शताब्दी और जीवन का अन्त
शताब्दी का अर्थ होता हैं सौ वर्ष का समय
100 वर्ष के जीवन में मनुष्य के साथ क्या-क्या होता है उसी का वर्णन किया है
सबसे पहले हमारे जीवन में ब्रह्मचर्य ; फिर गृहस्थ; वानप्रस्थ ;. सन्यास मनुष्य इन चारों आश्रमों में प्रवेश करने के बाद ही मोक्ष की प्राप्ति होती है
इन चारों आश्रमों के द्वारा गुजरने पर ही मुख्य पांच यज्ञ से मुक्त हो जाएंगे
यह पांच यज्ञ होते हैं
1 पितृ यज्ञ
2 ऋषि यज्ञ
3 अतिथि यज्ञ
4 देव यज्ञ
5 भूत यज्ञ
मनुष्य ब्रह्मचर्य में ज्ञान प्राप्त करता है साथ ही साथ व्यवहारिक ; प्राकृतिक ज्ञान प्राप्त कर ; दया भाव ; मान सम्मान ; मर्यादा का पालन करता हुआ गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता है गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करके वैवाहिक जीवन में बध जाता है
और अपने वंश को आगे बढ़ाता है बच्चे बड़े हो जाने के बाद वह वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करता हैं
वानप्रस्थ में प्रवेश करने पर वह सारी संपत्ति का भार अपने बच्चों को सौंप देता है और सारी चिंताओं से धीरे-धीरे मुक्त होता है
अंत में भगवान की आराधना में लीन हो जाता है पहाड़ों व जंगलों जैसे एकांत स्थान पर जाकर भगवान की वंदना करता है स्तुति करते-करते उसे ओम क्या है भगवान क्या है उसके बारे में सारी जानकारी प्राप्त हो जाती है वह कैसा होता है क्या करता है कहां रहता है ज्ञान प्राप्त के बाद वह साधु हो जाते हैं जगह-जगह जाकर उपदेश देते और मनुष्यों को असत्य से सत्य की ओर अग्रसर करते हैं
ओम कार की प्राप्ति के बारे में बताकर मानव सेवा के मार्ग पर चल पड़ते हैं सेवा करते-करते इस संसार से विदा हो जाते हैं ऐसी महान आत्माएं परमात्मा में जाकर विलीन हो जाती हैं इस तरह मनुष्य के जीवन का अंत होता है !!
मिट्टी में ही जन्म लिया
मिट्टी में पली बड़ी
मिट्टी में ही मेरा जीवन
मिट्टी में ही समा गई !!
© Mamta
100 वर्ष के जीवन में मनुष्य के साथ क्या-क्या होता है उसी का वर्णन किया है
सबसे पहले हमारे जीवन में ब्रह्मचर्य ; फिर गृहस्थ; वानप्रस्थ ;. सन्यास मनुष्य इन चारों आश्रमों में प्रवेश करने के बाद ही मोक्ष की प्राप्ति होती है
इन चारों आश्रमों के द्वारा गुजरने पर ही मुख्य पांच यज्ञ से मुक्त हो जाएंगे
यह पांच यज्ञ होते हैं
1 पितृ यज्ञ
2 ऋषि यज्ञ
3 अतिथि यज्ञ
4 देव यज्ञ
5 भूत यज्ञ
मनुष्य ब्रह्मचर्य में ज्ञान प्राप्त करता है साथ ही साथ व्यवहारिक ; प्राकृतिक ज्ञान प्राप्त कर ; दया भाव ; मान सम्मान ; मर्यादा का पालन करता हुआ गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता है गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करके वैवाहिक जीवन में बध जाता है
और अपने वंश को आगे बढ़ाता है बच्चे बड़े हो जाने के बाद वह वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करता हैं
वानप्रस्थ में प्रवेश करने पर वह सारी संपत्ति का भार अपने बच्चों को सौंप देता है और सारी चिंताओं से धीरे-धीरे मुक्त होता है
अंत में भगवान की आराधना में लीन हो जाता है पहाड़ों व जंगलों जैसे एकांत स्थान पर जाकर भगवान की वंदना करता है स्तुति करते-करते उसे ओम क्या है भगवान क्या है उसके बारे में सारी जानकारी प्राप्त हो जाती है वह कैसा होता है क्या करता है कहां रहता है ज्ञान प्राप्त के बाद वह साधु हो जाते हैं जगह-जगह जाकर उपदेश देते और मनुष्यों को असत्य से सत्य की ओर अग्रसर करते हैं
ओम कार की प्राप्ति के बारे में बताकर मानव सेवा के मार्ग पर चल पड़ते हैं सेवा करते-करते इस संसार से विदा हो जाते हैं ऐसी महान आत्माएं परमात्मा में जाकर विलीन हो जाती हैं इस तरह मनुष्य के जीवन का अंत होता है !!
मिट्टी में ही जन्म लिया
मिट्टी में पली बड़ी
मिट्टी में ही मेरा जीवन
मिट्टी में ही समा गई !!
© Mamta
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