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मेरी लाल AVON की साईकिल
मेरी लाल रंग की Avon की साईकिल !
दोस्त से कुछ बढ़कर , जिस दिन पहली बार घर आई थी
मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था । सारा गाँव में, सबको बुला बुला कर दिखायी थी । बहुत ख़ुश थी मैं । बार बार
अपने फ्राॅक से साफ़ कर रही थी। भाई को तो नज़दीक आने ही न दिया ।
बेचारा मुंह फुलाकर दूर से देख रहा था ।
माँ ने भी एकबार डांट कर कहा, 'भाई को भी थोड़ा चलाने दो।'
पर वो पहला दिन, सिर्फ मैं और मेरी लाल Avon की साईकिल !
लेकिन....हाँ, इतनी आसानी से न घर आई थी मेरी साईकिल दोस्त !
700 रुपया चुकाना पड़ा था, उसे घर लाने के लिए । आप सोचेंगे मैं कितनी बेवकूफ़ हूँ, जो मूल्य देना पड़ा ये बता रही हूँ, भला बिन पैसे का क्या मिलता है !!
बात ये नहीं ...बात तो कुछ और ही है ।
भगवान जी को मेरे पापा से कुछ ख़ास प्यार था ,तो उन्होंने बहुत जल्दी ही पापा को पास बुला लिया । ज्यादा छोटी तो नहीं, पाँच साल की थी मैं । पर अचानक, समय ने समय से पहले ही मुझे बड़ा बना दिया, जिम्मेदार बना दिया । मन में तब भी बचपना था , शायद आज भी हैं वो बचपना मन में कहीं दबी सी !
ख़ैर, अब वो 700 रुपया कैसे आया..बहुत मोल था उन दिनों 700 रुपया का ! करीब साल भर लगे थे वो पैसा जमा होने में । मैंने और माँ ने मिलकर जमा किया था वो पैसा । तब सातवी कक्षा में थी । टिफ़िन के पैसे बचा लेते थे। फिर जब मौसी और नानी आती थी ,तो जाते समय कुछ पैसा देकर जाती थी ।माँ ने भी घर के खर्चे से कुछ पैसा बचा लिया था । और उस साल दुर्गा पूजा का कपड़ा भी मैंने नहीं लिया था । बस ,इन सारे पैसों को मिलाकर घर आई थी ...मेरी दोस्त, मेरी लाल Avon की साईकिल।

वो पहला दिन स्कूल में साईकिल के साथ ...रास्ते में लग रहा था, जैसे मैं कोई महाराजा हूँ, हाथी पर सवार नगर भ्रमण पर निकली हूँ । स्वयं ही हंस रही थी और खुश हो रही थी। स्कूल पहुंचे तो सहेलियों ने घेर लिया । सबको एकबार मेरी साईकिल चलानी है । मैंने भी उस दिन बहुत भाव खाएं थे । कोई अपना टिफ़िन खिला रही हैं, तो कोई कॅपि मे लिख दे रही है । सब उस साईकिल के लिए !

फिर धीरे धीरे समय के साथ सब साधारण सा हो गया ।
पर, उन दिनों मेरे हर सफ़र में मेरे साथ थी...वो लाल Avon की साईकिल ।
गर्मी की छुट्टियाँ ... सुबह सुबह दोस्तों के साथ साईकिल चलाना, आज बहुत याद आती है ।
तूफान के बाद, आम के बगीचे में कच्चा आम चोरी करना
दोस्तों संग ..उस शरारत की साक्षी मेरी लाल Avon की साईकिल ।
बरसात में मदमस्त भीगना ...उस पागलपन की साक्षी मेरी लाल Avon की साईकिल ।
सर्दी की दोपहर, दोस्तों संग तलाब में मछली पकड़ना..
उस दीवानगी की साक्षी मेरी लाल Avon की साईकिल ।
बोर्ड्स के परिणाम ...उस बेइन्तहा खुशी की साक्षी मेरी लाल Avon की साईकिल ।
बारहवी कक्षा में थी, पहली बार चोरी चोरी दोस्तों संग सिनेमा देखना .. उस डर की भी साक्षी थी मेरी लाल Avon की साईकिल ।

और क्या क्या करे बयां ...शायद आज ख़त्म ही न हो !

लेकिन वो एक अंधकार मंज़र ...उफ़फफ..
आज भी याद आए तो मेरी रूह काँप उठती है !!!
सर्दी की सुबह,,,था कोहरा छाया हुआ ..हम चार सहेली चले थे ट्यूशन ...नज़दीक बारहवी की परीक्षा ।
अचानक रास्ते में बहुत जोड़ से आवाज़ ...कुछ समझ पाते,, तब तक मेरी सहेली "सुमी" ख़ून से लथपथ, रास्ते में छटपटा रही है । पल में लोगों की भीड़,,शोर, चीख़े ...
मैं पत्थर बन गयी।
भीड़ में से किसी ने कहा, 'आरे ये तो मर गयी !!! '
सब लोग एक बस को जला रहे थे..बाक़ी, मुझे कुछ नहीं पता। मैं बेहोश हो गयी थी ।
उस दिन उस दर्दनाक मौत की साक्षी भी मेरी लाल Avon की साईकिल ।

बस, मन में एक डर सा बैठ गया था...बहुत समय लगा था समय को ठीक होने में,,मुझे पहले की तरह स्वाभाविक होने में ।
तब से मेरी साईकिल दोस्त से मैं धीरे धीरे दूर होने लगी।आज भी वो दिन याद करती हूँ तो सहम जाती हूँ ।
दुसरे शहर जाना था आगे की पढ़ाई के लिए । आर्थिक स्थिति तब भी न सुधरा था । काॅलेज में दाख़िल होने के लिए कुछ पैसा कम पड़ रहे थे ।
माँ ने कहा , 'एक काम कर ,वैसे भी तू अब वो साईकिल चलाती नहीं, बेकार में पड़ा हैं । '
दो दिन बाद ,दिल पर पत्थर रखकर मैंने अपनी साईकिल दोस्त को सिर्फ 400 रुपया के बदले एक दोस्त को सौंप दिया ....उस दिन भी मेरे टूटे हुए दिल की ख़ामोश चीख़ की साक्षी थी मेरी ( या और मेरी नहीं) वो लाल Avon की साईकिल ।

मैं आज भी तुझे बहुत याद करती हूँ, मेरी साईकिल दोस्त...मेरी लाल Avon की साईकिल !!
आज भी तुझे लिखते लिखते मेरी पलकें नम हो गयी ...

Bokul..