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पीली दाल
बात वही पुराने उन दिनों की है जो अक्सर आप सबने मेरी धारावाहिक कहानी मिस शरारती में पढ़ा होगा.

मेरी बुआ जी का बेटा एक दिन खाने पर अड़ गया कि उसे पीली दाल खानी है. अरहर की दाल उसके लिए पीली दाल थी.. हर दिन उसे वही खाने को चाहिए होती थी.

मेरी माता जी, मैं और बुआजी के चाचा की फॅमिली उस दिन दोपहर के खाने पर बुआजी के यहाँ मौजूद थे.
वहाँ ये तमाशा भी साथ में लगा हुआ था. बुआजी  ने मोहल्ले भर में पता करवा लिया कि शायद किसी के यहाँ पीली दाल बनी हो तो अपने शहजादे की ज़िद पूरी कर दें मगर इत्तेफ़ाक उस दिन किसी के यहाँ पीली दाल नहीं बनी थी.

काफ़ी देर खुशामद करने के बाद बुआजी उससे नाराज होकर मेहमानों में मसरूफ हो गयीं.
मुझे और बुआजी की बेटी को बुआजी के रूठे पड़े शहजादे को देखकर बहुत हँसी आ रही थी लेकिन मेहमानों के सामने शहजादे पर हँसने से बुआजी नाराज हो सकती थी तो हम दोनों अपनी हँसी अपनी खाने की प्लेट में उतार रहे थे.

कुछ देर ही गुज़री थी कि पलंग पर औंधे पड़े शहजादे अचानक से हरकत में आ गये, पलंग पर तेजी के साथ पालथी मारकर बैठ गये और बोले,
"मम्मी, जितनी भी चीजें खाने में बनी है वो सब एक प्लेट में मुझे दे दिए. और सुनिए प्लेट में पूरा पहाड़ बनाकर दीजेगा."

उसकी इस हरकत से सब हँसने लगे. बुआजी की कजिन बोलीं,
"लगता है इसको भूख बहुत ज्यादा लग गयी है, आप जल्दी बच्चे को खाना दें."
बुआजी भी जल्दी जल्दी खाना निकालने लगी इसी बीच बाहर से आवाज आयी,

" बाबूsss, खाना खा लो पहले, उसके बाद हम पढ़ा देंगे. "
इस आवाज़ का सुनना था कि मैं और बुआ जी की बेटी अपनी हँसी नहीं रोक सके बाकी सब भी सारा माजरा समझकर हमारे साथ हँसने लगे.

हुआ ये था कि जब शहजादे औंधे पलंग पर पड़े थे तब वहाँ से उन्होंने बाहर दरवाज़े से अपनी कुरान टीचर को आते हुए देख लिया था.
पढ़ने से बचने के लिए उन्हें अपनी प्लेट में सारी चीजें पहाड़ बनाकर चाहिए थी.

लेकिन उस्तानी साहिबा भी पूरी थी अपने शागिर्द की रग रग से वाकिफ़ थी.
ख़ैर वो छोटू अब बड़ा हो गया है.. लेकिन ये बात आज भी बहुत मज़ा देती है.
फिर मिलेंगे किसी और कहानी, किस्से के साथ.
NOOR EY ISHAL
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