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घनिष्ठ मित्र
रूठता था, तो मना लेती। रुला कर भी, हंसा देती। बात - बात पर हठखेलियां करता, चोटी घुमा कर सताता। बस क्या कहूं अंकित की कुछ बात ही अलग थी। बाहर वालों से तो हर कोई दोस्ती कर लेता है, पर जो दोस्ती अपने ही छोटे भाई से हो जाए, तो उसे क्या कहें? किसी भी कार्य को सम्पूर्ण करने या विफल करने में हम दोनों ही एक - दूसरे का पूर्ण रूप से सहयोग देते। माता - पिता हम दोनों की उछल - कूद से अत्यधिक परेशान थे। उसकी पढ़ाई - लिखाई में मैं उसकी मदद करती, पर जो गुस्सा हो जाता, तो मनाना भी मुश्किल था।

एक दिन अंकित अपने विद्यालय से लौटने के बाद गुमसुम अपने कमरे में बैठ गया और दरवाज़े की चिटकनी लगा ली। मुझे उसके लौटने की आहट सुनाई दी। मैंने दरवाज़ा खटखटाया, पर अंदर से कोई आवाज़ नहीं अाई। जब अपने कानों को मैं दरवाज़े के पास लेकर अाई, मुझे उसके सुबकने की ध्वनि सुनाई दी। मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा। अंकित मेरे बहुत करीब था, पर मुझे कुछ ना बताने के लिए बाधित होना, ये पहली बार हुआ था। मैंने माता - पिता को भी हिदायत दे दी कि थोड़ी देर के लिए उसे अकेला छोड़ दिया जाए।

शाम को ५ बजे के करीब अंकित अपने कमरे से बाहर निकला और तूफ़ान की तरह भागकर, कस के मेरे गले लग गया। मैंने प्यार से उसके सर पर हाथ रखकर पूरी बात पूछी। आंसू भर अंकित ने मेरी आंखों में आंखे डाल पूरी बात बताई कि राहुल ( कक्षा का सहपाठी) ने उससे दोस्ती तोड़ दी जिससे वह अत्यंत दुःखी है। मैंने उसे प्यार से समझाया कि ज़िन्दगी में बेहतर दोस्त बनाओ, उन्हें जांचो, परखो और फिर ये सोचो कि क्या वो दोस्त तुम्हारे लायक हैं या नहीं। मेरी बात पूरी होने से पहले ही अंकित तपाक से बोला - " दीदी! क्या तुम आजीवन मेरी दोस्त बनोगी?" उसकी ये बात सुनकर मेरा दिल भर आया और मैंने उसे गले लगाकर कहा - " दोस्त थी! दोस्त हूं! दोस्त रहूंगी, ये वादा करती हूं तुमसे"। यह सुन अंकित के चेहरे की मुस्कान देखते बनती थी। आज भी उम्र के इस पड़ाव में भी, मेरा अपना भाई ही मेरा " घनिष्ठ मित्र " है और मैं भी उसकी बातों को सुनने के लिए सोफे पर टेक लगा, उसके ऑफ़िस से घर लौटने के इंतज़ार में बैठ जाती हूं।।

© Pooja Gautam