ढोंग
ढोंगी...
तुम ढोंगी हो.. यह कहते हुए वह वंहा से चला गया
मंदिर का बुढ़ा पुजारी विचार करने लगा कि उसने ऐसा क्यों कहा ??? उसे बुरा लग रहा था..बरसो बरस हो गए थे उसे..इसके अलावा उसने कुछ और किया भी तो नहीं था...शायद उसके पिता ने उसको यह ढोंग ही सिखाया था..वह खुद भी असमंजस मे था....................रोज दिया -बत्ती..आरती सुबह शाम बिना समय टाले.....पूर्णिमा के सीधे से काम चलाना..एकादशी पूर्णिमा के व्रत...ईश्वर उसे ही नहीं दिखे तो फिर और को क्यों दिखेंगे.. ईश्वर है भी या नहीं ??.. उसने सच तो नहीं...