...

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भुलक्कड़ सा मैं..
भुलक्कड़ सा मैं..
और तुम हर बार मुझे याद दिलाती हुई।
कभी laptop, कभी charger तो
कभी mobile को ढूँढता हुआ मैं।
तुम्हारे मायके जाने की वो
एक दिन की ख़ुशी जिसे मैं freedom कहता हूँ,
महज़ दो दिन में काफ़ूर हो जाती है।
हाँ और फिर mobile पर तुमसे हर बात पूछना
और तुम्हारा irritate होकर ये कहना कि
"एक काम भी मेरे बिना ठीक से नही कर पाते"
सच कहूँ तो नही कर पाता,
अब तुम्हारी आदत सी हो गई मुझे।
शाम होते ही तुम्हारा वो call जिसकी
अब ऑफिस वाले दोस्तों में भी चर्चा होती है।
तुम्हारी ये फ़िक्रमन्दी मुझे याद दिलाती है
कि घर पर कोई हमारा भी इंतज़ार करता है।
तुमसे एक बात कहनी है हमें कि
मेरा ये भुलक्कड़पन और तुम्हारी ये फ़िक्रमन्दी
एक ख़ुशनुमा सा एहसास है मेरे लिए।
एक ख़ुशनुमा एहसास जो हर पल, हर घड़ी में
मेरी आदतों में अब शामिल सा हो गया।


© दिल-ए-अल्फ़ाज़