सुंदरकांड में एक प्रसंग
“मैं न होता, तो क्या होता?”
“अशोक वाटिका" में *जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा*
, तब हनुमान जी को लगा, कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सर काट लेना चाहिये!
किन्तु, अगले ही क्षण, उन्हों ने देखा
*"मंदोदरी" ने रावण का हाथ पकड़ लिया !*
यह देखकर वे गदगद हो गये! वे सोचने लगे, यदि मैं आगे बड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि
*यदि मै न होता, तो सीता जी को कौन बचाता?*
बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मैं न होता, तो क्या होता ? ...
“अशोक वाटिका" में *जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा*
, तब हनुमान जी को लगा, कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सर काट लेना चाहिये!
किन्तु, अगले ही क्षण, उन्हों ने देखा
*"मंदोदरी" ने रावण का हाथ पकड़ लिया !*
यह देखकर वे गदगद हो गये! वे सोचने लगे, यदि मैं आगे बड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि
*यदि मै न होता, तो सीता जी को कौन बचाता?*
बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मैं न होता, तो क्या होता ? ...