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सुहाना सफर : प्रकृति और प्राचीन मंदिर
क्या सुहाना सफर होता है ना!
जब हम अपने कुछ दोस्तों के साथ,
निकल पड़ते है घर से,
एक अदभुत यात्रा पर।

वो जगह कैसी दिखती होगी ?
क्या-क्या enjoyment होगा ?
दोस्तों से हंसी मजाक,
ये सब सोचकर Bus में समय
किस तरह निकल जाता है?
पता ही नहीं चलता।

अंतिम पड़ाव के किवाड़ पर हल्की हल्की बारिश,
और कल-कल बहते झरने ऐसे थे,
मानो हमारा स्वागत किया जा रहा है!

जैसे ही Bus रुकी,
हमें कहा गया Bus में ही आराम करने,
परंतु बाहर का अप्रतिम नजारा देखकर,
रुका ही नहीं गया।
और आ गए बाहर प्रकृति के ,
ब्रम्हमुहूर्त की बेला का लाभ उठाने!

वो नीले-नीले अंबर,
हल्की सी चांद की चांदनी,
उसपर दुधिया रंग के धुंधली ओस,
मानो पहाड़ों और पेड़-पौधों ने,
सुंदर सी चादर ओढ़ी हो!

फिर उसके बाद हम उत्साहित थे,
इससे भी अधिक adventure करने के लिए!
हमने सुबह का नाश्ता किया,
और निकल पड़े जंगल के बीच से,
ऊँचे-नीचे रास्तों को पार करते।

खुद को जंगल के बीच पाकर,
ऐसे लग रहा था मानो,
पेड़ पौधे, पंछी, फूल, झरने, नदियाँ,
सब हमें देखकर खिलखिला रहे हैं।
और ऊपर से अत्यंत तेज बारिश,
मानो जैसे हमें पूरी तरह भिगोकर,
हमारे मन के मैल को धो रही हो।

फिर एक कमर जीतने पानी में उतरकर,
उस छोटी सी नदी को पार करते हुए,
हम पहुँचे महादेव के मंदिर।
इतने प्राचीन मंदिर को देखकर,
मन प्रफुल्लित हो उठा।
और वैसे भी जहां प्रकृति इतनी सुंदर हो,
वहाँ महादेव का होना अस्वयंभावी हैं।

लगातार कुछ घंटों तक चलने के बाद,
हम एक सुंदर स्थल पर पहुँचे।
जिसे देखकर मन भाव विभोर हो गया।
पहाड़ों के बीच इतने ऊँचे ऊँचे झरने,
मानो जैसे प्रकृति ने सफेद मोतियों की माला से,
अपने इस स्वरूप का सृंगार किया हो।

कुछ समय एक झरने के नीचे बैठकर,
जब मैंने महादेव को याद किया,
तो ऐसे लगा महादेव स्वयं माता गंगा की,
जलधारा का प्रवाह मेरे मस्तिष्क पर कर रहे हैं!
इस अद्भुत धारा के नीचे बस खुशी की,
एक अनोखी दीप मन में प्रज्वलित हो गई।

वो पल, वो स्मृतियां हमेशा के लिए दिल में समेटकर,
हम पहुँचे स्थानीय लोगों के घर,
वहाँ स्वादिष्ट भोजन किया।
और निकल पड़े अपने घर की ओर।

सचमुच इतना अद्भुत एंव अद्वितीय नजारा,
प्रकृति में हमेशा ही बना रहें।
मनुष्य जीवन इस प्रकृति की तरह,
सुंदर , सुखमय और शांतिमय बना रहें।
© pritz