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जीवन लक्ष्य का निर्धारण
*जीवन लक्ष्य का निर्धारण*

हमारा जीवन परमात्मा द्वारा दिया गया अनमोल उपहार है, किन्तु जीवन में प्राप्त भौतिक संसाधन, सामाजिक प्रतिष्ठा, स्वस्थ शरीर, सन्तुलित मन और सुखी परिवार हमारी व्यक्तिगत उपलब्धियां हैं। ये सब हमारे निजी और अथक प्रयासों से ही अर्जित होती है ।

जीवित रहने के लिए आवश्यक भोजन, पानी और प्राणवायु तो लगभग हर प्राणी जुटा लेता है, किन्तु केवल इन तीन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जीने वाला व्यक्ति केवल जीवन ही बीतता है । उसका जीवन उपलब्धियों से रिक्त होने के कारण मूल्यहीन और निरर्थक ही कहलाता है ।

जीवन यापन करना और जीवन में लक्ष्य प्राप्त करना, दोनों विषय भिन्न हैं । अधिकांश लोगों का लक्ष्य केवल जीवन यापन ही रहता है । जन्म लेने के बाद शिक्षा पाना, आजीविका जुटाना, विवाह करना, वंश बढ़ाना, बच्चों का पालन पोषण करने के पश्चात् उनका विवाह करना आदि ही उनके जीवन का सार होता है । कोई विशेष लक्ष्य निर्धारित कर उसे प्राप्त करने के पुरूषार्थ के बारे में लोग सोच भी नहीं पाते ।

जीवन संचालन का आधार मानसिक, बौद्धिक और शारीरिक शक्तियां हैं जिनका सदुपयोग हो जाए, उन्हें विधेयात्मक कार्यों में लगाया जाए, उनका सकारात्मक नियोजन किया जाए तो जीवन निर्माण के क्षेत्र में चमत्कार दिखाई देता है । उन्हीं शक्तियों का नकारात्मक नियोजन और दुरुपयोग विध्वंसकारी परिणाम का कारण बनता है ।

बाल्यकाल और वयस्कता का मध्ययुग ही युवावस्था है, जिसमें ऊर्जा, शक्ति, उमंग, उत्साह और जोश भरपूर होता है । इस मूल्यवान और हीरे तुल्य सन्धिकाल को व्यवस्थित, अनुशासित और सुनियोजित करना अनिवार्य है । यदि जीवन निर्माण हेतु यथार्थ मार्गदर्शन युवावस्था में मिल जाए तो जीवन रूपी उपवन में उपलब्धियों रूपी अनेक सुगन्धित पुष्प महकने लगते हैं ।

उपयुक्त मार्गदर्शन, सही दिशा निर्देशों व सुसंगति के अभाव में व्यक्ति का जीवन अनगढ़ा और मूल्यहीन होकर रह जाता है । युवावस्था की भूलों का एहसास विलम्ब से होने के कारण भविष्य निर्माण के समस्त अवसर समाप्त हो जाते हैं । वयस्क और प्रौढ़ अवस्था आने तक संस्कारों की कठोरता को पिघलाकर उन्हें परिष्कृत करना असम्भव सा लगता है ।

संस्कार सरंचना के लिए जीवन का यह स्वर्णिम काल ही हमारा व्यक्तित्व, चरित्र और भविष्य निर्धारित करता है । इस युवाकाल में उचित मार्ग दर्शन मिल जाना सौभाग्य की बात है । सही दिशा निर्देश के साथ साथ आत्म प्रेरणा युवाओं के भविष्य हेतु संजीवनी तुल्य हैं ।

जीवन यापन करने और लक्ष्ययुक्त जीवन जीने के बीच का अन्तर एक छोटी सी कहानी द्वारा समझ सकते हैं कि:-

दो युवक फल खाने की इच्छा से एक बगीचे में गए । बगीचे के मालिक ने उन्हें शाम ढ़लने तक बगीचे में रुकने की अनुमति देते हुए शाम होने तक अपनी...