सच्ची मित्रता
ये कहानी है लुधियाना शहर में रहने वाले दो दोस्तों रोहित और करण की। रोहित और करण दोनों बचपन के दोस्त हैं। उनकी पहली मुलाकात स्कूल में हुई थी। करण अपने स्कूल के प्रथम दिन में बहुत रो रहा था और अपने पापा से बोल रहा था...
करण:- पापा मुझे घर ले चलो, मुझे नहीं रहना जहां। मुझे मम्मी के पास जाना है।
संजय जी (करण के पापा):- रो मत बेटा, देख यहां तेरे कितने सारे दोस्त हैं और तेरे मैम भी कितने अच्छे है, वो तुझे चाॅकलेट देंगे। मैं भी तुझे बहुत सारे नये खिलौने लाकर दूंगा।
इस तरह करण को समझा बुझाकर उसके पापा वहां से चले गए। कुछ देर बाद करण फिर से रोने लगा और कहने लगा...
करण:- मुझे मम्मी के पास जाना है।
तभी उसकी उम्र का एक बच्चा उसके पास आया। ये बच्चा कोई और नहीं बल्कि रोहित था।
रोहित:- अरे तुम क्यूं रो रहे हो??
करण:- मुझे यहां नहीं रहना। मुझे घर जाना है मम्मी के पास।
रोहित:- देख मैं भी तो नहीं रो रहा तू भी मत रो। हम जल्द ही अपनी अपनी मम्मी के पास जाएंगे।
रोहित के कहने पर करण चुप हो गया और उसके साथ खेलने लग गया। छुट्टी के बाद उसके पापा उसे उसको लेने आए तो वो घर चला गया। घर जाकर वो उछल कूद करने लग गया।
करण:- मम्मी- मम्मी मुझे नया दोस्त मिल गया। आपको पता है मेरा नया दोस्त रोहित बहुत अच्छा है। अब से मैं रोज स्कूल जाऊंगा और बिल्कुल भी नहीं रोऊंगा।
करण के मम्मी पापा भी बहुत खुश थे कि चलो अच्छा है करण का स्कूल में दिल लगने लग गया।
उधर रोहित भी अपने मम्मी पापा को स्कूल की बातें बता रहा था और उसने भी उन्हें करण के बारे में बताया। इस तरह रात हो गई और सब खाना खाकर सो गए।
अगले दिन करण स्कूल जाने पर बिल्कुल भी नहीं रोया। अब ऐसा ही रोज़ चलने लगा और दोनों एक दूसरे के पक्के दोस्त बन गए। दोनों के घर वालों में भी अच्छी दोस्ती हो गई। अब तो दोनों छुट्टी वाले दिन एक दूसरे के घर भी चले जाते थे। समय बीतता गया और दोनों बड़े होते गए, पर दोनों की दोस्ती में कोई कमी नहीं आई। दोनों ही एक दूसरे पर जान देते थे। उनके सहपाठी तो उनको प्रेमी-प्रेमिका कहकर उनका मज़ाक उड़ाया करते थे, क्यूंकि दोनों एक-दूसरे के बिना बिल्कुल भी नहीं रह सकते थे। कोई भी काम हो, चाहे कहीं घूमने जाना हो या पढ़ाई करना हो दोनों साथ में ही करते थे। दोनों के मम्मी पापा को भी उन दोनों की दोस्ती से कभी कोई ऐतराज नहीं था। देखते ही देखते दोनों दोस्त बाहरवी कक्षा में आ गए। दोनों ने ही काॅमर्स ली।
करण के मम्मी पापा...
करण:- पापा मुझे घर ले चलो, मुझे नहीं रहना जहां। मुझे मम्मी के पास जाना है।
संजय जी (करण के पापा):- रो मत बेटा, देख यहां तेरे कितने सारे दोस्त हैं और तेरे मैम भी कितने अच्छे है, वो तुझे चाॅकलेट देंगे। मैं भी तुझे बहुत सारे नये खिलौने लाकर दूंगा।
इस तरह करण को समझा बुझाकर उसके पापा वहां से चले गए। कुछ देर बाद करण फिर से रोने लगा और कहने लगा...
करण:- मुझे मम्मी के पास जाना है।
तभी उसकी उम्र का एक बच्चा उसके पास आया। ये बच्चा कोई और नहीं बल्कि रोहित था।
रोहित:- अरे तुम क्यूं रो रहे हो??
करण:- मुझे यहां नहीं रहना। मुझे घर जाना है मम्मी के पास।
रोहित:- देख मैं भी तो नहीं रो रहा तू भी मत रो। हम जल्द ही अपनी अपनी मम्मी के पास जाएंगे।
रोहित के कहने पर करण चुप हो गया और उसके साथ खेलने लग गया। छुट्टी के बाद उसके पापा उसे उसको लेने आए तो वो घर चला गया। घर जाकर वो उछल कूद करने लग गया।
करण:- मम्मी- मम्मी मुझे नया दोस्त मिल गया। आपको पता है मेरा नया दोस्त रोहित बहुत अच्छा है। अब से मैं रोज स्कूल जाऊंगा और बिल्कुल भी नहीं रोऊंगा।
करण के मम्मी पापा भी बहुत खुश थे कि चलो अच्छा है करण का स्कूल में दिल लगने लग गया।
उधर रोहित भी अपने मम्मी पापा को स्कूल की बातें बता रहा था और उसने भी उन्हें करण के बारे में बताया। इस तरह रात हो गई और सब खाना खाकर सो गए।
अगले दिन करण स्कूल जाने पर बिल्कुल भी नहीं रोया। अब ऐसा ही रोज़ चलने लगा और दोनों एक दूसरे के पक्के दोस्त बन गए। दोनों के घर वालों में भी अच्छी दोस्ती हो गई। अब तो दोनों छुट्टी वाले दिन एक दूसरे के घर भी चले जाते थे। समय बीतता गया और दोनों बड़े होते गए, पर दोनों की दोस्ती में कोई कमी नहीं आई। दोनों ही एक दूसरे पर जान देते थे। उनके सहपाठी तो उनको प्रेमी-प्रेमिका कहकर उनका मज़ाक उड़ाया करते थे, क्यूंकि दोनों एक-दूसरे के बिना बिल्कुल भी नहीं रह सकते थे। कोई भी काम हो, चाहे कहीं घूमने जाना हो या पढ़ाई करना हो दोनों साथ में ही करते थे। दोनों के मम्मी पापा को भी उन दोनों की दोस्ती से कभी कोई ऐतराज नहीं था। देखते ही देखते दोनों दोस्त बाहरवी कक्षा में आ गए। दोनों ने ही काॅमर्स ली।
करण के मम्मी पापा...