...

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आखिरी पल...🌸
बैठा किसी कोने में वो गुम है उन यादों में...पतझड का मौसम,खिड़की पर चहकती नन्ही चिड़िया,आँगन में गूँजती वो बच्चों की किलकारी,वो लकड़ी का झूला और हाथ में चाय की प्याली,पत्नी संग वो प्यारी सी नोक-झोंक, हवा से उडते परवाने और हर वो एक पल जब यह मकान एक घर हुआ करता था, उन अंधेरी रोशनदानों में कभी लालटेन का उजाला हुआ करता था, सूनी पड़ी रसोई से कभी महकती खुशबु और खाना लग जाने पर बच्चों का तेज़ी से रसोईघर की ओर दोड़ना और बारिश होने पर छत पर मोर का शोर मचाना। आजकल सब गुम है, वो दरवाज़ा भी ख़ामोश यूँ खड़ा है ना किसी के आने का इंतज़ार ना किसी के आने तक की एक आस,दीवारों पर पड़ी दरार निशानी है उसके वृद्धत्व की, रोती हुईं वो टपकती छत, अब तो वो खिड़की भी मायूस है। अब पतझड तो आता है पर वो बात नहीं रही। अकेला सा हो गया है चार दीवारों में कैद अपनी रिहाई की राह तके हर पल बस कुछ ऐसे हैं उसके आखिरी पल...
© Nisha