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खुशी की खरीदारी
कभी किसी इश्तेहार को गौर से देखा है--कुछ एक सा होता है सभी में--बचने वाला चाहे गाड़ी बेच रहा हो या गाड़ी का पहिया--साथ होते हैं कुछ चित्र--जिसमे होगा कोई परिवार-कोई रिश्ता और हर चेहरा मुस्काता--तो कहने का इरादा ये-कि खरीद लो ये गाड़ी--या पहिया--या कुछ और--और ले आओ ये खुशिया --जब लानी खुशियां ही हैं तो क्यूं ना खुशी को ढूढे--सूखी रोटी-चटनी और पूरा परिवार -ढेर से किस्से-पेट भर हंसी--ये सब बिना पैसे के मिलते हैं-तो समय इनपर क्यूं ना खर्च करें--क्यूं ना थोड़ी खुशी रोज़ इसी तरह खरीदना शुरु करें