Hisar e Ana (The siege of ego) chapter 2
राहेमीन कमरे में सबीहा मीर की गोद में सर रखे लेटी थी और सबीहा उंगलियां उसके बालों में चला रही थीं।
“वहाज कल जाते वक़्त मुझसे मिला नहीं।” उनके लहज़े में अपने भांजे के लिए फिक्र थी।
“जल्दी में थे वह।” राहेमीन ने बहाना बनाया।
“अच्छा! हां बेचारा बिजी भी तो बहुत रहता है। इतने दिन बाद तो फुर्सत निकाल के आया था यहां।” उसने लेटे-लेटे ही उन्हें देखा।
“अम्मी अगर कभी मुझसे कोई गलती हो जाए तो क्या आप मुआफ़ कर देंगी?” उसके सवाल पर सबीहा मुस्कुराईं।
“मेरी जान तुम्हें तो मेरा खून भी मुआफ है और तुम गलती की बात कर रही हो।”
” फिर भी….बताइए न।”
“हां…. बिल्कुल कर दूंगी।” जवाब पर उसने आंखें मूंद लीं।
जबकि साबीहा कुछ उलझ सी गईं।
“कोई बात है क्या?……कुछ कहना चाहती हो मुझसे?”
“नहीं बस ऐसे ही…… आप बस इसी तरह बाल सहलाती रहें।”
“इतनी खामोश ना रहा करो, तुम्हारी उम्र की लड़कियां तो चहकती हुई अच्छी लगती हैं।” वह फिक्रमंद थीं।
“मेडिकल की पढ़ाई इतनी फुर्सत ही कहां देती है अम्मी।” उसके लहज़े में शिकवा था। उन्होंने गहरी सांस ली।
“बेटा तुम जानती हो वहाज कितना बड़ा सर्जन है। उसके साथ सोसायटी में मूव करने के लिए तुम्हें भी उस की तरह ना सही, थोड़ा बहुत काबिल तो बनना चाहिए ना। डॉक्टर्स ज़्यादातर डॉक्टर से ही शादी करना पसंद करते हैं।” जवाब में वह बस खामोश रही थी।
“आप बहुत मोहब्बत करतीं हैं ना उनसे?” कुछ देर बाद उसने पूछा।
“हां! वह है ही इस लायक….. इतने कम वक्त में उसने इतना बड़ा मुकाम हासिल कर लिया। फिर तुम्हें चुन कर तो मेरे दिल में अपनी जगह और भी बना ली।” वह बहुत ख़ुशी से बोलीं थी कि इतने में इलयास मीर की आवाज़ पर चौंकी।
“भई, मां बेटी quality time स्पेंड कर रहीं हैं।” राहेमीन उठकर बैठ गई। सबीहा मीर ने अपने शौहर को देखा।
“क्यूं……..आपको जलन हो रही है?”
“ज़ाहिर है, क्यूंकि मेरी बेटी मुझे घास भी नहीं डालती।” मसनुई खफ़गी से वो बोले।
राहेमीन झेंपी जबकि सबीहा हंस दी। फिर तीनों खुशगप्पियों में मसरूफ हो गए।
#############
कोई घना जंगल था जिसमें रात के घुप अंधेरे में वह उसे बार-बार पुकार रहा था। सांस फूलने लगी थी।
उसे ढूंढने के लिए इधर-उधर नज़र दौड़ा रहा था। लेकिन अंधेरे की वजह से कहीं भी कुछ ठीक से नहीं दिख रहा था तो वह क्या दिखती।
“राहेमीन।” एक बार फिर ज़ोर से पुकारा।
बगैर चप्पल के इतनी देर भागने से उसके पैर ज़ख्मी हो गए थे। चीख चीख कर गला बैठ रहा था लेकिन उसे परवाह नहीं थी।
काफी देर इधर-उधर भागने के बाद आखिरकार वह उसे कुछ फासले पर दिखाई दी थी।
एक पेड़ के पास सफेद कपड़े में मलबूस वह नम आंखों से उसे ही देख रही थी।
साफ शफ्फाफ चहरे पर अनकही बेचैनी सी रकम थी। बार-बार लब खोल कर बंद करते जैसे वह कुछ कहना चाह रही थी लेकिन कह नहीं पा रही थी। वह तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा था कि रास्ते के पत्थर से ठोकर लगने पर ज़मीन पर गिर गया।
खुद को संभाल कर जब वह उठा तो देखा कि पेड़ के पास अब कोई नहीं था। वह फिर गायब हो गई थी।
उसकी आंख एक झटके से खुली थी। कैसा बुरा खराब देखा था। माथे पर आए पसीने को पोंछ कर उसने साइड टेबल पर रखे जग से पानी ग्लास में निकाल कर पिया और फिर घड़ी देखी।
” उफ़ आज 10 बजे तक सोता रहा गया मैं।”
बिस्तर से उठते वक़्त वह India काॅल कर रहा था। एक नंबर पर कॉल मिल ही नहीं रही थी।
“या अल्लाह! इसने मेरा यह नंबर भी black list में डाल दिया।” झुंझलाते हुए उसने अपने बाप को कॉल की।
“अस्सालामु अलैकुम डैड।”
“वालेकुम अस्सालाम मेरे शहज़ादे, हो गई वहां सुबह?” इल्यास मीर उसकी आवाज़ सुनते ही खुश हो गए।
“यस डैड। कैसे हैं आप सब लोग?”
“ठीक हैं हम सब, अपना बताओ।”
“और राहेमीन खैरियत से है?” उनकी बात नज़र अंदाज़ करते उसने कद्रे बेचैनी से पूछा। इल्यास मीर एक लम्हे को खामोश हुए।
“उसकी खैरियत तुम्हारा मसला नहीं है बच्चे।”
“मेरा ही मसला है डैड, प्लीज़ बताइए ठीक है ना वह? मैंने एक बुरा ख्वाब देखा था।” इज़्तेराब में सर पर हाथ फेरा और उधर इलयास मीर को समझ नहीं आया वो अपने बेटे के ज़हन से राहेमीन का खयाल कैसे निकाले।
“ठीक है वह भी अलहम्दुलिल्लाह।” कहा तो बस इतना ही।
फिर इधर उधर की चंद बातें करने के बाद उन्होंने कॉल काट दी लेकिन काफी देर तक डिस्टर्ब रहे थे।
राहेमीन उनकी बेटी नहीं थी लेकिन बेटी से बढ़कर ही समझते थे वह उसे। ऐसे में असफन्द का उसकी तरफ झुकाव उन्हें अक्सर परेशान कर देता था।
उनका बेटा चांद की ख्वाहिश कर बैठा था और चांद तो पहुंच से दूर ही रहता है न।
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Flash back
यह एक घर की छत का मंज़र था। सुरमयी रंग का सलवार सूट पहने पुरकशिश शख्सियत की मालिक सबीहा किसी सोच में गुम थी। इस वक़्त उनकी उम्र क़रीब 22 साल थी।
आहट पर उन्होंने पीछे मुड़ कर देखा। हाशिर, उनका मंगेतर धीरे धीरे चलता हुआ आ रहा था।
“तो तुमने क्या फैसला किया?” उसके सामने खड़े होते हुए उसने पुछा। दोनों हाथ पैंट की जेब में डाले हुए थे। वह एक खूबसूरत नौजवान था।
सबीहा ने उससे नज़रें मोड़कर रेलिंग पर हाथ टिकाते हुए बोलना शुरू किया “तुम्हें पता है ? राहेमीन बोलना सीख रही है। “
“मुझे मेरे सवाल का जवाब दो। ” हाशिर ने बदमज़ा हो कर टोका लेकिन सबीहा ने बोलना ज़ारी रखा। उसका अंदाज़ खोया हुआ सा था।
“वह अपनी टूटी फूटी ज़ुबान में मुझे अम्मी कह के पुकार रही थी।” हाशिर ने गुस्से से अपनी मुट्ठियां भींची।
“उसके कहने से तुम मां नहीं बन जाओगी उसकी। “
“लेकिन मुझे तो वह मेरा ही अक्स लगती है।” वह बोली तो हाशिर झुंझलाया।
“तुम्हे समझ क्यों नहीं आता ? तुम ही बची हो क्या उसका बोझ उठाने के लिए?”
सबीहा ने तड़प कर उसे देखा “उसे बोझ मत कहो। “
“बोझ ही है वह या ये कहना ज़्यादा सही होगा की काँटा है हमारे बीच।” अबकी हाशिर की आवाज़ ऊँची थी।
” उसे काँटा तुम बना रहे हो, मेरे लिए तो वह एक फूल है।” सबीहा ने तकलीफ से उसे देखा।
“देखो सबीहा , मैं इतने दिन से तुम्हें कन्वेन्स करने की कोशिश कर रहा हूँ तो सिर्फ इसलिए की मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ।
लेकिन मैं हमारे बीच किसी गैर को बर्दाश्त नहीं कर सकता। “
“हैरत है।” सबीहा तन्ज़िया हंसी। “मोहब्बत के दावेदार हो और पहली आज़माइश पर ही हार मान ली।
क्या हुआ उन बड़े बड़े वादों का? तुम तो कहा करते थे की हर मुश्किल में साथ दोगे।
ज़माने के सर्द -गर्म में मेरे क़दम से क़दम मिला कर चलोगे। “
हाशिर एक लम्हे को लाजवाब हुआ लेकिन फिर चुभती हुई नज़रों से उसे देखा।
“मुझे आज आखरी बार जवाब चाहिए। तुम्हें उस लड़की के साथ रहना है या मेरे साथ ?” उसके सवाल पर सबीहा ने कर्ब से आँखे बंद कर के दोबारा खोली।
“मेरा जवाब वही है। मेरी बहन ने मरते वक्त बहुत मान से मुझसे राहेमीन का ख्याल रखने को कहा था। मैं उसे नहीं छोड़ सकती। “
“ठीक है , तो आज से हमारे रास्ते अलग अलग हैं ।” हाशिर ने गुस्से से उसे ऊँगली दिखाई।
” तुम बहुत शौक से पालो उसे। लेकिन एक बात मेरी याद रखना ,उम्र का ऐसा वक्त भी आएगा जब तुम्हें अपने फैसले पर पछतावा होगा। उस बच्ची के साथ तुम्हें शायद ही कोई क़ुबूल करेगा। ” सबीहा के चहरे पर भी सख्ती दर आयी।
“ऐसा वक़्त कभी नहीं आएगा, मुझे कोई क़ुबूल करे या न करे लेकिन मैं राहेमीन की अच्छी परवरिश भी करुँगी और उसका मुस्तकबिल भी इंशा अल्लाह रौशन होगा। ये मेरा तुमसे नहीं खुद से वादा है।”
“हह” वह हंसा “मुझे अफ़सोस रहेगा की तुम पर इतना वक़्त बर्बाद किया।”
“और मुझे अफ़सोस रहेगा की मैंने मोहब्बत पर ऐतबार किया। मोहब्बत का दावा करने वाले पर ऐतबार किया। इस जज़्बे से उम्मीदें वाबस्ता की। नहीं जानती थी की यह बस किताबी बातें हैं। तुम्हारा बहुत शुक्रिया मेरी गलत फहमी दूर करने का। “
कहकर वह बगैर हाशिर को और कुछ कहने का मौका दिए वहां से चली गयीं क्यूंकि नीचे से नन्ही राहेमीन के रोने की आवाज़ें आ रही थी जिसे वह कुछ देर के लिए अपनी भाभी को सौंप कर छत पर आयी थी।
सीढ़ी उतरते वक़्त आँखों से उमड़ आने वाले आंसुओं को उसने बेदर्दी से पोंछा था। उसे तकलीफ हुई थी लेकिन वह उस शख्स के लिए हरगिज़ रोना नहीं चाहती थी।
भाभी से करीब सवा साल की राहेमीन को गोद में लेकर उसे चुप कराते हुए वो अपने कमरे में आ गयी।
हाशिर कब वहां से गया और उसने उसके घर वालों से क्या कहा ,उसने जानने की कोशिश नहीं की।
Flash back end
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अली असाइमेंट के लिए नोट्स लेने जब असफंद मीर के कमरे में आया तो उसे पैकिंग करते देख कर चौंक गया।
“कहाँ की तैयारी है भई? “
” India की। ” सुकून से कहते असफंद ने अली पर जैसे बम फोड़ा था। ।
to be continued……..
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“अम्मी अगर कभी मुझसे कोई गलती हो जाए तो क्या आप मुआफ़ कर देंगी?” उसके सवाल पर सबीहा मुस्कुराईं।
“मेरी जान तुम्हें तो मेरा खून भी मुआफ है और तुम गलती की बात कर रही हो।”
” फिर भी….बताइए न।”
“हां…. बिल्कुल कर दूंगी।” जवाब पर उसने आंखें मूंद लीं।
जबकि साबीहा कुछ उलझ सी गईं।
“कोई बात है क्या?……कुछ कहना चाहती हो मुझसे?”
“नहीं बस ऐसे ही…… आप बस इसी तरह बाल सहलाती रहें।”
“इतनी खामोश ना रहा करो, तुम्हारी उम्र की लड़कियां तो चहकती हुई अच्छी लगती हैं।” वह फिक्रमंद थीं।
“मेडिकल की पढ़ाई इतनी फुर्सत ही कहां देती है अम्मी।” उसके लहज़े में शिकवा था। उन्होंने गहरी सांस ली।
“बेटा तुम जानती हो वहाज कितना बड़ा सर्जन है। उसके साथ सोसायटी में मूव करने के लिए तुम्हें भी उस की तरह ना सही, थोड़ा बहुत काबिल तो बनना चाहिए ना। डॉक्टर्स ज़्यादातर डॉक्टर से ही शादी करना पसंद करते हैं।” जवाब में वह बस खामोश रही थी।
“आप बहुत मोहब्बत करतीं हैं ना उनसे?” कुछ देर बाद उसने पूछा।
“हां! वह है ही इस लायक….. इतने कम वक्त में उसने इतना बड़ा मुकाम हासिल कर लिया। फिर तुम्हें चुन कर तो मेरे दिल में अपनी जगह और भी बना ली।” वह बहुत ख़ुशी से बोलीं थी कि इतने में इलयास मीर की आवाज़ पर चौंकी।
“भई, मां बेटी quality time स्पेंड कर रहीं हैं।” राहेमीन उठकर बैठ गई। सबीहा मीर ने अपने शौहर को देखा।
“क्यूं……..आपको जलन हो रही है?”
“ज़ाहिर है, क्यूंकि मेरी बेटी मुझे घास भी नहीं डालती।” मसनुई खफ़गी से वो बोले।
राहेमीन झेंपी जबकि सबीहा हंस दी। फिर तीनों खुशगप्पियों में मसरूफ हो गए।
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कोई घना जंगल था जिसमें रात के घुप अंधेरे में वह उसे बार-बार पुकार रहा था। सांस फूलने लगी थी।
उसे ढूंढने के लिए इधर-उधर नज़र दौड़ा रहा था। लेकिन अंधेरे की वजह से कहीं भी कुछ ठीक से नहीं दिख रहा था तो वह क्या दिखती।
“राहेमीन।” एक बार फिर ज़ोर से पुकारा।
बगैर चप्पल के इतनी देर भागने से उसके पैर ज़ख्मी हो गए थे। चीख चीख कर गला बैठ रहा था लेकिन उसे परवाह नहीं थी।
काफी देर इधर-उधर भागने के बाद आखिरकार वह उसे कुछ फासले पर दिखाई दी थी।
एक पेड़ के पास सफेद कपड़े में मलबूस वह नम आंखों से उसे ही देख रही थी।
साफ शफ्फाफ चहरे पर अनकही बेचैनी सी रकम थी। बार-बार लब खोल कर बंद करते जैसे वह कुछ कहना चाह रही थी लेकिन कह नहीं पा रही थी। वह तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा था कि रास्ते के पत्थर से ठोकर लगने पर ज़मीन पर गिर गया।
खुद को संभाल कर जब वह उठा तो देखा कि पेड़ के पास अब कोई नहीं था। वह फिर गायब हो गई थी।
उसकी आंख एक झटके से खुली थी। कैसा बुरा खराब देखा था। माथे पर आए पसीने को पोंछ कर उसने साइड टेबल पर रखे जग से पानी ग्लास में निकाल कर पिया और फिर घड़ी देखी।
” उफ़ आज 10 बजे तक सोता रहा गया मैं।”
बिस्तर से उठते वक़्त वह India काॅल कर रहा था। एक नंबर पर कॉल मिल ही नहीं रही थी।
“या अल्लाह! इसने मेरा यह नंबर भी black list में डाल दिया।” झुंझलाते हुए उसने अपने बाप को कॉल की।
“अस्सालामु अलैकुम डैड।”
“वालेकुम अस्सालाम मेरे शहज़ादे, हो गई वहां सुबह?” इल्यास मीर उसकी आवाज़ सुनते ही खुश हो गए।
“यस डैड। कैसे हैं आप सब लोग?”
“ठीक हैं हम सब, अपना बताओ।”
“और राहेमीन खैरियत से है?” उनकी बात नज़र अंदाज़ करते उसने कद्रे बेचैनी से पूछा। इल्यास मीर एक लम्हे को खामोश हुए।
“उसकी खैरियत तुम्हारा मसला नहीं है बच्चे।”
“मेरा ही मसला है डैड, प्लीज़ बताइए ठीक है ना वह? मैंने एक बुरा ख्वाब देखा था।” इज़्तेराब में सर पर हाथ फेरा और उधर इलयास मीर को समझ नहीं आया वो अपने बेटे के ज़हन से राहेमीन का खयाल कैसे निकाले।
“ठीक है वह भी अलहम्दुलिल्लाह।” कहा तो बस इतना ही।
फिर इधर उधर की चंद बातें करने के बाद उन्होंने कॉल काट दी लेकिन काफी देर तक डिस्टर्ब रहे थे।
राहेमीन उनकी बेटी नहीं थी लेकिन बेटी से बढ़कर ही समझते थे वह उसे। ऐसे में असफन्द का उसकी तरफ झुकाव उन्हें अक्सर परेशान कर देता था।
उनका बेटा चांद की ख्वाहिश कर बैठा था और चांद तो पहुंच से दूर ही रहता है न।
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यह एक घर की छत का मंज़र था। सुरमयी रंग का सलवार सूट पहने पुरकशिश शख्सियत की मालिक सबीहा किसी सोच में गुम थी। इस वक़्त उनकी उम्र क़रीब 22 साल थी।
आहट पर उन्होंने पीछे मुड़ कर देखा। हाशिर, उनका मंगेतर धीरे धीरे चलता हुआ आ रहा था।
“तो तुमने क्या फैसला किया?” उसके सामने खड़े होते हुए उसने पुछा। दोनों हाथ पैंट की जेब में डाले हुए थे। वह एक खूबसूरत नौजवान था।
सबीहा ने उससे नज़रें मोड़कर रेलिंग पर हाथ टिकाते हुए बोलना शुरू किया “तुम्हें पता है ? राहेमीन बोलना सीख रही है। “
“मुझे मेरे सवाल का जवाब दो। ” हाशिर ने बदमज़ा हो कर टोका लेकिन सबीहा ने बोलना ज़ारी रखा। उसका अंदाज़ खोया हुआ सा था।
“वह अपनी टूटी फूटी ज़ुबान में मुझे अम्मी कह के पुकार रही थी।” हाशिर ने गुस्से से अपनी मुट्ठियां भींची।
“उसके कहने से तुम मां नहीं बन जाओगी उसकी। “
“लेकिन मुझे तो वह मेरा ही अक्स लगती है।” वह बोली तो हाशिर झुंझलाया।
“तुम्हे समझ क्यों नहीं आता ? तुम ही बची हो क्या उसका बोझ उठाने के लिए?”
सबीहा ने तड़प कर उसे देखा “उसे बोझ मत कहो। “
“बोझ ही है वह या ये कहना ज़्यादा सही होगा की काँटा है हमारे बीच।” अबकी हाशिर की आवाज़ ऊँची थी।
” उसे काँटा तुम बना रहे हो, मेरे लिए तो वह एक फूल है।” सबीहा ने तकलीफ से उसे देखा।
“देखो सबीहा , मैं इतने दिन से तुम्हें कन्वेन्स करने की कोशिश कर रहा हूँ तो सिर्फ इसलिए की मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ।
लेकिन मैं हमारे बीच किसी गैर को बर्दाश्त नहीं कर सकता। “
“हैरत है।” सबीहा तन्ज़िया हंसी। “मोहब्बत के दावेदार हो और पहली आज़माइश पर ही हार मान ली।
क्या हुआ उन बड़े बड़े वादों का? तुम तो कहा करते थे की हर मुश्किल में साथ दोगे।
ज़माने के सर्द -गर्म में मेरे क़दम से क़दम मिला कर चलोगे। “
हाशिर एक लम्हे को लाजवाब हुआ लेकिन फिर चुभती हुई नज़रों से उसे देखा।
“मुझे आज आखरी बार जवाब चाहिए। तुम्हें उस लड़की के साथ रहना है या मेरे साथ ?” उसके सवाल पर सबीहा ने कर्ब से आँखे बंद कर के दोबारा खोली।
“मेरा जवाब वही है। मेरी बहन ने मरते वक्त बहुत मान से मुझसे राहेमीन का ख्याल रखने को कहा था। मैं उसे नहीं छोड़ सकती। “
“ठीक है , तो आज से हमारे रास्ते अलग अलग हैं ।” हाशिर ने गुस्से से उसे ऊँगली दिखाई।
” तुम बहुत शौक से पालो उसे। लेकिन एक बात मेरी याद रखना ,उम्र का ऐसा वक्त भी आएगा जब तुम्हें अपने फैसले पर पछतावा होगा। उस बच्ची के साथ तुम्हें शायद ही कोई क़ुबूल करेगा। ” सबीहा के चहरे पर भी सख्ती दर आयी।
“ऐसा वक़्त कभी नहीं आएगा, मुझे कोई क़ुबूल करे या न करे लेकिन मैं राहेमीन की अच्छी परवरिश भी करुँगी और उसका मुस्तकबिल भी इंशा अल्लाह रौशन होगा। ये मेरा तुमसे नहीं खुद से वादा है।”
“हह” वह हंसा “मुझे अफ़सोस रहेगा की तुम पर इतना वक़्त बर्बाद किया।”
“और मुझे अफ़सोस रहेगा की मैंने मोहब्बत पर ऐतबार किया। मोहब्बत का दावा करने वाले पर ऐतबार किया। इस जज़्बे से उम्मीदें वाबस्ता की। नहीं जानती थी की यह बस किताबी बातें हैं। तुम्हारा बहुत शुक्रिया मेरी गलत फहमी दूर करने का। “
कहकर वह बगैर हाशिर को और कुछ कहने का मौका दिए वहां से चली गयीं क्यूंकि नीचे से नन्ही राहेमीन के रोने की आवाज़ें आ रही थी जिसे वह कुछ देर के लिए अपनी भाभी को सौंप कर छत पर आयी थी।
सीढ़ी उतरते वक़्त आँखों से उमड़ आने वाले आंसुओं को उसने बेदर्दी से पोंछा था। उसे तकलीफ हुई थी लेकिन वह उस शख्स के लिए हरगिज़ रोना नहीं चाहती थी।
भाभी से करीब सवा साल की राहेमीन को गोद में लेकर उसे चुप कराते हुए वो अपने कमरे में आ गयी।
हाशिर कब वहां से गया और उसने उसके घर वालों से क्या कहा ,उसने जानने की कोशिश नहीं की।
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अली असाइमेंट के लिए नोट्स लेने जब असफंद मीर के कमरे में आया तो उसे पैकिंग करते देख कर चौंक गया।
“कहाँ की तैयारी है भई? “
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