...

14 views

"मेरी रोमांचक अंतरिक्ष यात्रा"
#WritcoStoryPrompt11

"मेरी रोमांचक अंतरिक्ष यात्रा"

यह मेरे जीवन का सबसे रोमांचक क्षण था । निरंजनपुर के अपने इंडोर स्टेशन ए-3-03 की पश्चिम दिशा में स्थित लांचिंग पैड रेस्ट बेड से आज मध्य रात्रि के ठीक एक बजकर उनसठ मिनट उनसठ सेकंड पर मेरे मनोयान प्रथम ने अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी । जैसे ही मेरे मनोयान की प्रथम उड़ान की उल्टी गिनती शुरू हुई,परिवार के सभी सदस्यों ने हिप-हिप हुर्रे के साथ मेरा उत्साहवर्धन किया । मैं इस उड़ान के लिए पहले से ही सज्ज था । नियत समय से एक क्षण की भी देरी किए मैं भूपेन्द्र डोंगरियाल अपने मनोयान को लेकर अंतरिक्ष की ओर निकल पड़ा ।
मनोयान प्रकाश की चाल ( लगभग तीन लाख किमी प्रति सेकंड ) से भी कई गुना तेज रफ़्तार से आगे बढ़ रहा था । मेरा यह मनोयान कोई साधारण यान नहीं था । यह इंसानी दिमाग और कुदरत के कौशल का अनोखा यान था । जिसमें सवार होकर मैं मनचाही गति से गर्म से गर्म और शीत से भी शीत ग्रह,उपग्रह,तारों, मन्दाकिनियों के करीब से गुजर सकता हूँ । पलक झपकने से भी कम समय में मनोयान पृथ्वी के निकटस्थ उपग्रह चंद्रमा के करीब से होता हुआ गुज़रा । वाह ! यह जितना सौम्य पृथ्वी से दिखता है उससे भी कई गुना सुन्दर है । अगले ही पल मैंने मनोयान के साथ सौरकक्ष में प्रवेश किया । पृथ्वी से सौर मंडल में दिखाई देने वाले दैदीप्यमान सूर्य के दहकते कुण्ड में मैं मनोयान के साथ गोता लगाता हुआ ऐसे ही बाहर निकल आया जैसे हनुमान जी सुरसा के मुख से सरपट बाहर निकल आए थे । वाह ! क्या गर्मी थी सूरज के नाभिक में । इस गर्मी के अहसास से मुझे पृथ्वी के किसी भी क्षेत्र पर पड़ने वाली गर्मी तुच्छ लगने लगी ।
इसके बाद बचे हुए सात ग्रहों बुध,शुक्र,मंगल,वृहस्पति,शनि,यूरेनस,नेप्च्यून और तीनों बौने ग्रहों सीरीस,प्लूटो और एरीस की सतह पर मैंने मनोयान में बैठे-बैठे एक-एक पल का विश्राम किया । वहाँ से साक्ष्य के रूप में कुछ जरूरी तस्वीरें लेने के बाद मेरा मनोयान अपनी आकाश गंगा अर्थात मिल्की वे गैलेक्सी की ओर निकल पड़ा । मैंने वहाँ देखा कि आकाशगंगा गंगा मन्दाकिनियों का एक समूह है । इसमें हजारों की संख्या में मंदाकिनियाँ हैं । थोड़ी ही देर बाद मेरा मनोयान अपनी पृथ्वी से एक सौ पचास लाख प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित मन्दाकिनियों के सबसे बड़े समूह विरगो क्लस्टर पर पहुँच गया । वहाँ मैने एक से बड़े एक विशालकाय तारे देखे । मनुष्य के लालची स्वभाव के अनुरूप उन्हें देखकर मुझे ऐसा महसूस हुआ कि काश मैं भी हनुमान जी होता तो कम से कम एक विशालकाय तारे को अपने मुँह में रख कर अपनी धरती के निकट ले जाता । तब हमारे पास एक नहीं दो-दो सूरज होते और सर्दियों के दिनों ठंड से सिकुड़ते गरीब लोगों को कम से कम मैं सर्दी से निज़ात दिलाने में क़ामयाब हो जाता । मिल्की वे गैलेक्सी एक लाख प्रकाश वर्ष से भी अधिक क्षेत्र में फैली है । मेरे मनोयान में लगे मीटर की सुई ने बताया कि इसकी लम्बाई ही क़रीब तीस हजार एक सौ तीन प्रकाश वर्ष है ।
इसके बाद मैं अपने मनोयान में सवार होकर मिल्की वे गैलेक्सी से भी विशालकाय गैलेक्सी ऐड्रॉमेंडा गैलेक्सी की ओर निकल पड़ा । वहाँ मैंने अपनी पृथ्वी की तरह का एक हरा-भरा ग्रह देखा । मैंने अपने मनोयान की गति को धीमा किया और कुछ पल विश्राम करने के मूड से वहाँ ठहर गया । वहाँ पृथ्वी के जैसा ही जन-जीवन था लेकिन प्रदूषण नाम की कोई चीज़ मुझे वहाँ दिखाई नहीं दी । तरह-तरह की वेशभूषा पहने स्त्री-पुरुष और बच्चों ने मेरे मनोयान को देखा तो वे मेरे सम्मान के लिए मेरे इर्द-गिर्द इकट्ठे हो गए । इस ग्रह पर ब्रम्हात्मा नामक राजा राज कर रहा था । जैसे ही उन्हें ज्ञात हुआ कि पृथ्वीलोक से कोई व्यक्ति उनके ग्रह में अपने विमान के साथ पधारे हुए हैं उन्होंने तुरन्त मुझे राजमहल में पधारने का संदेश भिजवाया । मैं अपने मनोयान में सवार होकर राजमहल पहुँच गया । वहाँ का आतिथ्य सत्कार तो हिंदुस्तानी परिवेश से मिलता-जुलता था । राजा ब्रम्हात्मा ने बताया कि इस ग्रह का नाम स्वर्गारोहणी है । युगों पूर्व पृथ्वी लोक और स्वर्गारोहणी पड़ोसी थे । लेकिन पृथ्वीलोक पर बढ़ते पापों और प्रदूषण से पृथ्वी रसातल की ओर धँसती गई । युग बीतने के साथ-साथ पृथ्वी और स्वर्गारोहणी की दूरी इतनी अधिक हो गई है । अब यहाँ आप जैसा कोई साहसी और अन्तर्दृष्टि रखने वाला व्यक्ति अपने मनोयान पर सवार होकर ही पहुँच सकता है । इसके बाद राजा ब्रम्हात्मा ने मुझे मेरे मनोयान के साथ एक विशालकाय यान में बैठाया और फिर हम दोनों ऐड्रॉमेंडा गैलेक्सी से आगे की गैलेक्सियों को देखने निकल पड़े ।
सबसे पहले हम गैलेक्सी एम 82 पर पहुँचे यह हमारी पृथ्वी से क़रीब एक दशमलव एक छः करोड़ प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है । यहाँ से करीब पैंतीस लाख प्रकाश वर्ष की दूरी यानि पृथ्वी से डेढ़ करोड़ प्रकाश वर्ष की दूरी पर पिन व्हील गैलेक्सी एम-83 है । इससे आगे एन आर पी-273 नाम की गैलेक्सी थी । जिसकी पृथ्वी से दूरी लगभग एक दशमलव आठ करोड़ प्रकाश वर्ष थी । वहाँ कुछ पल रुकने के बाद मैं राजा ब्रम्हात्मा के साथ पिन व्हील गैलेक्सी पर पहुँच गया । यह हमारी पृथ्वी से करीब ढाई करोड़ प्रकाश वर्ष की दूरी पर है । इसके बाद हम एम-106 जो कि पृथ्वी से दो करोड़ इकतीस लाख प्रकाश वर्ष दूर है और फिर सोम ब्रेरो गैलेक्सी पर पहुँच गये । सोम ब्रेरो गैलेक्सी पृथ्वी से दो करोड़ इक्कासी लाख प्रकाश वर्ष की दूरी पर है । इसके बाद ऐसे ही कुछ अन्य गैलेक्सियों जैसे-एन्टेने गैलेक्सी (चार करोड इक्कावन लाख प्रकाश वर्ष दूर) एम 60 यू सी डी (पाँच करोड़ चालीस लाख प्रकाश वर्ष दूर) आई ज्वन्की-18 और अंत में एम आर पी -273 तक राजा ब्रम्हात्मा का यान पहुँच गया था । एम आर पी-273 की पृथ्वी से दूरी बीस करोड़ प्रकाश वर्ष से भी अधिक है । अब यह दूरी मेरे मनोयान के प्रक्षेपण स्थल निरंजनपुर से दूर होती जा रही थी । इसलिए मेरे मनोयान में सिग्नल कुछ कम आ रहे थे । मैंने राजा ब्रम्हात्मा से वापस चलने का आग्रह किया । क्षण भर में ही हम लोग राजा ब्रम्हात्मा के महल में पहुँच गए ।
राजा ब्रम्हात्मा का आतिथ्य पाकर में बहुत खुश था । उन्होंने यादगार स्वरूप अपने ग्रह की कई चीजें मुझे दी । मैं तो एक अदना सा लेखक हूँ इसलिए मैंने अपनी औकात के अनुसार उन्हें अपनी जेब में टँगी एक पायलट पेन और अपना एम आई का नोट-5 मोबाइल भेंट किया । इसके बाद राजा ब्रम्हात्मा और उनकी प्रजा ने मुझे स्नेहपूर्वक अश्रुपूर्ण विदाई दी । राजा ब्रम्हात्मा की पुत्री राजकुमारी सुनिसुकी तो मेरे साथ पृथ्वी लोक आने की जिद भी करने लगी । लेकिन मेरे मनोयान में सिर्फ़ केवल एक ही व्यक्ति सवार हो सकता था । इस वायदे के साथ कि अगली बार जब भी स्वर्गारोहणी की यात्रा पर आऊँगा उन्हें पृथ्वीलोक अवश्य घुमाने ले जाऊँगा,मैंने अपने मनोयान में सवार होकर पृथ्वी लोक की ओर प्रस्थान किया ।
मैं संसार के सबसे तीव्र गति से चलने वाले यान यानि अपने मनोयान में सफ़र कर रहा था । मैंने बिना रुके हुए करोड़ों प्रकाश वर्ष की दूरी तय करके सौर कक्ष के बाद पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश किया । यहाँ अंतरिक्ष में दुनिया के कई देशों के द्वारा भेजे गए हजारों क्षतिग्रस्त उपग्रहों के अवशेषों से बचते-बचाते मैं पृथ्वी के निकट पहुँचने वाला था । तभी अचानक मेरे मनोयान के सामने एक विशालकाय चीनी उपग्रह का कचरा आ गया । चीनी उपग्रह के कचरे से हुई भिड़ंत के कारण मेरा मनोयान भी "केसलर सिंड्रोम" का शिकार हो गया । मैं दहकते हुए अँगारे के समान क्षण भर में अपने मनोयान से निरंजनपुर के अपने इंडोर स्टेशन ए-3-03 के लांचिंग पैड रेस्ट बेड पर बड़ी जोर से गिरा ।
इतनी सर्द सुबह में भी पसीने से तर-बतर होकर मैं अपनी इस रोमांचक यात्रा का अकेला गवाह बनकर हाँफ रहा था । पास में लेटे सात साल के बेटे ने मुझे देखकर कहा,"अरे उठो पापा जी ! वरना स्कूल की देर हो जाएगी"। इस तरह मैं एक अंतरिक्ष यात्री न होते हुए भी आज आपके सामने "मेरी रोमांचक अंतरिक्ष यात्रा" के झण्डे गाढ़ने में सफ़ल हुआ ।

भूपेन्द्र डोंगरियाल
23/12/2018



© भूपेन्द्र डोंगरियाल