विस्मयी सुरंग
एक रात की बात हैं न जाने कहाँ से कैसे और क्यों एक नई दुनिया में आ गई मैं, दिखने में घोर अँधेरा आँखों के आगे कुछ नहीं दिख रहा मानो मेरे शरीर के भी कोई अंग नहीं हो। एक विस्मयी दुनिया न में किसी को दिखाई देती न मुझे कोई दिख रहा था।
मन ही मन बहुत डर गई और न जाने क्यों किसी शक्ति का आभास भी हुआ किसी ने कुछ चमत्कार किया इसीलिए मैं यहाँ हूँ।
मानो कोई मुझे न देख कर मुझे महसूस कर रहा हो, न ही में कुछ बोल पाती न ही कुछ सुन पाती फिर भी किसी कारणवश मेरा आहार मिलता रहता मुझे और मैं बढ़ती जा रही थी। कुछ ही महीनों मेरे अंग दिखने लगे बहुत ही सूक्ष्म थे आँखे, पैर, हाथ और श्र्वास भी ले पा रही थी। जगह फिर भी नहीं बदली वही की वही घना अँधेरा विस्मयी गुफा न किसी के आने का कोई रास्ता न आने की कोई गुंजाइश न ही मेरे बाहर आने की कोई उम्मीद।
फिर भी कोई तो है जो मुझे सहलाता है, वक्त-वक्त पर जैसे मेरा पेट भर रहा है, वक्त-वक्त में मैं बहुत ही उत्तेजित हो रही मानो की हाथ पैर हिलाकर तोड़ दु ये परत और आ जाऊँ बाहर लेकिन कुछ समझ नहीं पाई और बढ़ती चली गई। थोड़ा-थोड़ा आभास हो रहा था मानो कोई मुझे सुरक्षित रख रहा है।
फिर अचानक...
मन ही मन बहुत डर गई और न जाने क्यों किसी शक्ति का आभास भी हुआ किसी ने कुछ चमत्कार किया इसीलिए मैं यहाँ हूँ।
मानो कोई मुझे न देख कर मुझे महसूस कर रहा हो, न ही में कुछ बोल पाती न ही कुछ सुन पाती फिर भी किसी कारणवश मेरा आहार मिलता रहता मुझे और मैं बढ़ती जा रही थी। कुछ ही महीनों मेरे अंग दिखने लगे बहुत ही सूक्ष्म थे आँखे, पैर, हाथ और श्र्वास भी ले पा रही थी। जगह फिर भी नहीं बदली वही की वही घना अँधेरा विस्मयी गुफा न किसी के आने का कोई रास्ता न आने की कोई गुंजाइश न ही मेरे बाहर आने की कोई उम्मीद।
फिर भी कोई तो है जो मुझे सहलाता है, वक्त-वक्त पर जैसे मेरा पेट भर रहा है, वक्त-वक्त में मैं बहुत ही उत्तेजित हो रही मानो की हाथ पैर हिलाकर तोड़ दु ये परत और आ जाऊँ बाहर लेकिन कुछ समझ नहीं पाई और बढ़ती चली गई। थोड़ा-थोड़ा आभास हो रहा था मानो कोई मुझे सुरक्षित रख रहा है।
फिर अचानक...