"मेरा सफर अधूरा है"
मोह नहीं तरु-छाया का,यह धूप भली अब लगती है
क्यों शांत करुं इस अग्नी को,यह भूख भली अब लगती है,
भली है लगती यह तृष्णा,जिसके कारण हूँ जाग रहा
भली है लगती हर विपदा,जिससे अब तक था भाग रहा
हैं शूल भले ये पथ के सब, है भली ये निंदा हर पल की
है धूल भली ये चेहरे पर, तकदीर लिखेगी जो कल की
अब भान हुआ निज गौरव का,अस्तित्व हुआ अब पूरा है
अभी ऋण है बाकी जीवन का,अभी मेरा सफर अधूरा है...
© Akash dey
क्यों शांत करुं इस अग्नी को,यह भूख भली अब लगती है,
भली है लगती यह तृष्णा,जिसके कारण हूँ जाग रहा
भली है लगती हर विपदा,जिससे अब तक था भाग रहा
हैं शूल भले ये पथ के सब, है भली ये निंदा हर पल की
है धूल भली ये चेहरे पर, तकदीर लिखेगी जो कल की
अब भान हुआ निज गौरव का,अस्तित्व हुआ अब पूरा है
अभी ऋण है बाकी जीवन का,अभी मेरा सफर अधूरा है...
© Akash dey
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