अहंकार का नाश!
एक बार कालिदास कहीं जा रहे थे।
लंबे समय तक तेज़ धूप में चलते-चलते वो प्यास और थकान से व्याकुल हो गए तो आस-पास विश्राम हेतु स्थान ढूंढने के लिए नज़रें दौड़ायीं।
तब उन्हें एक घना वृक्ष दिखाई दिया जिसकी छांव में एक कुआँ था जहाँ एक वृद्ध स्त्री पानी भर रही थी।
कालिदास वृद्धा के पास जा पहुँचे और विनती वाले स्वर में बोले " माते! पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा।"
स्त्री बोली "बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं। अपना परिचय दो।
मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।"
कालिदास ने कहा "मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।"
स्त्री बोली "तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।"
कालिदास ने कहा" मैं अतिथि हूँ, कृपया पानी पिला दें।"
स्त्री बोली "तुम अतिथि कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं। पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?"
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लंबे समय तक तेज़ धूप में चलते-चलते वो प्यास और थकान से व्याकुल हो गए तो आस-पास विश्राम हेतु स्थान ढूंढने के लिए नज़रें दौड़ायीं।
तब उन्हें एक घना वृक्ष दिखाई दिया जिसकी छांव में एक कुआँ था जहाँ एक वृद्ध स्त्री पानी भर रही थी।
कालिदास वृद्धा के पास जा पहुँचे और विनती वाले स्वर में बोले " माते! पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा।"
स्त्री बोली "बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं। अपना परिचय दो।
मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।"
कालिदास ने कहा "मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।"
स्त्री बोली "तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।"
कालिदास ने कहा" मैं अतिथि हूँ, कृपया पानी पिला दें।"
स्त्री बोली "तुम अतिथि कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं। पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?"
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