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हिस्ट्रीशीटर
कानपूर एनकाउन्टर (शूटआउट) १०.७.२०२०

हिस्ट्रीशीटर :

मैं गैंगस्टर विकास दुबे के पक्ष में बोलकर शहीद हुए पुलिसकर्मियों के परिजनों के हरे घाव पर नमक नहीं छिड़कना चाहता पर जिस तरह से पुलिस ने उसकी हत्या की, उससे कानून की अस्तित्व एवं अस्मिता तथा समाज एवं राष्ट्र के भविष्य की चिंता मुझे कचोट रही हैं और बोलने पर मजबूर कर रही हैं। गुंडागर्दी और दहशतगर्दी का सिरमौर बना विकास दुबे वर्षों से राजनीति की गलियारों में अपनी गहरी पैठ बना चुका था। उत्तरप्रदेश के राजनीति में सक्रिय सभी दलों से उसके गहरे संबध होने के साक्ष्य मिले हैं और सपा, बसपा, कांग्रेस तथा भाजपा सहित सभी दलों ने उसकी दहशतगर्दी का उपयुक्त राजनीतिक लाभ उठाया हैं। वह खुद भी एक राजनीतिक पद पर काबिज था और अपनी शक्ति का प्रयोग कर अपनी पत्नि तथा परिवार के अन्य लोगों के लिए भी राजनीतिक पद हासिल किया था। आसपास के इलाके में उसका गहरा प्रभाव था और समय-समय पर उसके इलाके में चुनाव जीतने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने उससे संपर्क साधा था। इस अवसर का लाभ उठाकर उसने खुब पैसा कमाया एवं संपत्तियां बनाई। पुलिस महकमे में भी उसकी गहरी पैठ थी और यह जग जाहिर हैं कि पुलिस और गैंगस्टर के संबंधों के मुख्य सूत्र पैसे होते हैं। रिश्वतखोर पुलिसवाले कालेधन की कमाई के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं और गुंडो का सहयोग करते हैं। विकास दुबे को सत्ताधारी दल के नेताओं का संरक्षण प्राप्त था। यही कारण हैं कि पांच दर्जन से अधिक संगीन मामले जिसमें हत्या एवं हत्या की कोशिश भी शामिल है, के थाने में दर्ज होने के बावजूद भी कोई उसका बाल बांका नहीं कर पाया था। जाहिर सी बात हैं कि उसके नाम वसुली, फिरौती एवं अन्य दहशतगर्दी के अनेकों मामले दर्ज होंगे जिसकी अधिक चर्चा नहीं हुई। सवाल यह हैं कि पुलिस, प्रशासन एवं राजनीतिज्ञों का इतना बड़ा संरक्षण एवं सहयोग होने के बावजूद अचानक ऐसा क्या हुआ कि पुलिस और फिर प्रशासन उसके पीछे ऐसे हाथ धोकर पड़ गया कि, न सिर्फ उसे अपनी जान गंवानी पड़ी बल्कि उसका पूरा राज एवं प्रापर्टी उजाड़ दिया गया? उसकी मौत महज एनकाउंटर थी या सोंची-समझी रणनीतिक हत्या? क्या पुलिस की बातों तथा अन्य खबरों पर पूरी तरह विश्वास किया जा सकता हैं? इन सवालों का जबाव पाने के लिए हमें पीछे चलना होगा और कई बिंदुओं पर अपना ध्यान केन्द्रित करना होगा।


कैसे बनते हैं कुख्यात अपराधी ?

कोई भी व्यक्ति जन्मजात अपराधी नहीं होता। दूनिया में जन्म लेने वाला हर शीशु एक प्यारा एवं निरीह बालक होता है। परिजनों के संस्कार, पड़ोसियों के व्यवहार, विद्यालय में शिक्षकों एवं साथियों का आचार (सदाचार/दूराचार) तथा परिस्थितियों की मार व्यक्ति की दिशा एवं दशा तय करती हैं। यदि बच्चे को अच्छे संस्कार तथा परिवरिश के लिए अनुकूल माहौल एवं परिस्थितियां मिले तो बच्चा कभी बुरा आदमी नहीं बन सकता। वहीं संस्कार के अभाव अथवा प्रतिकुल माहौल एवं परिस्तिथियों में विकसित बच्चा विकारों से ग्रसित होता हैं। कहते हैं, बबूल की बीज बोकर आम के फल नहीं प्राप्त किए जा सकते। ठीक उसी प्रकार बच्चे में नफरत भरी बूरे बीज का रोपण कर हम उससे समाज कल्याण की उम्मीद नहीं कर सकते।

शहीद भगत सिंह के बारे में हम सभी जानते हैं। अंग्रेजों के प्रति उनके मन में अषीम नफरत थी। अंग्रेजों ने उनके समक्ष उनके परिजनों के साथ यदि क्रुर अत्याचार नहीं किया होता तो इतनी नफरत उनके मन में कभी नहीं पनपती। उनका मन उदार था। यदि उनका मकसद हत्या करना होता तो वे असंबली के मध्य में बम फेंककर अंग्रेजों को डराने के बजाय उनपर जानलेवा हमले किये होते। मनोवैज्ञानिकों का मानना हैं कि बचपन में अथवा जीवन के कठिन मोड़ पर यदि किसी व्यक्ति को किसी प्रकार का मानसिक अघात होता हैं तो वह उस व्यक्ति के जीवन को बुरी तरह प्रभावित करता हैं।

हम सभी जानते हैं कि ओसामा-बिन-लादेन एक अंर्तराष्ट्रीय कुख्यात आतंकी सरगना का मुखिया था। वह एक बहुत कुशल इंजीनयर था। यदि उसके भाई की निर्मम हत्या नहीं की गई होती अथवा हत्या के बाद उसे न्याय मिला होता तो शायद वह आतंकी सरगना का मुखिया होने के बजाय एक कुशल इंजीनयर का काम कर रहा होता। उसकी भाई की हत्या करने वाले लोग बहुत ही प्रभावशाली थे और पुलिस ने...