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श्रीकृष्ण वासुदेव द्वारा अर्जुन को समझाए गए तथ्य का व्यवहारिक स्पष्टीकरण
7. न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः । न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम् ॥
भावार्थ : न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था, तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे॥2.12॥

इन चार पंक्तियों में श्रीकृष्ण वासुदेव जी ने बहुत रहस्यमय बात कही है अर्जुन के माध्यम से हम सभी से।

हमने अक्सर ये देखा है कि समयानुसार परिस्थितियों में परिवर्तन होता रहता है। और वो परिवर्तन हमें दृष्टिगोचर होता है हमारे भीतर।
कभी पहनावे के रूप में,
कभी बोलचाल की भाषा के रूप में,
कभी खान-पान के रूप में,
तो कभी कार्य को करने के तरीकों के रूप में।

उदाहरणार्थ:-
एक समय था जब सिर्फ धोती पहनते थे और एक वस्त्र तन पर ढक लिया करते थे,फिर धीरे-धीरे कुर्ता बनाया। धोती-कुर्ता से कुर्ता-पजामा,और अब हम जीन्स-टीशर्ट,पेन्ट-शर्ट तक आ चुके हैं।

पहले संसकृत से वार्तालाप शुरू हुई,
हिन्दी पर आए फिर,
मराठी,गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,मलयालम,कन्नड़,अंग्रेजी,पुर्तगाली और ना जाने कितनी-कितनी भाषाओं में परिवर्तन आया।

पर ध्यान देने योग्य बात यहाँ यह है कि:-
क्या पहनावे का अस्तित्व समाप्त हुआ?
नहीं।
केवल रूप में परिवर्तन आया

क्या वार्तालाप का अंत हुआ?
नहीं।
केवल माध्यम बदलते और बढ़ते गए।

अर्थात:-
थे,हैं और रहेंगे।।।।।
विचार कीजिए।

श्रीकृष्ण वासुदेव जी कह रहे हैं:-
न तो ऐसा ही है कि मैं(ईश्वर) किसी काल में नहीं था,तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे।
और न ऐसा ही है कि आगे हम सब नहीं रहेंगे।

अर्थात:-
ईश्वर और मानव सदा थे,हैं और रहेंगे,
समयानुसार रूप परिवर्तित होंगे।
जैसे सर्वप्रथम मत्सयावतार
फिर कच्छप अवतार,
वराहावतार,नरसिंहावतार,वामनावतार,परशुरामावतार,रामावतार,कृष्णावतार,बुद्धावतार इत्यादि।

परिस्थिति के अनुसार हर बार रूपों में परिवर्तन आया
ठीक वैसे ही जैसे
पहले के समय में हम हाथ वाला पँखा झालते थे,
फिर टेबल फैन आया,
उसके पश्चात वाॅल फैन,
कूलर,
वातानुकूलित यंत्र(Air conditioner)।

जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती गयी,वैसे-वैसे यंत्र भी प्रगति करते गए।
अर्थात:-
शक्ति बढ़ती गयी।

ठीक इसी प्रकार से हर युग में मनुष्य और ईश्वर रहते हैं और ईश्वर तभी समक्ष आते हैं जब पाप बढ़ता है।
अगर ये क्रम ना चलें,तो मनुष्य सही-गलत और स्वयं के स्वरूप से रूबरू हो ही नहीं पाएगा।

इसी कारण से ये क्रम आगे भी चलता रहेगा।

तभी श्रीकृष्ण वासुदेव जी ने अर्जुन के माध्यम से हम सभी को वचन दिया:-
"यदा यदा ही धर्मस्य,ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानम् सृजाम्यहम।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे।।"

(जब-जब धर्म को हानि होती है,जब-जब अधर्म में वृद्धि होती है,
तब-तब सत्मनुष्यों के उद्धार के लिए,अधर्मियों के विनाश के लिए और धर्म की पुनः स्थापना के लिए केवल मैं(ईश्वर) ही जन्म लेता हूँ।
ये प्रत्येक युग में होता आया है और आगे भी ऐसा ही होगा।)
मनन अवश्य कीजिएगा।

© beingmayurr