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आध्यात्म और भौतिक
नीरंतर क्रियाशील रहना मन कि सहज प्रवृत्ति है । यह मानव निर्मित कोई कृत्रिम बनावटी यांत्रिक ढांचा नहीं जिसे नियंत्रित किया जाए । यह ब्रम्हांड की अलौकिक ऊर्जाओं से संपन्न एक विकासशील प्राकृतिक तंत्र है ।
इसका सीधा संबंध ऊर्जाओं की रुपांतरण प्रक्रिया से है । इन ऊर्जाओं का रुपांतरण भावों एवं भावनाओं के विभिन्न क्षेत्रों में विस्तारित होता रहता है , जैसे...