Hisar e Ana (The siege of ego) chapter 1
अना(ego)
यह एक लफ्ज़ अपने अंदर कितनी मुनफी(negativity) लिए हुए है न?
एक बार अपने पीछे किसी को लगा ले तो बस…… फिर इंसान कहीं का नहीं रहता।
वह भी कहीं की नहीं रहीं थीं। ज़िन्दगी के इतने साल इसके हिसार में गुज़ारने के बाद होश आया भी तो बहुत देर हो चुकी थी। अक्सर दिल में खयाल आता कि काश …… ए काश कि वह वक़्त का पहिया घुमा सकतीं तो कम से कम अपनी उन गलतियों को सुधार लेती, जिसकी ज़द में आकर उनके अज़ीज़ों की ज़िन्दगी में तूफान आया था। लेकिन वह क्या ही खूब लाइन है एक गाने की,
“सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया।”
#############
Canada के एक पुर-आसाइश फ़्लैट की बालकनी में खड़ा असफन्द मीर बज़ाहिर तो बाहर सड़क पर फैले गाड़ियों के रश को देख रहा था, लेकिन ज़हन ओ दिल दूर कहीं बहुत दूर लगा हुए था। आंखों में आज भी एक चमक सी थी। शायद मोहब्बत में यही होता है। महबूब का खयाल ज़हन में आते ही आंखों में चमक आ जाती है और वजूद में सर्शारी सी दौड़ जाती है। अली अक्सर कहता,"मोहब्बत ने तुझे निकम्मा कर दिया है।" जिस पर वह हंस कर शरारत से कहता, "नहीं, मोहब्बत ने मुझे निखार दिया है।"
कॉफी खत्म हो गई थी। उसने कमरे में आ कर दरवाजा बंद किया और बिस्तर पर ढेर हो गया। साइड टेबल पर रखी किसी की फ्रेमशुदा तस्वीर उठायी थी, जिसके वहम ओ गुमान में भी ना होगा कि उसकी कोई तस्वीर उसके पास है। यह साइड पोज़ में ली हुई तस्वीर थी जो उसने चुपके से ली थी। लॉन में फूलों को पानी देते वह मासूमियत से मुस्कुरा रही थी। असफन्द मीर ने तस्वीर में मौजूद उसके चहरे पर हाथ फेरा। “मेरी ज़िन्दगी।”
#############
यह एक खूबसूरत घर 'मीर मेंशन' के लॉन में सुबह का मंज़र था।...
यह एक लफ्ज़ अपने अंदर कितनी मुनफी(negativity) लिए हुए है न?
एक बार अपने पीछे किसी को लगा ले तो बस…… फिर इंसान कहीं का नहीं रहता।
वह भी कहीं की नहीं रहीं थीं। ज़िन्दगी के इतने साल इसके हिसार में गुज़ारने के बाद होश आया भी तो बहुत देर हो चुकी थी। अक्सर दिल में खयाल आता कि काश …… ए काश कि वह वक़्त का पहिया घुमा सकतीं तो कम से कम अपनी उन गलतियों को सुधार लेती, जिसकी ज़द में आकर उनके अज़ीज़ों की ज़िन्दगी में तूफान आया था। लेकिन वह क्या ही खूब लाइन है एक गाने की,
“सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया।”
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Canada के एक पुर-आसाइश फ़्लैट की बालकनी में खड़ा असफन्द मीर बज़ाहिर तो बाहर सड़क पर फैले गाड़ियों के रश को देख रहा था, लेकिन ज़हन ओ दिल दूर कहीं बहुत दूर लगा हुए था। आंखों में आज भी एक चमक सी थी। शायद मोहब्बत में यही होता है। महबूब का खयाल ज़हन में आते ही आंखों में चमक आ जाती है और वजूद में सर्शारी सी दौड़ जाती है। अली अक्सर कहता,"मोहब्बत ने तुझे निकम्मा कर दिया है।" जिस पर वह हंस कर शरारत से कहता, "नहीं, मोहब्बत ने मुझे निखार दिया है।"
कॉफी खत्म हो गई थी। उसने कमरे में आ कर दरवाजा बंद किया और बिस्तर पर ढेर हो गया। साइड टेबल पर रखी किसी की फ्रेमशुदा तस्वीर उठायी थी, जिसके वहम ओ गुमान में भी ना होगा कि उसकी कोई तस्वीर उसके पास है। यह साइड पोज़ में ली हुई तस्वीर थी जो उसने चुपके से ली थी। लॉन में फूलों को पानी देते वह मासूमियत से मुस्कुरा रही थी। असफन्द मीर ने तस्वीर में मौजूद उसके चहरे पर हाथ फेरा। “मेरी ज़िन्दगी।”
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यह एक खूबसूरत घर 'मीर मेंशन' के लॉन में सुबह का मंज़र था।...