...

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इंतज़ार
एक बार इक लड़का आया दूर कही से पढ़ने
आकर बहुत खुश था वो अपने घर से दूर
अपनी मंज़िल की खातिर उसे दूरी थी मंजूर
ठंडीi का दिन था वो अक्सर छतपर पढ़ता था
बड़ी बड़ी बातें करता और सबसे कब अकड़ता था
एक दिन भाग्य ने किया एक खेल
सामने उसके छत पर एक लड़की आती थी
ठंडी में अपने बालों को,छत पर ही सुखाती थी
लड़का देखा जब उसको वो पढ़ना गया भूल
बस अब वह लड़की को देखने छत पर आता था
बैठकर कुर्सी पर लेकर किताबें बीच से उसे झांकता था
ये हो गई अब से रोज उसकी यही आदत
पढ़ना लिखना भूल गया बस इश्क़ बन गई नियत
ना जानता था उसका नाम ,ना पता
बस उसको चुपके से देखने की रोज करता था खता
एक दिन लड़की को हो गया इस बात का एहसास
ये जो लड़का है रोज पढ़ता उसके लिए है खास
ये सोचकर वो मन ही मन खुश होने लगी
अपने मन में अनगिनत सपने सजोने लगी
फिर एकदिन सोची की लड़के ने न पूछी उसकी कभी इच्छा
क्यों न थोड़ा सताकर ले ले उसकी परीक्षा
फिर वो कुछ दिन के लिए अपना मुंह मोड़ ली,
और छतपर जाना छोड़ दी।
ऐसा करते बीत गया दिन चार
लड़की को आने लगा बुखार और हो गई वो बीमार
फिर अचानक एकदीन बाहर होने लगा शोर
खिड़की से देखी तो मजरा था कुछ और
इक गाड़ी खड़ी थी लोगों की भीड़ उमड़ी थी
वो लडका जुदाई में हो गया था बेहोश
ये बेहोशी में बीत गए थे कई दिन
इसे कम करना बंद कर दिया था उसका दिमाग
अब सब उसको उठाकर ले जा रहे थे
उसके माता_पिता बहुत रोते नजर आ रहे थे
लड़की ये देखकर बाहर जाने लगी
पर उसे बहुत कमजोरी सताने लगी
ना मिल पाने से लड़की हो गई बेहोश फिर,
बहुत देर बाद उसको आया फिर होश
लड़का जा चुका था उससे बहुत दूर
अब लड़की को गलती का एहसास हुआ
और हो गई गम से बहुत चूर
फिर कुछ न पता चला उसे उस लड़के का हाल
उसके मन में गूंजते हैं आज भी वोही सवाल
क्यों वो लेने गई उसका इम्तहान
वो क्यों न समझ सका था कितना नादान
अब लड़की रोज छतपर उसी तरह जाती है
खुद को रोज उसकी याद में मिटाती है
देखने मे वो बेजार लगने लगी
पागलों जैसे हर किसी से बात करने लगी
कभी हंसती है कभी बहुत रोती है
वो आज भी छत पर उसी तरह उसका इंतज़ार करती है।।।