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सोने के आलू
यह पूस का महीना था । कुछ लोग कह रहे थे कि आज़ साल का आखरी दिन है नया साल आने वाला है । भगवानदीन ने सोचा,"मुझे इससे क्या लेना देना । पुराने साल ने कौन सा मेरा घर दौलत से भर दिया है । पिछले वर्ष भी आजकल गाँव भर में यहाँ यही चर्चा थी नया साल आ रहा है,नया साल आ रहा है । पूरी साँझ और रातभर  इन लोगों के चक्कर में घर पर बैठा इंतजारी करता रहा । न जाने कब नया साल आया । भोर में जाकर स्कूल जाते हुए बच्चों से पता चला कि नया साल आ चुका है । सभी पता नहीं कौन सी भाषा में बोल रहे थे, हप्पी नू यर-हप्पी नू यर । मैं तो चलूँ अपने खेत में पानी ही डाल आता हूँ "।
         यह सोचते हुए उसने अपनी पत्नी बच्चीदेवी से कहा,"जल्दी से भोजन बना ले,कुछ लोग फिर कह रहे हैं नया साल आने वाला है,नया साल आने वाला है"। अभी जब मैंने सुच्चा को पूछा कि यह नया साल कितनी देर में आएगा तो उसने बताया कि,"अभी तो पुराने को जाने में भी छः-सात घण्टा बाकी है । रात के ठीक बारह बजे आएगा"।
          बच्चीदेवी बोली,"कल भी खेत में पानी डारने गए थे । अरे हमारा कौन सा बीसियों बीघा का खेत है । जो रोज़-रोज़ इस हाड़ कंपाने वाली ठण्ड में खेत पर जाना जरूरी है । कुल तीन बीघे का खेत है । वह भी बँटाई पर लिया हुआ है । तुम्हारे ठण्ड में जाने से वह छः बीघा न हो जाएगा"।
         भगवानदीन बोला,"अरी तू नहीं जानती,मर्द के खेत में जाने से खेत में फ़सल खूब अच्छी लगती है । इस बार फ़सल अच्छी लग रही है । आधे बीघे में मटर और आधे बीघे में आलू है । दो बीघा में गेहूँ भी हम तीन प्राणियों के लिए कम न होगा । तू देर मत कर, ज़ल्दी से मक्के की रोटी और सरसों का साग बना । फिर मैं चला अपने खेत की ओर"।
         बच्चीदेवी ने जल्दी-जल्दी सरसों का साग बनाया । उसने आटे के कनस्तर में देखा तो तीन-चार दिन का आटा और बचा था । उसने हाथ खींचकर रोटियों के लिए कुछ कम ही आटा गूंथा । इसके बाद उसने पति के लिए गरमागरम रोटी बनाई । सरसों का साग कुछ ज्यादा ही अच्छा बना था तो भगवानदीन ने आज दो रोटी ज़्यादा डकार ली । बचे हुए आटे की पतली-पतली चार रोटी और बन पाई । उसके बेटे रामदीन ने भी आज दो की बजाय तीन रोटी लपेट ली । दिल मनाने के लिए बच्चीदेवी ने सरसों के साग में एक ही रोटी के कई टुकड़े करके मिलाए और किसी तरह रात का गुजारा किया ।
         रोटी खाकर भगवानदीन ने अपना फावड़ा उठाया । जैसे ही वह खेत की ओर चला,बच्चीदेवी बोली,"आटा खत्म होने को है,मुश्किल से दो-तीन दिन और चलेगा । अभी नई फ़सल तैयार होने में दो महीने का समय और है । कम से कम एक मन गेहूँ तो लग ही जाएगा" ।
         भगवानदीन बोला,"तुझे भी यह सब रात को नज़र आता है । कल भोर में याद दिलाना । एक मन गेंहूँ कहीं से उधार ले लूँगा"। यह कह कर वह खेत की ओर चल दिया ।
          रास्ते में चौधरी हरदेव के बिगड़ैल लड़के नये साल की प्रतीक्षा में अपने हम उम्र लड़कों के साथ अलाव ताप रहे थे । भगवानदीन को देखकर चौधरी का बड़ा लड़का सत्ते बोला,"राम-राम चाचा ! इस ठण्ड में फावड़ा उठाए कहाँ चले "।
          भगवानदीन बोला,"राम-राम बेटा ! कूल चल रही है,सोचा खेत में पानी लगा आऊँ"।
           सत्ते ने भगवानदीन को रोकते हुए कहा,"अरे रुको चचा ! आज़ न्यू ईयर की जश्न पार्टी है । महफ़िल में बैठो हमारे साथ"।
            भगवानदीन ने कहा,"महफ़िल में बैठना अमीरों का शौक है,गरीब किसान की महफ़िल तो खेत में ही सजती है"।
            सत्ते ने बगल में रखी वोदका की बॉटल से एक गिलास में पटियाला वाला पैक तैयार करके भगवानदीन को पकड़ाते हुए कहा,"जाने वाले वर्ष का प्रसाद समझ कर पी जा चचा"।
             भगवानदीन लड़कों की इन हरकतों को मरजादा के खिलाफ़ समझ रहे थे । इसलिए वह गिलास की ओर ध्यान न देकर अपने खेत की ओर बढ़ गया । इतने में चौधरी मांगे लाल का बड़ा बेटा सुखवीर सत्ते को भड़काते हुए बोला,"अबे ओ हरदेव के छोरे ! कर दी न तेरे चचा ने तेरे प्रसाद की बेज्जती । अरे ये ग़रीब लोग हैं,ये हाथ जोड़ के नहीं मानते । देख मैं इसे अभी ठीक करता हूँ"।
            उसने दौड़ कर भगवानदीन के हाथ से फावड़ा छीन लिया । भगवानदीन ने सुखवीर से कहा,"अरे चौधरी साहब क्यों परेशान कर रहे हो । मुझे खेत में काम है लाओ मेरा फावड़ा दे दो । तुम लोग अपनी महफ़िल में मस्त रहो । यहाँ मेरा क्या काम"।
            इतने में सत्ते ने भगवानदीन का हाथ पकड़ कर गिलास उसके हाथ में पकडाते हुए कहा,"देख चचा अब तो इज्जत का सवाल है । गिलास में रखा पैक तूने नहीं पिया तो जिस बँटाई के खेत में तू काम करने जा रहा है बापू से कहकर उसे भी वापस लिवा लूँगा"।
           भगवानदीन दुविधा में फँस गया । वह जानता तो था कि चौधरियों ये लड़के बड़े बिगड़े हुए हैं । अपनी ज़िद के आगे किसी की नहीं चलने देते । भगवानदीन बीड़ी,तम्बाकू तो पीता था लेकिन शराब उसने आज़ तक नहीं पी थी । इधर सुखवीर उसे नशीली आँखों से घूर रहा था । हार कर भगवानदीन ने सत्ते के द्वारा पकड़ाया हुआ गिलास एक ही साँस में गटक लिया । इसके बाद उसने सुखवीर से कहा,"चौधरी साहब अब तो मेरा फावड़ा दे दो । जाकर कुछ काम कर लूँगा"।
           सुखवीर ने फावड़ा भगवानदीन को पकड़ाते हुए बोला,"जा ज़ल्दी से खेत में पानी लगा ले । अभी नया साल आने में तीन घण्टे और हैं । बारह बजते ही फिर यहीं पहुँच जाना । आज़ की रात तू भी हमारे साथ यहीं डाँस करेगा"।
            भगवानदीन फावड़ा पकड़कर सरपट खेत की ओर निकल गया । विदेशी दारू धीरे-धीरे असर करती है । खेत में पहुँच कर भगवानदीन ने खेत की डोल ठीक की और नहर से अपने खेत की ओर पानी लगा दिया । नहर में पानी खूब चल रहा था इसलिए जल्दी ही भगवानदीन का खेत पानी से लबालब हो गया ।
              इधर भगवानदीन का खेत पानी से लबालब हो रहा था और उसके पेट में गया वोदका के पैक का नशा धीरे-धीरे उसे नशे लबालब करता जा रहा था । आज उसके शरीर को न तो सर्दी सता रही थी और न कोई थकान ही महसूस हो रही थी । उसने नहर से अपने खेत के पानी की कूल बन्द कर दी । उसने चौधरी हरदेव से ही तो खेत बँटाई पर लिया था । सामने ही चौधरी हरदेव का चार एकड़ का खेत था । उसने भी एक एकड़ में मटर आधे एकड़ में सरसों आधे एकड़ में आलू और दो एकड़ में गेंहूँ की फसल बोई थी । ठण्ड के कारण चौधरी हरदेव को खेत में पानी लगाने के लिए कोई मज़दूर भी नहीं मिल रहा था । आज़ सुबह ही उसने भगवानदीन को खेतों में पानी लगाने को कहा था । लेकिन मजदूरी में दोनों की बात न बनी । भगवानदीन सौ रुपया प्रति एकड़ माँग रहा था जबकि चौधरी बीस रुपये प्रति एकड़ देने की बात कर रहा था । नशे में मस्त भगवानदीन के दिमाग में पत्नी की कही बात बार-बार आ रही थी । उसने फावड़ा कँधे में रखा और घर की ओर चल दिया ।

    (2)

          घर लौटते समय भी भगवानदीन को नशे का थोड़ा-थोड़ा शुऱुर चढ़ा हुआ था । वह उसी रास्ते से वापस आया जहाँ सत्ते और सुखबीर नये साल के जश्न की तैयारी में अलाव सेक रहे थे । भगवानदीन को देखते ही सत्ते बोला,"और चचा आ गए खेत से । हमारे खेत में भी पानी लगा दिया होता तो क्या कुछ घट जाता"।
         भगवानदीन बोला," अरे ये चौधरी माँगे लाल का लौंडा ही तो कह रहा था कि बारह बजे तक यहाँ पहुँच जाना । मैं तो इसीलिए इधर से आ गया । इस बार मैं भी तो देखूँ ये नया साल कब और कैसे आता है । थोड़ा पीछे हटो मुझे भी अलाव सेकने दो"।
          यह सब भगवानदीन नहीं बल्कि उसके अंदर का वोदका का पटियाला पैक बोल रहा था । वरना उसकी क्या मज़ाल थी कि सुखवीर के सामने इस तरह उसके पिता का नाम ले सके । सुखवीर भी नशे में मस्त था इसलिए उसका ध्यान इस ओर नहीं गया । बल्कि वह भगवानदीन की इस बात पर बहुत खुश था कि उसके कहने पर वह इस जश्न पार्टी में शरीक़ होने आ गया । उसने सत्ते से कहा,"अरे सत्ते चचा के लिए भी एक पैक तैयार कर । इस बार सोनू गुर्ज्जर की चिवास वाली बॉटल में से चचा के लिए भी पैक बना डाल । ये बेचारा भी याद करेगा कि चौधरियों के बेटों की महफ़िल में गया था"।
            भगवानदीन ने कहा,"सत्ते बेटा ज्यादा न डाल देना वरना तेरी चाची आज़ घर पर भी न आने देगी । वैसे भी वह मुझसे आज नाराज़ है"।
            सतवीर बोला,"क्या बात चचा,चाची क्यों नाराज़ है । उसे भी अपने साथ में ले आता । दो घूँट चाची के गले में भी उतरती तो वह भी मस्त हो जाती"।
            भगवानदीन बोला,"अरे बेटा क्या बताऊँ,हम ग़रीब लोगों के घरों में तो चूल्हा जलने के लिए ही जिंदगी भर खट-पट चलती है । आजकल काम धन्धा है नहीं,जिसको देखो  वह गरीब का पेट काटकर अमीर बनने की होड़ में है । आप लोग ठहरे जमींदार लोग,आप क्या इन बातों को समझोगे । चलो छोड़ो क्यों आप लोगों का जश्न का मज़ा किरकिरा करूँ । कुछ हो तो दे दो वरना मैं चलूँ अपनी बच्चीदेवी को मनाने"।
             भगवानदीन की बात पर सत्ते,सुखवीर और सोनू और जस्सी ने जोर का ठहाका लगाया । वे हँसते हुए बोले लगता है चचा भी आज़ रंगत में हैं । अभी तो बारह बजने में आधा घण्टा और है । चलो तब तक एक-एक पैक खींच लेते हैं । उन चारों ने भगवानदीन के साथ चैस किया और फिर पाँचों ने गटागट अपने-अपने पैक खींच लिए । फिर सुखवीर ने अपने मोबाइल के साथ ब्लूटूथ स्पीकर को कनेक्ट किया । उसमें एक से एक फ़िल्मी गानों पर वे चारों डाँस कर रहे थे । भगवानदीन का नशा भी कुछ बढ़ गया तो वह भी अपनी धोती का किनारा पकड़कर ठुमकने लगा । वह नशे में झूमते हुए सत्ते से बोला,"बेटा सत्ते तू तो मेरे मालिक का बेटा है लेकिन आज तूने मुझे जो सम्मान दिया ऐसा तो अपनी औलाद भी नहीं देते । आज भगवानदीन ने अपने दोनों बेटों के कहने पर शराब पी है । इसका मतलब कोई माई का लाल मुझे शराबी न समझे"।
         सत्ते बोला,"क्या बात कर दी चचा आपने,किसकी मज़ाल जो आपको कुछ भी कह दे । बोल चचा दिल खोल कर बोल तुझे कोई कमी है अपने बेटे के होते हुए"।
          भगवानदीन बोला,"अरे आप लोग द्वारिकाधीश हो,पर मैं भी तो सुदामा हूँ । चौधरियों के साथ महफ़िल में बैठता हूँ । पर वो घर की मालकिन कहती है उसके घर में अनाज नहीं है । बेबकूफ़ औरत कहती है घर में आटा नहीं है । पूरा मज़ा किरकिरा कर दिया  नू यर का । कहती है एक मन गेहूँ उधार न मिला तो तीन-चार रोज़ बाद घर का चूल्हा भी न जलेगा,भूखे मरना पड़ेगा"।
        भगवानदीन की यह बात सुखवीर ने सुन ली । वह बोला,"अरे ओ सत्ते ! भगवानदीन चचा के घर एक बोरी गेहूँ क्यों नहीं डलवा देता । अपने बापू को बोलता क्यों नहीं कि ये खेत इसे खाने-कमाने के लिए दे दे । बेचारा तीन बीघे में क्या कमाएगा और क्या बँटाई में देता होगा"।
         यह कहकर उसने अपनी जेब से पाँच सौ रूपये का एक नोट निकाला और भगवानदीन को देते हुए कहा,"ये ले चचा कल एक मन गेहूँ ख़रीद के चाची की नाराजगी दूर कर देना । चल अभी मस्ती से नाच हमारे साथ"।
            भगवानदीन ने पाँच सौ रूपये का नोट देखा तो वह बोला,"बेटा चौधरियों की उधारी कैसे खाऊंगा । मैनें सुना है चौधरी पहले उधार देते हैं और फिर उसकी चमड़ी उधेड़ते हैं । कहीं ऐसा न हो चौधरी सुखवीर भी......."। यह कहकर भगवानदीन की जुबान अटक गई । उसे लगा कि उसने सच बोल दिया है अब उसकी खैर नहीं ।
           सुखवीर,सत्ते और उसके दोनों दोस्त नशे में झूम रहे थे । उन्होंने नये साल के जश्न में अब तक एक बोतल बोदका,एक बोतल चिवास और एक मैकालेन की गटक ली थी । शराब पीकर वे अब चौधरियों की चौधराहट के बजाय दार्शनिकों की भाषा बोल रहे थे । सत्ते बोला,"कोई बात नहीं चचा,अभी बापू का जमाना है मेरा ज़माना आएगा तो तू खुद इस खेत को खा-कमा लेना । अभी तो ये पाँच सौ ले ले । कम पड़ रहे हैं क्या"? फिर उसने भी अपने बटुए से एक पाँच सौ का नोट निकाला और दोनों नोट जबर्दस्ती भगवानदीन के कुर्ते की जेब में डाल दिए ।
            भगवानदीन भी नशे में था इसलिए वह सुखवीर से बोला,"अरे सुखवीर तेरे मोबाइल में वह गाना नहीं है क्या? अरे मेरी घरवाली कभी-कभी इस गाने को सुनकर मुझे डंसने का स्वांग करती है । हाँ याद आया "मैं नागिन-नागिन,मैं नागिन डाँस में नचना"।
         फिर क्या था सोनू गुर्जर ने खेत से कुछ दूरी पर खड़ी अपनी मर्सडीज बेंज पर वही गाना चला दिया । भगवानदीन ने जम कर उस गाने पर डाँस किया । जैसे ही रात के ठीक बारह बजे सोनू गुर्जर अपनी कार में रखी डेलमोर की बॉटल लेकर डाँस करते-करते खेत में चला आया । इसके बाद सत्ते ने पाँच गिलासों में नाप-तौल कर डेलमोर की बोतल को उड़ेल दिया । चैस के साथ पाँचों ने बिना पानी के पूरे गिलास एक ही साँस में गटक लिए । फिर एक दूसरे को नए वर्ष की बधाई दी । भगवानदीन के लिए इस तरह का यह पहला अनुभव था । आज उसने पहली बार गरीब किसान के बजाय राजसी ठाठ-बाट से अपना पहला "हप्पी नू यर" मनाया । वह करीब एक घण्टे तक हर एक गाने पर खूब नाचा । आखरी पैक पीने से भगवानदीन का नशा कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया । उसने नागिन डाँस के साथ-साथ फावड़ा डाँस करके भी आज़ चौधरियों के चारों लड़कों का खूब मनोरंजन किया ।
         रात के डेढ़ बजे सत्ते,सुखवीर और जस्सी सोनू गुर्ज्जर की गाड़ी में बैठकर कर घर जाने लगे । भगवानदीन बोला,"ये ठीक बात नहीं बेटा मेरी झुपड़ी रास्ते में ही है । मुझे भी घर छोड़ दो । वहाँ अपनी चाची से भी "हप्पी नू यर" कहकर चले जाना"।
          सभी नशे में झूम रहे थे । सत्ते बोला,"चलो आज चाची से भी मिल लेंगे । बैठो चचा गाडी में बैठो"।
          भगवानदीन ने अपना फावड़ा वहीं छोड़ दिया । वह जाकर सोनू गुर्ज्जर के बगल में बैठ गया । मूँछों पर ताव देते हुए वह बोला,"चलो ड्राइवर ! गाड़ी हमारी हवेली की तरफ़ ले चलो"। किसी मझे हुए एक्टर की तरह उसकी दबंग आवाज़ पर सभी ने एक साथ जोरदार ठहाका लगाया । सत्ते बोला,"सोनू भाई नाराज़ मत होना,चचा सातवें आसमान में उड़ रहा है"।
             थोड़ी ही देर में भगवानदीन की झोपड़ी के आगे मर्सडीज बेंज पहुँच गई । सत्ते ने भगवानदीन को आवाज़ लगाई,"चचा आपकी हवेली आ गई है । कहो तो खटिया यहीं पर बुला लें"। भगवानदीन बोला,"धन्यवाद ! हाँ रुको । मेरी बच्चीदेवी से भी तो मिलते हुए जाओ "।
         गाड़ी की आवाज़ सुनकर बच्ची देवी की नींद खुल गई । आधी रात में उसने भगवानदीन के साथ चार-चार मुस्टंडों को देखा तो वह घबरा गई । उसने अपनी साड़ी के पल्लू से सिर ढाँपते हुए पूछा,"क्या बात तबियत तो ठीक हैं न । ये कौन लोग है"?
         भगवानदीन बोला,"डरो मत रानी ! ये मेरे भतीजे हैं । ये तुझे "हप्पी नू यर" बोलने आए हैं । अपने चौधरी साहब के होनहार बच्चे हैं"। उन चारों ने बच्चीदेवी को बाहर से ही "हैप्पी न्यू ईयर चाची" कहा । चारों ने कार में बैठकर भगवानदीन को बाय-बाय कहा और अपनी गाड़ी में फुर्र हो गए ।
          भगवानदीन चारों हाथ-पैर टेक कर झोपड़ी के अंदर घुस गया । अपने कुर्ते की जेब से हज़ार रुपये के नोट निकाल कर उसने बच्चीदेवी के हाथ में रखते हुए कहा । बड़े लोगों के साथ नए साल का जश्न मनाया था । ये ले कल एक मन धान और एक मन गेहूँ लेकर आ जाना । इसके बाद अपनी धोती-कुर्ता खूँटी पर टाँगकर "नागिन-नागिन ! मैं नागिन डाँस में नचना" गुनगुनाते हुए वह बच्चीदेवी के बगल में जाकर बेसुध होकर लेट गया । आज़ बच्चीदेवी को भगवानदीन पर बहुत गुस्सा आ रहा था । क्योंकि उसके मुँह से शराब की वही बू आ रही थी जिससे उसका पहला पति यानि भगवानदीन का बड़ा भाई पाँच वर्ष पूर्व चल बसा था ।
          सुबह हुई तो भगवानदीन का शरीर दर्द से टूट रहा था । बच्चीदेवी ने नाश्ता तैयार किया और कालू को नाश्ता करवाकर उसे स्कूल छोड़ने जाने लगी । भगवानदीन बोला,"सेठ की दुकान से एक-एक मन धान और गेहूँ भी तुलवा कर चक्की में दे देना । साँझ को में ले आऊँगा"। बच्चीदेवी रात की बात भूल चुकी थी । आज पहली बार उसने इतने रूपये देखे थे । नौ बजे सेठ की दुकान खुली तो उसने सेठ से एक-एक मन दोनों अनाज़ तुलवाकर उसी की चक्की में पिसवाने को दे दिए । तीस रूपये बचे थे तो उसका वह दो सेर गुड़ और दो सेर तेल लेकर घर को आने लगी ।
          चौधरी हरदेव सेठ की दुकान पर ही बैठा था । उसने बच्चीदेवी से पूछा भगवानदीन कहाँ है ?
          बच्ची देवी बोली,"घर पर सो रहे हैं "।
चौधरी बोला,"क्या उसने खेत में पानी डाल दिया" ?
बच्चीदेवी बोली,"रात में गए तो खेत में,पता नहीं कितना काम किया होगा"।
चौधरी ने अपनी छड़ी उठाई और खेत की ओर चल पड़ा । वहाँ उसने देखा,भगवानदीन ने अपने खेत में पानी लगाया था । वहीं उसके खेत की मेंड पर आग जले हुए के निशान थे । आग के सामने आलू भून कर खाए गये थे । चौधरी अपने खेत की ओर बढ़ा जहाँ उसे दो-तीन आलू के पौधे उखड़े हुए मिले । चौधरी हरदेव एक हाथ में आलू के पौध और दूसरे हाथ में छड़ी उठाए भगवानदीन की झोपड़ी की ओर चला आया । उसने झोपडी के बाहर से भगवानदीन को आवाज़ लगाई । भगवानदीन भागता हुआ बाहर चला आया । जैसे ही उसने चौधरी को राम-राम कहा । चौधरी ने सटा-सट पाँच-छः लाठी भगवानदीन की पीठ पर दे मारे ।
भगवानदीन ने गिड़गिड़ाते हुए कहा,"मत मारो माई-बाप,खेत में पानी लग जाएगा"।
          चौधरी ने भगवानदीन को आलू की पौध दिखाते हुए कहा,"कल रात तूने ही ये खोदे थे न । बता कहाँ हैं इन पर लगे आलू । कल तक भूखे मर रहे थे । आज बीबी के पास हजार रूपये कहाँ से आ गए । जरूर तूने ये आलू खोद कर बेचे हैं । सच-सच बता वरना अभी तेरी खाल खींच दूँगा"।
            इतने में सोनू गुर्ज्जर अपने टैक्टर में एक-एक कुन्तल गेंहू और धान भर कर ले आया । उसे देखकर भगवान दीन बोला,"बचा लो सोनू बेटा ! बचा लो । मैं कल रात में तुम लोगों से यही कह रहा था कि चौधरी लोग पहले उधार देते हैं फिर खाल खींचते हैं"।
            भगवानदीन के मुँह से यह सुनकर चौधरी हरदेव ने उसकी पीठ पर दो डण्डे और बरसाते हुए कहा,"भूतनी के तेरी यह मज़ाल चौधरियों की मज़ाक उडाता है । बता किसको बेचे तूने मेरे खेत के सोने के आलू "।
         यह देख कर सोनू गुर्ज्जर से से रहा न गया वह अपने ट्रैक्टर से नीचे उतरा । उसने चौधरी हरदेव को समझाते हुए कहा,"ताऊ छोड़ दो इस ग़रीब को ! अरे आलू भी भला सोने के होते हैं । कल रात सत्ते,सुखवीर,जस्सी और मैं नए साल का जश्न आपके खेतों पर ही मना रहे थे । आपके सत्ते ने ये तीन-चार आलू के पौधे उखाड़कर इनमें लगे आलू भूनकर हमें खिलाए थे । इसे छोड़ दो इसका इसमें कोई दोष नहीं है"।
        अब तक बच्चीदेवी भी घर पहुँच गई । चौधरी हरदेव को देखकर उसने घूँघट कर लिया । उन्हें राम-राम कहकर वह झोपड़ी के अंदर चली गई । उसे मालूम न था कि चौधरी हरदेव ने अपनी लाठी से भगवानदीन को नववर्ष का ईनाम दे दिया है । भगवानदीन लँगड़ाते हुए अपनी झोपडी में गया । उसने बच्ची देवी से सोनू गुर्ज्जर और चौधरी के लिए चाय बनाने को कहा । इसके बाद उसने झोपडी के बाहर अपनी खटिया डाल दी । सोनू गुर्ज्जर और भगवानदीन ने ट्रैक्टर में रखा अनाज उतार दिया । फिर भगवानदीन ने चौधरी हरदेव को हाथ जोड़ते हुए कहा,"चौधरी साहब कोई बात नहीं आप तो मेरे बड़े भाई समान हैं । छोटों की गलती पर बड़ों को गुस्सा आ ही जाता है । बैठो ! इस गरीब के घर नये साल में एक कप चाय पीते जाइए ।
         चौधरी हरदेव ने सोनू गुर्ज्जर से पूछा,"यह अनाज़ इसे क्यों दे रहे हो"?
          सोनू गुर्ज्जर बोला,"अरे ताऊ ये बेचारा आपकी और हमारी शरण में रहता है । बँटाई के तीन बीघे के खेत से इसके लिए साल भर का अनाज़ भी पैदा नहीं होता । इसके घर में अनाज़ का एक भी दाना नहीं है । इसलिए हम चारों दोस्तों ने पुराने साल की आख़री दिन जब इसका यह हाल सुना तो नए साल में इसके लिए खुशियों की सौगात लेकर मैं यह अनाज़ इसे देने आया हूँ । सत्ते और सुखवीर ने भी कल इसकी थोड़ी मदद की थी । हमने सोचा नए साल में कुछ नेक काम ही कर लेंगे"।
          चौधरी हरदेव बोला,"भगवान तुम्हें नए साल में ऐसे ही नेक काम करने की बुद्धि दे । तुम्हारे साथ-साथ अब मेरी भी आँखे खुल गई । मैंने द्वेषभाव से व्यर्थ में ही इस बेचारे की मरम्मत कर दी । माफ़ करना भगवानदीन ! चल आज़ से इस तीन बीघे के चक को तू खुद ही खा-कमा । समय मिलेगा तो मेरे खेत में भी पानी लगा देना"।
         इतनी देर में बच्चीदेवी चाय बनाकर ले आई । तीनों ने गरमागरम चाय पी । इसके बाद चौधरी हरदेव सोनू गुर्ज्जर के साथ ही टैक्टर में अपनी हवेली की ओर निकल गए । भगवानदीन और उसकी पत्नी ने सड़क पर रखा अनाज़ घर के अंदर रखा । भगवानदीन ने धीरे से बच्ची देवी को कहा "हप्पी नू यर" । इस साल की शुरुआत भी मैं जिंदगी भर न भूलूँगा । बच्ची देवी ने तो कुछ देखा ही नहीं था इसलिए वह बोली,"चौधरी साहब और उनके लड़को को भगवान लम्बी उम्र दे"।
         भगवानदीन बोला,"हाँ मेरे लिए भगवान से कभी ऐसा वरदान न माँग लेना । तुझे क्या मालूम इस सब में इस भगवानदीन की चमड़ी का भी कुछ दाम है"।
           बच्ची देवी बोली,"कल रात कौन सा गाना गुनगुना रहे थे,गाओ न एक बार फिर । बड़ा अच्छा लग रहा था । पर तुम तो बेसुध होकर फिर सो ही गए ।
         भगवानदीन ने बच्चीदेवी का मन रखने के लिए कराहते हुए गुनगुनाया,"नागिन-नागिन ! मैं नागिन डाँस में नचना"।
          फिर दोनों ने अपने अंदाज में एक दूसरे को नए साल की बधाई दी । भगवानदीन कुछ देर के लिए मानो अपना सारा दर्द भूल गया था ।
     
भूपेन्द्र डोंगरियाल
04/12/19

   

                                   


© भूपेन्द्र डोंगरियाल