे संस्कार स्मिता के पति ने किये क्योंकि वो ब्राह्मण था। उसके बाद जब बाबा का घर बेचने की बात चली तो स्मिता ने हिस्से में ज्यादा पैसे लिए ये कहकर कि सब कुछ हमने किया।
आज वह और विनोद अकेले रह गए हैं। बेटियाँ अपने घरों में खुश हैं। संध्या पुराने ख्यालों में ऐसे खो गई उसे पता ही नही चला कि कब विनोद आकर उसके पास बैठा था। उसने उसकी देखा वह कहने लगा, "संध्या तुम मेरी जिंदगी में आईं तब से आज तक मुझे कोई कष्ट नही हुआ पर तुम्हे मैंने कोई सुख नही दिया। संध्या बोलने लगी नही विनोद भले ही तुम रास्ते से भटक गए थे पर माजी-बाबूजी जो कुछ हमारे लिए किया वो कर्ज पता नही हम कब चुका पाएँगे, हमारे लव-मैरेज को स्वीकार कर पग-पग पर हमारा साथ दिया। बस मैं आज बहुत संतुष्ट हूँ अपने जीवन में तुम भी तो मेरे साथ हो।