मैं और एक कहानी 2
पिछले सालों के दौरान मैंने तरह-तरह के लोगों का इंटरव्यू लिया : अमीरों का, ग़रीबों का, ताक़तवर लोगों का, और उनका जो किसी तरह अपना गुज़र-बसर कर रहे थे। मैंने सभी लोगों की आँखों में असीम कड़वाहट देखी, एक ऐसी उदासी, जिसके बारे में लोग स्वीकार नहीं करना चाहते थे, लेकिन वह फिर भी कहीं दिखाई दे ही जाता था।
कुछ लोग ख़ुश दिखाई देते हैं, लेकिन वे इस बारे में ज़्यादा सोचते ही नहीं। कुछ लोग योजनाएँ बनाते हैं : मुझे एक पति चाहिए, एक घर, दो बच्चे, एक घर ग्रामीण इलाक़े में। जब तक वे इन सब बातों में डूबे रहेंगे तब तक वे ऐसे साँड़ की तरह बने रहेंगे जो बुलफ़ाइट में जाने का इंतज़ार कर रहा हो : वे सहज भाव से कुछ प्रतिक्रिया करते हैं, वे बिना यह जाने कि निशाना कहाँ है गोली चलाते रहते हैं। वे अपनी कार ख़रीद लेते हैं, कई बार वे फ़ेरारी कार भी ख़रीद लेते हैं, और वे सोचते हैं कि ज़िंदगी का अर्थ यही है, और वे इसको लेकर कोई सवाल नहीं करते। फिर वे अपनी आँखों की उस उदासी को छुपा नहीं पाते, जिसके बारे में उनको स्वयं पता नहीं होता। तुम ख़ुश हो?’
पता नहीं।’ ‘मुझे यह भी नहीं पता कि सभी लोग दुखी हैं। मैं यह जानता हूँ कि सब लोग व्यस्त हैं : समय से अधिक काम कर रहे हैं, बच्चों के बारे में चिंतित रहते हैं, अपने पतियों के बारे में, करियर के बारे में, डिग्री के बारे में, कल वे क्या करने वाले हैं उसके बारे में, उनको क्या-क्या ख़रीदना है, उनको क्या कुछ व्यवस्थित रखने की ज़रूरत है ताकि उनको हीन भावना का अहसास नहीं हो, आदि-आदि। बहुत कम लोगों ने मुझसे कहा : “मैं दुखी हूँ।’ ज़्यादातर लोगों ने कहा : “मैं ठीक हूँ। मेरे पास वह सब है जो मुझे चाहिए था।” फिर मैंने पूछा : “आपको किस बात से ख़ुशी महसूस होती है?” जवाब : “मेरे पास वह सब है जो किसी आदमी के पास होना चाहिए - परिवार, घर, अच्छी सेहत।” मैंने फिर पूछा : “क्या आपने कभी ठहरकर यह सोचा है कि क्या ज़िंदगी का यही मतलब है?” जवाब : “हाँ, यही मतलब होता है।” मैंने फिर ज़ोर दिया : “यानी ज़िंदगी का मतलब है काम, परिवार, बच्चे जो बड़े होकर आपसे दूर चले जाएँगे, एक पति या पत्नी जो सच्चे प्रेमी के बजाय आपका अधिक दोस्त बन जाए। और ज़ाहिर है, एक दिन आपका काम भी ख़त्म हो जाएगा। जब ऐसा होगा तो आप क्या करेंगे?” जवाब : इसका कोई जवाब नहीं मिला। उन लोगों ने बात बदल दी।’ ‘नहीं, वे यह कहते हैं कि : “जब हमारे बच्चे बड़े हो जाएँगे, जब मेरे पति - या मेरी पत्नी - भावुक प्रेमी के बजाय हमारे दोस्त बन जाएँगे, जब मैं रिटायर हो जाऊँगा...
कुछ लोग ख़ुश दिखाई देते हैं, लेकिन वे इस बारे में ज़्यादा सोचते ही नहीं। कुछ लोग योजनाएँ बनाते हैं : मुझे एक पति चाहिए, एक घर, दो बच्चे, एक घर ग्रामीण इलाक़े में। जब तक वे इन सब बातों में डूबे रहेंगे तब तक वे ऐसे साँड़ की तरह बने रहेंगे जो बुलफ़ाइट में जाने का इंतज़ार कर रहा हो : वे सहज भाव से कुछ प्रतिक्रिया करते हैं, वे बिना यह जाने कि निशाना कहाँ है गोली चलाते रहते हैं। वे अपनी कार ख़रीद लेते हैं, कई बार वे फ़ेरारी कार भी ख़रीद लेते हैं, और वे सोचते हैं कि ज़िंदगी का अर्थ यही है, और वे इसको लेकर कोई सवाल नहीं करते। फिर वे अपनी आँखों की उस उदासी को छुपा नहीं पाते, जिसके बारे में उनको स्वयं पता नहीं होता। तुम ख़ुश हो?’
पता नहीं।’ ‘मुझे यह भी नहीं पता कि सभी लोग दुखी हैं। मैं यह जानता हूँ कि सब लोग व्यस्त हैं : समय से अधिक काम कर रहे हैं, बच्चों के बारे में चिंतित रहते हैं, अपने पतियों के बारे में, करियर के बारे में, डिग्री के बारे में, कल वे क्या करने वाले हैं उसके बारे में, उनको क्या-क्या ख़रीदना है, उनको क्या कुछ व्यवस्थित रखने की ज़रूरत है ताकि उनको हीन भावना का अहसास नहीं हो, आदि-आदि। बहुत कम लोगों ने मुझसे कहा : “मैं दुखी हूँ।’ ज़्यादातर लोगों ने कहा : “मैं ठीक हूँ। मेरे पास वह सब है जो मुझे चाहिए था।” फिर मैंने पूछा : “आपको किस बात से ख़ुशी महसूस होती है?” जवाब : “मेरे पास वह सब है जो किसी आदमी के पास होना चाहिए - परिवार, घर, अच्छी सेहत।” मैंने फिर पूछा : “क्या आपने कभी ठहरकर यह सोचा है कि क्या ज़िंदगी का यही मतलब है?” जवाब : “हाँ, यही मतलब होता है।” मैंने फिर ज़ोर दिया : “यानी ज़िंदगी का मतलब है काम, परिवार, बच्चे जो बड़े होकर आपसे दूर चले जाएँगे, एक पति या पत्नी जो सच्चे प्रेमी के बजाय आपका अधिक दोस्त बन जाए। और ज़ाहिर है, एक दिन आपका काम भी ख़त्म हो जाएगा। जब ऐसा होगा तो आप क्या करेंगे?” जवाब : इसका कोई जवाब नहीं मिला। उन लोगों ने बात बदल दी।’ ‘नहीं, वे यह कहते हैं कि : “जब हमारे बच्चे बड़े हो जाएँगे, जब मेरे पति - या मेरी पत्नी - भावुक प्रेमी के बजाय हमारे दोस्त बन जाएँगे, जब मैं रिटायर हो जाऊँगा...