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बूढा दरवाजा
बूढ़े दरवाज़े से एक दिन मिलने एक दिन बाहर से एक मैडम आयी, पुरातत्व विभाग से जो पुरानी चीजो पर सर्वे करती है, ऐसे ही वो ढुंढते ढुंढते बूढ़े दरवाजे के पास पहुँची, जो उस क्षेत्र में सबसे बूढे थे। जो अपने पुराने समय की दास्तां बयाँ कर रहे थे।
उनके पास बैठकर कुछ गुफ्तगू हुई ।
"ऐ मुसाफ़िर हाल सुनाऊ भी तो क्या,मेरे हाल को देखकर हाल भी बेहाल हो जाये"।
बूढ़े दरवाजे ने अपनी लड़खड़ाती जुबाँ से अपने जमाने की दासता को व्यक्त करने लगे। दादू साहिब जब पहली बार इस घर पर आए थे,तब वो मुझे भी लेकर आये थे, मेरे ही सामने ही तो उनका ब्याह हुआ,बच्चे हुए,सब को बडे होते देखा मेने,बेटा... वो भी क्या दिन थे, जब भी कोई कार्यक्रम होता तो,घर के साथ मुझे भी सब सजाते थे, ओर सब आनंद से ओर खुशियों से रहते ,बच्चो के बच्चो का ब्याह सब मेने देखा। दादू साहिब ओर मैडम साहिबा के बाद सब यंहा से चले गए,बस में बूढा रह गया, बस मेरा भी समय आ रहा। खाँसते हूए बूढ़े दरवाजे ने कहा।
शास्त्रीजी ने क्या खूब कहा है-
छोड़ जाते है,लोग पुराने आसियाना को ,जब नया आसियाना मिल जाता है।
शास्त्रीजी।