क़िस्मत का खेल
आज फिर पतिया को खेतों पर जाने में देर हो गई। सुबह आँखें खोली तो सूरज आधा सर पर चढ़ चुका था। कल ठेकेदार के पास देर रात तक काम करने के कारण सुबह उसकी आँखें देर से खुली थी। इस तरह देर से उठना पतिया के लिये कोई नई बात नहीं थी क्योंकि उसके इतने बड़े परिवार को दो वक्त की रोटी के लिये उसे दिन रात मेहनत करनी पड़ती थी। पतिया के घर में उसकी पत्नी लाज़ो, दो बेटें राजू और श्यामा और बेटों के मोह में जन्मी उनसे बड़ी तीन बेटियाँ काजल, सोना, नेहा थी। पतिया कहने को तो किसान था पर अपनी ज़मीन के नाम पर उसके पास ज़मीन का इतना भी टुकड़ा न था कि वो अपने परिवार को भरपेट खाना तो क्या एक वक्त की रोटी भी खिला पाता। इसी वजह से दोपहर तक अपने खेतों में काम करने के बाद गाँव के ठेकेदार के पास मज़दूरी करने के लिये जाता था। अपनी इसी माली हालत के कारण पतिया पर साहूकार...