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छाया...
छाया... .....
मनय की साइकल अपनी रोज की स्पीड में चल रही थी.. पुरानी होने से चैन चर.. चर ..कर रही थी तो मरघाट भी पड.. पड.. की आवाज निकाल रहा था,धूप अपने चरम पर थी उपर से जुलाई का गर्म महीना.. लू जैसे चांटे मार रही थी , पर इन आवाजो और थपेडो सै दूर मनय आज कुछ और ही सोच रहा था...यह जिन्दगी भी कोई जिन्दगी है एक टूटी फूटी साइकल.. गर्म हवा के झोंके और लोगो के घर घर जाकर...